All posts by Manish

I am working as senior software developer in Ciena India and have a hobby of writing poems and sharing thoughts.

मैं इस जहाँ में नहीं हूँ..

मुझे पता नहीं कहाँ हूँ,
पर यहाँ मैं नहीं हूँ..
मैं इस जहाँ में हूँ कभी,
कभी इस जहाँ में नहीं हूँ..

हर वक़्त ये मन घबराता है,
आँखें हर वक़्त तरसती हैं..
हर वक़्त अधूरा लगता है,
साँसें हर वक़्त बहकती हैं..
मैं खुद के लिए सवाल हूँ,
पर जवाब मैं नहीं हूँ..
मैं इस जहाँ में हूँ कभी,
कभी इस जहाँ में नहीं हूँ..

संदेहों के इन घेरों में,
एक बार गया न लौटा हूँ..
भटके रस्तों का राही मैं,
इन रस्तों में ही खोया हूँ..
अब थका हुआ मुसाफिर हूँ,
कोई मुकाम मैं नहीं हूँ..
मैं इस जहाँ में हूँ कभी,
कभी इस जहाँ में नहीं हूँ..

चाहा क्या मैंने क्या पाया,
मांगा क्या और क्या हाथ आया..
देखा कुछ मैंने कुछ समझा,
सोचा क्या और क्या जी आया..
मैं बीत चुका इतिहास हूँ,
अब भविष्य मैं नहीं हूँ..
मैं इस जहाँ में हूँ कभी,
कभी इस जहाँ में नहीं हूँ..

मुझे पता नहीं कहाँ हूँ,
पर यहाँ मैं नहीं हूँ..
मैं इस जहाँ में हूँ कभी,
कभी इस जहाँ में नहीं हूँ..

हिंदुत्व क्या है?

यदि समझ सको तो समझो
हिंदुत्व शब्द क्या है?
यदि हो विवेक सोचो..
हिंदुत्व मंत्र क्या है?

हिंदुत्व आस्था है,
हिंदुत्व उपासना है..
तन मन में गंगा सी बहे,
हिंदुत्व वह चेतना है..

हिंदुत्व ही है पूजा,
हिंदुत्व प्रार्थना है..
हम कोटि जन मनों की,
हिंदुत्व वंदना है..

हिंदुत्व शुद्ध नीति है,
हिंदुत्व में ही प्रीति है..
हिंदुत्व में शक्ति निहित,
हिंदुत्व में ही कीर्ति है..

हिंदुत्व धर्म ज्ञान है,
हिंदुत्व में ही त्राण है..
श्वांसों में वेग से चले,
हिंदुत्व में ही प्राण हैं..

हिंदुत्व में है जीवन,
हिंदुत्व में है दर्पण..
हिंदुत्व में ही सत्य है,
हिंदुत्व में है अर्पण..

शास्त्रों में जो समाया है,
वेदों ने जिसको गाया है..
उस वैदिक सनातन धर्म को,
हिंदुत्व जगत में लाया है..

हिंदुत्व में दया है,
हिंदुत्व शांति भी..
हिंदुत्व यज्ञ भी है,
हिंदुत्व क्रांति भी..

मर्यादा है ये राम की,
है कृष्ण का सुदर्शन..
गांडीव ये अर्जुन का,
है भीष्म का अटल प्रण..

हिंदुत्व में ही शिव हैं,
हिंदुत्व में हैं शम्भू..
हिंदुत्व परम ब्रह्म है,
हिंदुत्व में हैं विष्णु..

हिंदुत्व में ही यश है,
हिंदुत्व में सम्मान है..
शील है हिंदुत्व में,
हिंदुत्व में अभिमान है..

हिंदुत्व जन्मभूमि है,
हिंदुत्व कर्मभूमि है..
सबको सहेज ले जो,
हिंदुत्व मातृभूमि है..

हिंदुत्व राष्ट्रशक्ति है,
हिंदुत्व लोकशक्ति है..
हिंदुत्व में ही है विजय,
हिंदुत्व राष्ट्रभक्ति है..

हिंदुत्व ही गगन में,
हिंदुत्व ही धरा पे..
हिंदुत्व हर क्षितिज में,
हिंदुत्व हर दिशा में..

हिंदुत्व अपना पथ है,
हिंदुत्व अपना रथ..
हिंदुत्व ही एक मार्ग है,
हिंदुत्व ही एक लक्ष्य..

हिंदुत्व धरमपंथ है,
हिंदुत्व आदि अंत है..
कुछ और हो न हो कभी,
हिंदुत्व बस अनंत है..
हिंदुत्व ही अनंत है ||

यादों की डगर..

कोई और राह तो है नहीं
जो हमको कहीं मिलाती है..
बस यादों की एक डगर है
जो तुझे मुझ तक,
और मुझे तुझ तक ले के जाती है..

इस डगर के एक सिरे पे
मैं कब से चल रहा हूँ,
तू उधर से आती होगी
तेरी राह मैं तक रहा हूँ..
कोई और सहारा है नहीं
कि मुझे तसल्ली आती है..
बस यादों की एक डगर है
जो तुझे मुझ तक,
और मुझे तुझ तक ले के जाती है..

कोई पत्ता कहीं गिरता है
तेरी पायल सा बजता है,
बेचैन मैं हो जाता हूँ
तुझे कहीं नहीं पाता हूँ..
फिर राह वही चलता हूँ
कि आस वहीँ से आती है..
बस यादों की एक डगर है
जो तुझे मुझ तक,
और मुझे तुझ तक ले के जाती है..

मालूम है तेरी आदत
तू देर हमेशा करती थी,
और मेरी वही शिकायत, घर से
जल्दी क्यों न निकलती थी..
इस डगर पे किसने रोका है
क्यूँ अब तक नहीं तू आती है..
बस यादों की एक डगर है
जो तुझे मुझ तक,
और मुझे तुझ तक ले के जाती है..

तेरा साया नज़र आता है
दिल कमल सा खिल जाता है..
ये कदम तेज़ हो जाते हैं
जब तेरा आँचल लहराता है..
अब हम-तुम मिलने वाले हैं
कोयल भी गुनगुन जाती है..
बस यादों की एक डगर है
जो तुझे मुझ तक,
और मुझे तुझ तक ले के जाती है..

मध्धम सी बहती पवन में
अब तेरी ही खुशबु आती है..
धड़कनें ये बढ़ने लगती हैं
जब पास मेरे तू आती है..
अब दूर कहीं तू न जाये
आरज़ू ये मेरी सुनाती है..
बस यादों की एक डगर है
जो तुझे मुझ तक,
और मुझे तुझ तक ले के जाती है..

कोई और राह तो है नहीं
जो हमको कहीं मिलाती है..
बस यादों की एक डगर है
जो तुझे मुझ तक,
और मुझे तुझ तक ले जाती है..

वो दरिया है बह जायेगा..

करे कोशिशें कोई हज़ार
हो अड़चनें चाहे अपार
रोके न जो रुक पायेगा
बांधे न जो बंध पायेगा
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

बादल को बरस जाना ही है
बिजली को चमक जाना ही है
हो शेर भले पिंजरे में बंद
पर उसको गरज आना ही है..
आदत में उसकी है नहीं
वो चुप तो न रह पायेगा..
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

शब् जाती है शब् जाएगी
सहर आती है वो आएगी
हो घाम कितनी तेज़ ही
पर शाम न रुक पायेगी
बन्दे में वो ताक़त कहाँ
कुदरत को बदल जो पायेगा..
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

बाहों में न आये गगन
रूकती कहाँ है ये पवन
बंध के जहाँ में जो रहे
ना मुदित है ना है वो मगन
जो पानी है जो रेत है
मुट्ठी से फिसल ही जायेगा..
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

कदम ना उसको रुकने दें
जिसके मन में आशाएं हों
स्वप्न ना उसको सोने दें
यदि आतुर अभिलाषाएं हों
नदिया सा जिसको बहना है
वो ताल तो ना बन पायेगा..
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

रोके न जो रुक पायेगा
बांधे न जो बंध पायेगा
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

-मंजुसुत इशांश

बड़ा मुश्किल है..

दिल जिसे देखना चाहे
आइना वो मुझे दिखाता नहीं..
औरों की नज़रों में अपना
निशां पाना बड़ा मुश्किल है..
खुद से खुद को यहाँ,
ढूंढ पाना बड़ा मुश्किल है ||

अपने से लगने वाले कुछ
रस्ते बीच में छूट गए..
सपनों की चादर ओढ़ी
मंज़िलें भी मेरी बिछड़ गईं..
नए रस्तों पे नई मंज़िलें अब,
तलाश पाना बड़ा मुश्किल है..
खुद से खुद को यहाँ,
ढूंढ पाना बड़ा मुश्किल है ||

समय की कड़ी सीमाओं में
हम बंधके पलते बढे हुए..
फिर कुछ देर तलक आज़ाद रहे
और फिर पिंजरे में बंद हुए..
बंधनों की सब दीवारों को
तोड़ जाना बड़ा मुश्किल है..
खुद से खुद को यहाँ,
ढूंढ पाना बड़ा मुश्किल है ||

वो सवाल तो मुझसे करते हैं
पर जवाब न मेरे सुन पाते..
सब बात तो मुझसे करते हैं
पर बात न मेरी सुन पाते..
अब किसी की कुछ सुनना और अपनी
कुछ कह पाना बड़ा मुश्किल है..
खुद से खुद को यहाँ,
ढूंढ पाना बड़ा मुश्किल है ||

एक शहर था मेरा..
एक ज़मीं थी अपनी..
कुछ लोग मेरे थे..
एक ज़िन्दगी थी अपनी..
इस जन्नत में यहाँ
वैसे तो हर रंगत है..
पर दिल खिल जाये ऐसी
हंसी मिल पाना बड़ा मुश्किल है..
खुद से खुद को यहाँ,
ढूंढ पाना बड़ा मुश्किल है ||

औरों की नज़रों में अपना
निशां पाना बड़ा मुश्किल है..
खुद से खुद को यहाँ,
ढूंढ पाना बड़ा मुश्किल है ||

मेरे मत की अधिकारिणी..

बीते का आंकलन करूँ
निष्कर्ष यही मैं पाता हूँ,
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

एक समय तो बस अख़बारों में
घोटाले घूस ही पढता था,
कोई हिंसा यहाँ, कोई दंगा वहां
पढ़ पढ़कर मन ये दुखता था..
कहीं आग लगी विस्फोट हुआ
कहीं जमकर नरसंहार हुआ,
पर दिल्ली बैठी सरकारों को
न दर्द उठा न रोष हुआ..
उन सरकारों के लिए अपरिमित
घृणा से मैं भर जाता हूँ|
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

कैसे भूलूँ मुंबई हमले
भोले लोगों को मारा था,
आतंक के कुछ आकाओं ने
इस देश को तब ललकारा था..
पर आराम पसंद नेताओं ने
घर बैठ तमाशा देखा था,
नपुंसक जन प्रतिनिधिओं की
लाचारी को हमने देखा था..
सशक्त भारत की इस भूमि पर
आज गर्व कर पाता हूँ |
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

पुलवामा उरी के हमलों का
हमने कैसे प्रतिशोध लिया,
आतंक के घर में कदम रखा
उसे ख़त्म किया और जीत लिया..
इस विश्व को हमने जता दिया
हम झुकते नहीं अब लड़ते हैं,
घर परिवार समाज से बढ़कर
राष्ट्र प्रधान समझते हैं..
हर जन की इस भावना में मैं
ईश्वर की शक्ति पाता हूँ|
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

अपमान सेना का और संसद का
हरदम ही होते देखा था,
अपने घर अपनी ज़मीन से
लोगों को बिछड़ते देखा था..
हिन्द संस्कृति का जन आस्था का
उन सबने कैसे दमन किया,
राम कृष्ण अपमानित होते
न्यायालयों में देखा था..
देश हित राष्ट्र गौरव को अब
दांव पे नहीं लगता हूँ|
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

भ्रष्टाचार से त्रस्त राष्ट्र को
निर्मल नवीन सरकार मिली,
मिलावट न कोई गठबंधन की
जन बहुमत की स्वच्छ सरकार मिली..
दीप जला आस्था संस्कृति का
विकास का फिर संकल्प हुआ,
विश्व ने देखा हमने जाना
संकल्प कैसे वो सिद्ध हुआ..
सेवा समर्पित ये सरकार
गंवाना नहीं मैं चाहता हूँ|
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

नोटबंदी ने काले धन के
सर्प का फन ही कुचल दिया,
एक राष्ट्र एक टैक्स नीति ने
कर व्यवस्था को फिर बदल दिया..
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद्
का हमने नेतृत्व किया
भारत भी अब विश्व शक्ति है
हर मन को ये विश्वास दिया..
दृढ़ होते भारत को देख
बार बार हर्षाता हूँ|
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

सड़कों पे सोते लोगों को
छतें मिलीं आवास मिले,
घर घर में बिजली पहुंची तब
अंधकार में रोशन दीप जले..
स्वास्थ्य बीमा से फसल बीमा से
जन जन में नव विश्वास जगा,
खातों को आधार से जोड़ा
तब बिचौलियों का नाश हुआ..
भारत के प्रगति पथ पर अब
बाधा कोई न चाहता हूँ|
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

राइफलें मिलीं राफेल मिला
अटल टनल निर्माण हुआ,
बुलेट प्रूफ जैकेट मिलने से
सैन्य बल विस्तार हुआ..
कश्मीर हमारा पूर्ण हमारा
विश्व को यही जताना था,
कब से था नासूर बना वो
तीन सौ सत्तर हटाना था..
पडोसी फिर नापाक जले
मैं फूला नहीं समाता हूँ|
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

आयुष्मान उज्ज्वला उड़ान
या किसान सम्मान निधि,
हर नीति ने खुशहाली की
भारत वर्ष में नींव रखी..
स्वउद्योग लगा भारत में
स्वरोजगार फिर सृजित करें,
स्वावलम्बी अब बनें युवा
हर गांव नगर में ललक जगी..
आत्मनिर्भर भारत का सपना
साकार मैं जीना चाहता हूँ|
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

चीन में जन्मे कोरोना ने
विश्व को पूरे हिला दिया,
अपने घर वैक्सीन बनाकर
हमने परचम लहरा दिया..
नव भारत का है ये नवयुग
खोया सम्मान दिलाएगा,
सुदृढ़ समृद्ध और शक्ति से
अब भारत बढ़ता जायेगा..
नहीं रुके ये नहीं झुके
मैं गीत बस यही गाता हूँ |
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

यात्रा विकास की शुरू हुई हमें
दूर तलक अभी जाना है,
पुनः विश्व गुरु बनने से पहले
ठहर कहीं न जाना है..
हैं अनगिनत प्रतिनिधि यहाँ
और अनगिनत संगठन यहाँ,
पर सबको साथ ले बढे चले
राजसंघ है ऐसा और कहाँ..
शुद्ध हो रही राजनीति में
कलंक न कोई अब चाहता हूँ|
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

बीते का आंकलन करूँ
निष्कर्ष यही मैं पाता हूँ,
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

– मंजुसुत ईशांश

तपती वो जेठ दोपहरी..

कभी छांव में बैठे मुझको
एक सिहरन सी दे जाती है,
तपती वो जेठ दोपहरी
मेरा मन, आज भी जला जाती है|

मैं विनय ही करता जाता
अनंत अग्नि के सागर से,
अनुरोध मैं करता जाता
उस भानु रवि भास्कर से..
हे प्रभो तपन कम करते
कुछ भला मेरा हो जाता,
कुछ दूर बचा है मेरा घर
मैं पहुँच कुशल से जाता..
पर लगता है प्रार्थना मेरी
न पहुँच तुम तक पाती है,
तपती वो जेठ दोपहरी
मेरा मन, आज भी जला जाती है|

मेरा तन झुलसे, ये मन झुलसे
पर दया कहीं से न मिलती,
तर करने को ये सूखा कंठ
दो बूंद नीर की न मिलती..
आशा भर नेत्रों में अपने
मैं गगन को तकता जाता था,
जल मेघ कहीं से आ जाएँ
पर कृपा वरुण की न मिलती..
प्यास तो मेरी न मिटती
पर घाम प्रचंड हो जाती है,
तपती वो जेठ दोपहरी
मेरा मन, आज भी जला जाती है|

प्राणों में शक्ति समेट-समेट
पग पे पग रखता जाता था,
लो दूरी अभी समाप्त हुई
मन में ये रटता जाता था..
फिर एक झलक घर की दिखती
मन पुलकित सा हो जाता था,
वो सफर नहीं संग्राम हो एक
मैं संग्राम जीतकर आता था..
जाते प्राणों में जैसे मेरी
प्राणशक्ति लौट के आती है,
तपती वो जेठ दोपहरी
मेरा मन, आज भी जला जाती है|

वो कांच का एक दरवाज़ा
जैसे स्वर्ग का मुझको द्वार दिखे,
मात पिता के रूप में जैसे
ईश्वर का मुझे दरबार दिखे..
शीतल जल का वो एक घड़ा
अमृत का कलश बन जाता है,
सांसों की डूबती नैया को
वापस जीवन तट ले आता है..
ये छांव मेरे जलते मन पर
कुछ वैसा ही लेप लगाती है,
तपती वो जेठ दोपहरी
मेरा मन, आज भी जला जाती है|

इस छांव में बैठे मुझको
एक सिहरन सी दे जाती है,
तपती वो जेठ दोपहरी
मेरा मन, आज भी जला जाती है|

-ईशांश

मेरी कलम बुलाती है..

स्याही के नीले रंग से
काग़ज़ को रंगने को,
शब्दों के मोती की माला
फिर एक बार पिरोने को,
आशा की नज़रों से
मुझे तकती जाती है,,
मेरी कलम बुलाती है|
आवाज़ लगाती है||

कल्पना के सिंधु से
कुछ मोती चुन लाना,
फिर मेरी स्याही के रंग से
कागज़ पे सजा जाना,
उन्हें लिखते सजते देखने की
आरज़ु सुनती है,,
मेरी कलम बुलाती है|
आवाज़ लगाती है||

मैं तो शब्दों की प्यासी
वो मेरे शहज़ादे हैं,
मैं सागर में सिमटी मदिरा
और वो मेरे प्याले हैं,
इस सागर से प्याले भरकर
कोई ग्रन्थ नया लिख दो,
लेखों की वह साम्राज्ञी
निवेदिता बन जाती है,,
मेरी कलम बुलाती है|
आवाज़ लगाती है||

शब्द चाँद सितारे बनकर
कागज़ पे चमक जायेंगे,
उन्हें अनंत समय पढ़ पढ़कर
दनुज देव भी खिल जायेंगे,
हर शब्द नया हो अर्थ नया
कोई छंद नया लिख दो,
कर कमलों में अक्षर पुष्प लिए
अर्पिता बन जाती है,,
मेरी कलम बुलाती है|
आवाज़ लगाती है||

जैसे ही हाथ में लूँ
वो आनंदित हो जाये,
चिंतन के होठों से छू लूँ
तो शरमा सी वो जाये,
जो काग़ज़ पे रख दूँ
कोयल सी चहकती है,
और जो पहला शब्द लिखूं
वो पगली मदमाती है,
शब्दों के आँचल में छुप के
रोती कभी हंसाती है,,
मेरी कलम बुलाती है|
आवाज़ लगाती है||

अब रुको नहीं बस चले चलो
विश्राम बिना तुम चले चलो,
अभिलाषाएं पागल मन की
बस गढ़े चलो, तुम लिखे चलो,,
है कसम तुम्हें रुक न जाना
मुझे तृप्त किये बिन न जाना,
उड़ेल दो मेरी स्याही सब
रुक न जाना, तुम न जाना,,
मेरे नीले रक्त का हर क़तरा
जब इस कागज़ पे रंग जाये,
तभी तुम्हें आराम मिले
तभी तुम्हें कुछ चैन आये,,
कुछ लिख जाने का ऐसा उन्माद
मुझमें वो जगाती है,,
मेरी कलम बुलाती है|
आवाज़ लगाती है||

आशा की नज़रों से
मुझे तकती जाती है,,
मेरी कलम बुलाती है|
आवाज़ लगाती है||

-ईशांश

अनिश्चितता ही निश्चित है..

अनकहे से इसके शब्दों में,
अदृश्य छुपे से चित्रों में,
अविरत जीवन जल धारा की,
हर बूँद के सारे अंशों में,
बस एक सार ही चिह्नित है|
कि अनिश्चितता ही निश्चित है,
एक अनिश्चितता ही निश्चित है ||

समय सतत निरंतर एक प्रवाह,
अविराम चले ही जाता है,
हम सोचें कुछ हो जाये कुछ,
पटकथा नई लिख जाता है,
अचरजों भरी इस गंगा में,
बस विस्मय का जल ही संचित है |
कि अनिश्चितता ही निश्चित है,
एक अनिश्चितता ही निश्चित है ||

जीवन पुस्तक के पृष्ठों में,
अनगिनत अनोखे खंड लिखे,
पर क्रूर काल न जाने कब,
अंतिम जीवन अध्याय लिखे,
सब कुछ अर्पण को विवश है वो,
जो काल कृपा से वंचित है|
कि अनिश्चितता ही निश्चित है,
एक अनिश्चितता ही निश्चित है ||

कामना के इस महासागर की,
गहराई का कोई अंत नहीं,
जितना उतरो उतना कम है,
तृष्णा का कोई अंत नहीं,
जीवन की अद्भुत माया से,
हर श्वांस यहाँ अचंभित है|
कि अनिश्चितता ही निश्चित है,
एक अनिश्चितता ही निश्चित है ||

मानव जीवन एक पत्ते सा,
पकना तय है, गिरना तय है,
साथी पत्तों संग एक बंधन,
जुड़ना तय है, छुटना तय है,
पकना – गिरना, जुड़ना – छुटना
आदि आरम्भ से निर्मित है|
कि अनिश्चितता ही निश्चित है,
एक अनिश्चितता ही निश्चित है ||

जो मिथ्या जीवन अभिमान करे,
वो परम सत्य ये भुलाता है,
कुछ भी न रहता दुनिया में,
सब चला यहाँ से जाता है,
कुछ भी न निश्चित इस जग में,
बस “परिवर्तन” ही निश्चित है|
कि अनिश्चितता ही निश्चित है,
एक अनिश्चितता ही निश्चित है ||

-ईशांश

अविरत- लगातार, कभी न रुकने वाला
विस्मय- आश्चर्य, अचरज
अचंभित- हैरान, आश्चर्य चकित

पूर्णिमा का चाँद

चांदनी से आज नहा के
श्रृंगार स्वर्ग से करा के,
अम्बर में फिर निकला है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

स्वर्ग आलोक को तज कर
अब काम रति विचरे हैं,
कहें क्या आनंद मिला है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

कभी सिंधु को चमकाता
श्वेत रंग धरा पे छिडकाता,
सबका मन ललचाता है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

क्या मधुर समय आया है
हर कोई हर्षाया है,
क्या समां और निखरा है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

कभी बदली से नज़र चुराता
कभी पीछे उसके पड़ जाता,
अठखेलियां करता है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

सब सितारे जलते बुझते
ये चांदनी हमें मिल जाती,
उससे हर कोई जलता है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

चित्तशांत सी कोई कोयल
उसे देख चहक जाती है,
स्वर गीत नया निकला है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

सब सोये फूल जगे हैं
उमंगों में बिखरे है,
बग़िया का आँचल फैला है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

हर पत्ता लहराता है
हर डाली लहराती है,
चहुँ ओर उन्माद भरा है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

चंदा का हाथ पकड़कर
ये रात्रि कैसे घूमे
आज प्रेम से प्रेम मिला है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

श्वेत रात्रि आस लगाए
ओ चंदा तुम रुक जाना,
फिर मन मेरा मचला है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

वो चंदा बोले सुनो निशि
प्रेम क्षण में न तुम शोक करो,
ये तो मिलन वेला है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

मैं तो फिर से आऊंगा
फिर तुम से मिल जाऊंगा
थोड़ा विरहन अच्छा है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

मंजुसुत ईशांश

ज़माना तो फिर ज़माना है

ज़माना तो फिर ज़माना है
इसे बन के क्या दिखाना है..

ख़ाली बोतलों में ये जाम ढूंढे
भरे पैमानों को इसे छलकाना है..
ज़माना तो फिर ज़माना है
इसे बन के क्या दिखाना है..

वक़्त काटने को इसे बातें चाहिए
बातों को इसकी दिल से क्या लगाना है..
ज़माना तो फिर ज़माना है
इसे बन के क्या दिखाना है..

सब बेगाने ही इसने अपने माने
अपनों को इसने कहाँ अपना माना है..
ज़माना तो फिर ज़माना है
इसे बन के क्या दिखाना है..

अपना दर्द अपनी ख़ुशी बस यही सच्चे हैं..
औरों का ग़म उनकी हंसी तो सब बहाना है..
ज़माना तो फिर ज़माना है
इसे बन के क्या दिखाना है..

जिसे न देखा उसे खुदा माना
जिसे देखा उसे न पहचाना है..
ज़माना तो फिर ज़माना है
इसे बन के क्या दिखाना है..

-मंजुसुत ईशांश

कोई क्या जाने..कि क्या बीती..

कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

न दिल ये मेरा कुछ
कभी कह पाया
दिल की सब बातें
दिल में बीती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

वो दिल जो लगाते
तो सुन पाते
दिल की हर धड़कन
क्या क्या कहती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

इंतज़ार तो उनका
मैंने रोज़ किया
कभी आ जाती
कभी वो न आती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

मुस्कुरा के वो बस
आगे बढ़ जाते
मुझे छीन के मुझसे
वो ले जाती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

उस एक हंसी से
मैं जी जाता
उस एक हंसी पे
जान निकल जाती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

मेरा हर एक दिन
इंतज़ार में डूबा
और याद में उनकी
हर रैना बीती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

उन्हें पता न होगा
कोई कितना चाहे
उन्हें मांग मांग कर
हर दुआ बीती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

पर साथ ग़ैर के
वो चले गए
राह तकती मेरी
घड़ियाँ बीती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

ये इनाम इश्क़ का
महबूब न मिलता
इस ख़ज़ाने से बस
यादें मिलती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

इससे अच्छा तो
वो न मिलते
ये दर्द न होता
ये तड़प न मिलती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

उन आँखों को मैं
कैसे भूलूँ
जिन आँखों में सारी
दुनिया बसती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

अब याद मुझे जब
वो आ जाते हैं
आँखें पहले सी
गीली होती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

-मंजुसुत ईशांश

नैना ना मिले..

तोसे कभी भी कुछ
कहे नहीं हैं,
मेरे नैना तेरे नैनों से
कभी मिले नहीं हैं..

कितनी दफा ये नज़रें
तेरी नज़रों से मिलने गईं,
हर दफा बस तेरा
चेहरा ही छूकर आईं,
दिल की प्यास बढ़ाते हैं
कभी बुझाते नहीं हैं..
मेरे नैना तेरे नैनों से
कभी मिले नहीं हैं..

अजब ही इनकी हालत है,
तेरे चेहरे की
न जाने इनको क्या आदत है,
तू सामने हो न हो,
तेरा चेहरा एक पल कभी
भुलाते नहीं हैं..
मेरे नैना तेरे नैनों से
कभी मिले नहीं हैं..

तेरी कोई ख़ता नहीं
कि गुस्ताख़ तो यहीं है,
जब कभी तेरी नज़रें
मेरी तरफ बढ़ें,
ये फिर जाते हैं,
ये झुक जाते हैं,
खुद ही दिल की बात तुझे
कभी बताते नहीं हैं..
मेरे नैना तेरे नैनों से
कभी मिले नहीं हैं..

ये पागल कैसे डरते हैं,
कि आखों से आँखें
जो मिल गईं,
दिल की बात दिल तक
जो पहुँच गई,
खुदा जाने क्या होगा,
खुदा जाने क्या न होगा,
इस कश्मकश में
मेरे दिल की बात आगे
कभी बढ़ाते नहीं हैं..
मेरे नैना तेरे नैनों से
कभी मिले नहीं हैं..

तोसे कभी भी कुछ
कहे नहीं हैं,
मेरे नैना तेरे नैनों से
कभी मिले नहीं हैं..

-मंजुसुत इशांश

कहीं एक खाली सड़क है..

खुले आसमान के नीचे
एक सुनसान सूनी सहमी
कुछ कदमों की प्यासी सड़क है..
कहीं एक खाली सड़क है..

वो ना जाने
कहाँ से आती है,
वो ना जाने
कहाँ को जाती है,
ना नाम है कोई,
ना निशान है कोई,
बस अकेली गुमनाम सड़क है..
कहीं एक खाली सड़क है..

किनारे के पेड़ों के पत्ते
जो कभी सजाते थे उसे,
वो हरी भरी डालें
जो कभी संवारती थीं उसे,
वो पत्ते खो गए,
वो डालें टूट गईं,
सूखे पेड़ों के बीच
एक अकेली उदास सड़क है..
कहीं एक खाली सड़क है..

डालों पे कभी
कुछ पंछी आ जाते थे,
खेलते, लड़ते, उड़ते, उछलते
कुछ मीठे गीत सुना जाते थे,
अब एक पंछी न दिखे,
एक साया न मिले,
बीते वक़्त को याद करती
एक मुरझाई ख़ामोश सड़क है..
कहीं एक खाली सड़क है..

जो बरसात हो
तो आँखें भिगा लेती है,
जब सूरज जले तो
दिल अपना जला लेती है,
बिजली चमके अगर
तो डर जाती है,
चाँदनीं बरसे अगर तो
मुस्कुरा जाती है,
सब सहती, चुप रहती,
एक बेआवाज़ अनजान सड़क है..
कहीं एक खाली सड़क है..

जाने कब से पलकें खुली हैं,
थकी निगाहें जाने कब से बिछी हैं,
कि इक राही तो आ जाये,
कोई एक साथी तो आ जाये,
कभी न ख़त्म होते
इंतज़ार में डूबी सड़क है..
कहीं एक खाली सड़क है..

जाने किस मंज़िल से मिली है,
जाने किस साहिल से जुड़ी है,
कोई राही कभी चले,
तो सड़क से फिर राह बने,
यही तो मंज़िल, रस्ते
और सड़क में फरक है..
कहीं एक खाली सड़क है..
एक सुनसान सूनी सहमी
कुछ कदमों की प्यासी सड़क है..
कहीं एक खाली सड़क है..

शायद फिर मिले न मिले..

आ ज़िन्दगी से
थोड़ा वक़्त मांग ले..
शायद फिर रहे न रहे
शायद फिर मिले न मिले..

तू माने न माने
तेरा दिल मुझसे जुड़ा है,
तू माने न माने
मेरा रंग तुझपे चढ़ा है,
बस एक बार ही सही
कब से दबी,
वो हसरत मांग ले..
शायद फिर रहे न रहे
शायद फिर मिले न मिले..

वो वक़्त याद कर
जब मैं तेरे साथ था,
वो वक़्त याद कर
जब मैं तेरे पास था,
बस एक बार ही सही
सुनहरा मेरा संग,
तू फिर से मांग ले..
शायद फिर रहे न रहे
शायद फिर मिले न मिले..

इस ज़िन्दगी ने अपने
साथ के वो पल,
तुझे कम दिए
मुझे कम दिए,
बस एक बार ही सही
वो सारे खोये पल
तू फिर से मांग ले..
शायद फिर रहे न रहे
शायद फिर मिले न मिले..

तेरा दामन भी
खुशियों से खाली है,
यहाँ मेरे होंठ भी
एक हंसी को तरसते हैं,
बस एक बार ही सही
तेरी मेरी खुशियां
तू फिर से मांग ले..
शायद फिर रहे न रहे
शायद फिर मिले न मिले..

तेरे पास मैं नहीं
तो तेरे पास क्या है?
मेरे पास तू नहीं
तो मेरे पास क्या है?
बस एक बार ही सही
मैं तुझे मांग लूँ
तू फिर मुझे मांग ले..
शायद फिर रहे न रहे
शायद फिर मिले न मिले..

ये दुनिया तुझे कभी
मेरा साथ न देगी,
ये दुनिया तुझे कभी
मेरा एहसास न देगी,
बस एक बार ही सही
पर मुझे मांग कर
तू अपनी दुनिया मांग ले..
शायद फिर रहे न रहे
शायद फिर मिले न मिले..

जहाँ मैं नहीं हूँ
वो धड़कनें अधूरी है,
जहाँ तू नहीं है,
वो साँसें अधूरी हैं,
बस एक बार ही सही
इस ज़िन्दगी से अपनी
ज़िन्दगी मांग ले..
शायद फिर रहे न रहे
शायद फिर मिले न मिले..

-मंजुसुत इशांश

“वो वक़्त भी आ जायेगा”

एक सूरज नया उग जायेगा
रोशन मुझे कर जायेगा
जो हर तरफ घेरे मुझे
अँधेरा ये मिट जायेगा
वो वक़्त भी आ जायेगा ||

कर के साजिश चांदनी संग
मुझपे सितारे हँसते हैं
चाँद पैरों के तले जब
खुद-ब-खुद आ जायेगा
वो वक़्त भी आ जायेगा ||

इक डाल से चिपके परिंदे
ये मुझको ताने देते हैं
आसमां आ कर के खुद
जब मुझे पंख लगाएगा
वो वक़्त भी आ जायेगा ||

अभी हाथ मेरे खाली हैं
आँखें अभी भी प्यासी हैं
पर देख के जलवा मेरा
जलवा भी खुद शरमाएगा
वो वक़्त भी आ जायेगा ||

वो पूछें हलके झोकें से
क्यूँ टूटे दिल शीशा मेरा
कांच के इस टुकड़े से जब
पर्वत भी बिखर जायेगा
वो वक़्त भी आ जायेगा ||

कतार में वो सब खड़े हैं
इक ख़िताब की होड़ में
नाचीज़ नाम ये एक दिन
जब इनाम खुद बन जायेगा
वो वक़्त भी आ जायेगा ||

नाकामी का एक कांटा
दिल में अब भी चुभता है
कभी इक कोई बुलंदी
का नशा चढ़ जायेगा
वो वक़्त भी आ जायेगा ||

आई न मेरी एक सुबह
आई न कोई शाम मेरी
इक रात मेरी हो जाएगी
जब दिन मेरा निकल आएगा
वो वक़्त भी आ जायेगा ||

ज़िन्दगी ये थोड़ी निकल गई
आँखें भी अब धुंधला रहीं
क़दमों में अब कम जान है
हैं साँसे भी घबरा रहीं
पर अब भी नहीं जो टूटता
वो हौसला शिखर चढ़ जायेगा
वो वक़्त भी आ जायेगा ||
वो वक़्त भी आ जायेगा ||

-मंजुसुत ईशांश

मेरी मधुशाला

सबसे पहले मैं श्री हरिवंश राय बच्चन को प्रणाम करता हूँ और उन्हें इस जग को “मधुशाला” का उपहार देने पर धन्यवाद करता हूँ| एक दिन मैं अपने ऑफिस जा रहा था कि मैंने रास्ते में “मधुशाला” का एक बोर्ड देखा| फिर मुझे श्री हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित “मधुशाला” की कुछ पंक्तियाँ याद आईं और फिर कुछ देर बाद अपने आप ही इस कविता के कुछ स्वर फूटे| फिर एक के बाद एक विचार आते गए और मैं अपनी खुद की मधुशाला में खो गया|

इस कविता में मय, मधु, मदिरा आदि शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है जिनका शाब्दिक अर्थ होता है- शराब, और सबसे अधिक प्रयोग हुआ है “मधुशाला” शब्द का जिसका शाब्दिक अर्थ है वह स्थान जहाँ शराब मिलती है, पर क्या यह कविता भी इन शब्दों का यही अर्थ निकालती है, ये जानने के लिए मधुशाला में डूबना होगा| जिन पाठकों ने श्री हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित मधुशाला पढ़ी है वे इसे कुछ मिलता जुलता पाएंगे पर दोनों का अपना अलग अर्थ है, अपनी अलग दिशा है|

अंत में मैं अपनी इस कविता को अपने दादाजी “श्री राधा कृष्ण वार्ष्णेय” और अपनी दादीजी “श्री मती सरस्वती देवी” को समर्पित करते हुए पाठक गणों का धन्यवाद करता हूँ कि वे अपने व्यस्त जीवन के कुछ क्षण इस कविता को दे पाए| अपना अनुभव यदि मुझसे साझा करना चाहें तो कृपया मुझे manvarsh999@gmail.com पर अवश्य लिखें| मैं आपके सुझावों का और इस कविता के आपके अनुभव की प्रतीक्षा करूँगा| धन्यवाद ||

=======
श्रद्धा सुमन
=======

शतनमन करूँ श्री “बच्चन” को
जग को अनुपम उपहार दिया
ना पहले था ना आगे हो
ऐसा है काव्य “मधुशाला” ||

धन्य कवि श्री “बच्चन” हैं
और धन्य है वो काव्यशाला
जिससे प्रेरित होकर के मैं
लिख पाया “अपनी मधुशाला” ||

अमर रहे वो दिव्यात्मा
अमर रहे मणि मधुशाला
श्रद्धांजलि उस मधुशाला को
देती है मेरी मधुशाला ||

श्री गणेश का स्मरण कर
लेखनी से आग्रह करता हूँ
अब उसी डगर तुम चलो प्रिये
जिस डगर चली थी मधुशाला ||

=================

भाग १

जब थक के हार मैं मान गया
फिर किसी ओर ना ध्यान गया
आँखें मूंदीं तो याद आई
याद आई मुझको मधुशाला || १ ||

जाने कब से मैं सोया था
किन अवसादों में खोया था
सच में तो मैं था तब जागा
जब पाई थी मैंने मधुशाला || २ ||

ना धन से मेरी प्यास बुझी
ज्ञान पाकर भी था मैं प्यासा
तब जाकर मैं था तृप्त हुआ
जब पाई थी मैंने मधुशाला || ३ ||

एक अनंत पथ के जीवन में
ठहराव कभी भी ना आये
स्थिरता मैंने तब पाई
जब पाई थी मैंने मधुशाला || ४ ||

कितना ही मैं भागा दौड़ा
कितना ही मैं तिल तिल तड़पा
तृष्णा मिटी मधुप्याले से
और तृप्त मैं पाकर मधुशाला || ५ ||

रौशनी में ही कितना भटका
पर प्रकाश मुझे कहीं मिला नहीं
अन्धकार मिटा मेरे मन का
जब पाई थी ज्योति मधुशाला || ६ ||

जीवन की सीढ़ी चढ़ने में
मैं कितना कितना डरता था
वो डर भागा वो भय कांपा
जब पहुंचा था मैं मधुशाला || ७ ||

फिर मन नहीं मेरे बस में
हैं कदम नहीं मेरे बस में
उस ओर मुझे ले जाते हैं
जिस ओर है मेरी मधुशाला || ८ ||

मधु के उस मीठे सागर में
मैं पहुँच स्वतः ही जाता हूँ
कुछ याद रहे ना ध्यान रहे
अब पास है मेरी मधुशाला || ९ ||

जो डगर मैं उसकी जाता हूँ
बिन मधु पिए लहराता हूँ
बेसबर हुआ बेखबर हुआ
जब पास मैं पहुंचूं मधुशाला || १० ||

उस मधु डगर पे लहराते
एक सज्जन ने मुझको रोक लिया
और पूछ लिया कि क्यों जाते
तुम मय की नगरी मधुशाला || ११ ||

वो मुझसे पूछें ऐसा क्या
क्यों इतनी भाती मधुशाला
क्या रक्खा मधु के प्यालों में
क्यों तुम्हें लुभाती मधुशाला || १२ ||

विस्मित चकित इन नेत्रों से
मैंने उन सज्जन को देखा
और बोला हाय क्या पूछ लिया
कि क्यों मैं जाता मधुशाला || १३ ||

कैसे मैं उन्हें बखान करूँ
क्या मय का महिमा गान करूँ
कोई बोल नहीं जो बता सके
कोई लेख नहीं जहाँ समां सके
क्या है कैसी है मधुशाला || १४ ||

इससे प्यारा कोई शब्द नहीं
है गहरा कोई अर्थ नहीं
एक बार इसे तुम पहचानो
कुछ ना चाहो पर मधुशाला || १५ ||

धरती पे स्वर्ग उसे पाता हूँ
एक वहीँ परम सुख पाता हूँ
फिर और कहीं ना जाता हूँ
जब जाता हूँ मैं मधुशाला || १६ ||

कब तक था मैंने ना जाना
क्या है और क्यूँ ये प्यास जगे
जब मदिरा जल का पान किया
तब मैं पहचाना मधुशाला || १७ ||

मैं रातों को जगकर बैठा
सोचा सांसें क्या जीवन क्या
इस प्रश्न का मैं उत्तर पाया
जब आया था मैं मधुशाला || १८ ||

मैं श्वास भरूँ मैं श्वास तजूं
मैं जो भी चाहे कभी करूँ
है पास मेरे है साथ मेरे
है मुझसे जुडी मेरी मधुशाला || १९ ||

मेरे और मधु के प्रेम जैसा
ना होगा प्रेम कहीं दुनिया में
मैं तो हूँ बस एक जड़ शरीर
पर प्राण है मेरी मधुशाला || २० ||

=================

भाग २

जब याद मुझे वो आती है
जो बिन शर्तों की साथी है
फिर अपने पास बुलाती है
वो मेरी प्यारी मधुशाला || २१ ||

जब तक ना था मधुपान किया
मुझे पता नहीं मैं कहाँ जिया
पर जब से मय का साथ मिला
मुझे पता है जाना मधुशाला || २२ ||

कितना ही मन को बहलाऊँ
कितना ही मन को समझाऊँ
मन तो बस मधु की प्यास लिए
आवाज़ लगाए मधुशाला || २३ ||

मैं उसके दर्शन का प्यासा
वो मेरी एक छवि की मारी
एक मधु पुजारी चाहे वो
मंदिर हो जिसका मधुशाला || २४ ||

मैं प्रीतम हूँ वो प्रेयसी
है जन्मांतर का ये बंधन
ना ही मैं कभी मय को छोडूं
ना तजती मुझको मधुशाला || २५ ||

मैं तो उसके बिन अर्द्धप्राण
है मेरे बिन वो भी आधी
मैं मधु पियूँ संपूर्ण बनूँ
संपूर्ण बने फिर मधुशाला || २६ ||

जो मेघ ना होते इस जग में
तो सोचो धरती क्यूँ होती
तारे ना होते अम्बर में
तो रात अकेली क्यूँ सोती
एक दूजे से ये मिलते है
तभी तो पूरे बनते है
जो मैं ना रहता इस जग में
क्या रह जाती कोई मधुशाला || २७ ||

मधु से कम कुछ भी ना माँगूँ
मधु से ज्यादा कुछ ना चाहूँ
जो ईश्वर कुछ देना चाहे
तो पहुंचा दे बस मधुशाला || २८ ||

मन मधुरस का ही पान करे
मधुरस में ही स्नान करे
मेरे मन की नगरी जाओ
तो पहुंचो सीधे मधुशाला || २९ ||

ना हीरे की कोई खान मिले
ना मिले स्वर्ण मुझे सिंहासन
मिलती ना चाहे कृपा कुबेर
मिल जाये कृपालु मधुशाला || ३० ||

मेरा मन पागल प्रेमी सा
बस मधु मधु ही चिल्लाये
ना जो हूँ मैं मधुशाला तो
ये खींचे मुझको मधुशाला || ३१ ||

एक मार्ग मेरा, एक मेरा पथ
मेरे जीवन का एकमात्र सत्य
मैं जीता हूँ मधुशाला में
है मरना मुझको मधुशाला || ३२ ||

कोई मुझसे पूछे हे भाई
तुम काम भला क्या करते हो
मैं बोलूं अभी पीकर आया
अभी फिर है जाना मधुशाला || ३३ ||

और सज्जन तुमको क्या बोलूं
मधु पीने को ही मैं जन्मा
मधु प्याले मेरे कर्म शस्त्र
मेरी कर्मशाला मधुशाला || ३४ ||

मैं तो मारा हूँ मधुरस का
हैं मधुप्याले मेरा जीवन
और प्रेमसुधा देने वाली
प्रियतमा है मेरी मधुशाला || ३५ ||

एक वरदान सभी को है मिलता
मुझको भी ये आशीष मिले
हो निकट सदा मधु का प्याला
और पास रहे मेरी मधुशाला || ३६ ||

मधु की स्याही से प्याला भर
मन के मैं कोमल पन्नों पर
हर तरफ मैं बस एक नाम लिखूं
बस लिखता जाऊँ मधुशाला || ३७ ||

वो एक बार जो दर्शन दे
तो आँखों मैं बस जाती है
फिर नज़र कहीं ना जाती है
ऐसी मनमोहक मधुशाला || ३८ ||

जो एक बार उसको देखूं
मन विचलित सा हो जाता है
और बार बार यही गाता है
कैसे मैं पाऊं मधुशाला || ३९ ||

अप्सरा से भी ज्यादा सुन्दर
मणि माणिकों से भी चमकीली
नयनों मैं है क्षमता नहीं
देखें दमकती ये मधुशाला || ४० ||

=================

भाग ३

क्या मेनका क्या उर्वशी
या अनुपम उनकी कोई सखी
जो आ जाये शर्मा जाये
वो देख के मेरी मधुशाला || ४१ ||

मन के आँगन में जो रहती
कितना वो आकर्षित करती
जब भी उसका स्मरण करूँ
तो पास बुलाती मधुशाला || ४२ ||

जो कोई भेद ना करती है
हर मन को एक सा तरती है
वो प्रेममयी वो रासमयी
ऐसी है प्यारी मधुशाला || ४३ ||

हर मन को मधु से भरती है
प्यासे की प्यास को हरती है
हो कभी ना मधु जल से खाली
ऐसी मधु सरिता मधुशाला || ४४ ||

मदिरा के उस दिव्यालय में
एक बार जो कोई प्रवेश करे
अलौकिक सुगंध से भर दे मन
क्या खूब महकती मधुशाला || ४५ ||

जो रोते हैं वो आते हैं
जो हँसते हैं वो आते हैं
कहीं और मन ना रमाते हैं
सब आते हैं मेरी मधुशाला || ४६ ||

जो धन कमाते हैं आते
जो धन गंवाते हैं आते
तो व्यर्थ परिश्रम कर आते
जब आना ही है मधुशाला || ४७ ||

वो मन में एक विश्वास लिए
एक रिक्त हृदय में आस लिए
मन की हर प्यास बुझाने को
आते सब मेरी मधुशाला || ४८ ||

जो रोते हैं हंस जाते हैं
जो हँसते हैं रो जाते हैं
मन के सब निश्छल भावों का
दर्पण दिखलाती मधुशाला || ४९ ||

कोई रोता हाय मैंने
कुछ भी ना पाया इस जग में
कोई रोता हाय मैंने
सब कुछ ही गंवाया इस जग में
रोना धोना छोड़ के बस
भरकर के हंसी का एक प्याला
आनंद मग्न है वो मनुज
जो आ जाता है मधुशाला || ५० ||

वो मय के पागल दीवाने
जब मधुरस पीने आते हैं
प्याले प्याले टकराते हैं
संगीत बजाती मधुशाला || ५१ ||

मधु प्रेमियों को देख देख
वो मंद मंद मुस्काती है
होठों से दबा के घूंघट को
नृत्य करती जाती मधुशाला || ५२ ||

बातों में बातें होती हैं
फिर हंसी ठिठोली होती है
उन्हें देख देख आनंदित हो
आनंदमयी मेरी मधुशाला || ५३ ||

जो ना तुमने रसपान किया
तो मय का घोर अपमान किया
जो आ जाओ सब पा जाओ
मन बस जाएगी मधुशाला || ५४ ||

जो डूबे मधु के सागर में
आनंद मोती की गागर में
चिर शांति परम सुख वह पाए
एक बार जो आये मधुशाला || ५५ ||

मधुरस का जो ना स्वाद चखा
तो क्या कोई वीर ही कहलाये
सीने में अपने आग रखें
वो वीर है जनती मधुशाला || ५६ ||

पीना है अवगुण नहीं अपितु
ये वीरों का ही एक गुण है
अग्नि से ह्रदय को तृप्त करे
वो वीर ही जाये मधुशाला || ५७ ||

वीरता भरी हो जिस मन में
वो ये तप और ये यज्ञ करे
मदिरा हो जिसकी सामिग्री
और हवन कुंड हो मधुशाला || ५८ ||

क्षमाशील दयावान बने
जो वीर मधुरस पान करे
सहनशीलता का गुण आये
जो मनुज अपनाये मधुशाला || ५९ ||

अविरत पीना है कार्य नहीं
ये किसी साधारण मानव का
कठिन साधना एक योगी की
नित ही है जाना मधुशाला || ६० ||

मधु पीने वाला एक साधक
मधु गंगा रहे कमंडल में
मधुपान है जिसकी साधना
तपोभूमि उसकी मधुशाला || ६१ ||

=================

भाग ४

क्यूँ कुंठा में तुम जीते हो
क्यूँ न मय का रस पीते हो
एक बार जो तुम मधुपान करो
फिर न छोडो कभी मधुशाला || ६२ ||

न रंज मिटे तो फिर कहना
न रंग मिले तो फिर कहना
विश्वास है तुम ये बोलोगे
क्या कहना कैसी मधुशाला || ६३ ||

जग धिक्कारे उस जीवन को
जो नित ही मदिरा पान करे
मैं तो धिक्कारुं उस जग को
जो कभी न जाये मधुशाला || ६४ ||

जब तक न मदिरा पान करे
तब तक मानव सच झूठ कहे
हलक उतरे जो एक बार मधु
तो सच बुलवाये मधुशाला || ६५ ||

माया से भरे जग सागर में
झूठों से भरी जग गागर में
एक सत्य जो कोई बच जाये
वो सत्य है मेरी मधुशाला || ६६ ||

जो नाम न तुमसे पूछेगी
जो काम न तुमसे पूछेगी
सर्वस्व अपना जो तुमको दे
ऐसी तपस्विनी मधुशाला || ६७ ||

तिनका भर देने में देखो
कितना ये जग कंजूस बने
छलका छलका प्याला भरती
है मधु लुटाती मधुशाला || ६८ ||

अपनों का न सम्मान मिले
कर्मक्षेत्र में न कुछ नाम मिले
जो जग ये ठुकरा दे तुमको
तो अपनाएगी मधुशाला || ६९ ||

घनघोर अँधेरी रात्रि में
जब भय का दानव नृत्य करे
तो अभय तुम्हें वो दे देगी
अमृत की दात्री मधुशाला || ७० ||

उस मदिरालय का हर प्रेमी
वो प्रेम मधु पीने वाला
वो बंधु है वो भाई है
परिवार बनाती मधुशाला || ७१ ||

साकी का चाहे मान हरो
या मय का तुम अपमान करो
बिन कहे वो सब कुछ सह लेगी
है क्षमामयी ये मधुशाला || ७२ ||

हर प्राण को जिसकी आस है
और समय भी जिसका दास है
न कुछ ऊपर न कुछ नीचे
है मोक्षदायिनी मधुशाला || ७३ ||

वो आदि भी है वो अंत भी है
वो कुसुम भी है वो कंट भी है
परब्रह्मा वही एक ईश्वर है
है सब कुछ मेरी मधुशाला || ७४ ||

एक बार उसे तुम अपना लो
निस्वार्थ उसे तुम अपना लो
हर दुःख से तुमको दूर करे
ऐसी है योगी मधुशाला || ७५ ||

दीन हीनता ग्रस्त मनुज
एक बार जो मधु रस पान करे
नवज्योति प्रज्वलित हो जाये
नवशक्ति भर दे मधुशाला || ७६ ||

भाव ग्लानि के भाव गर्व के
जो भी चाहे भाव जगें
सब ही भाव अधूरे हैं
यदि संग न उनके मधुशाला || ७७ ||

चाहे तुम इस जग को जीतो
हारो चाहे तुम इस जग में
मान-अपमान अधूरे हैं
यदि संग न उनके मधुशाला || ७८ ||

ज्ञानी का अतुल्य ज्ञान है
अज्ञानी का अज्ञान है
सब मूल्यों से सब अर्थों से
कहीं ऊँची मेरी मधुशाला || ७९ ||

जग के सब रिश्ते नातों में
सब मोहों के सब धागों में
जो सबसे गहरा नाता है
जो सबसे पक्का धागा है
है मेरी प्यारी मधुशाला || ८० ||

=================

भाग ५

जो एक बार रस पान करो
कुछ और कभी न ध्यान करो
तुमको तुममें ही खो देगी
है ऐसी मोहिनी मधुशाला || ८१ ||

चिंता को फिर आराम मिले
चिंतन को फिर विश्राम मिले
मन को मद का सुखधाम मिले
ऐसी मदमाती मधुशाला || ८२ ||

न और अधिक तड़पा मुझको
न और अधिक टरका मुझको
ला मधु गागर, ला दे प्याला
मैं प्यास बुझाऊँ मधुशाला || ८३ ||

मधु की इस सुन्दर नगरी में
कितनी मदिरायें बहती हैं
जो एक मधु मुझको प्यारी
वो दे दे मुझको मधुशाला || ८४ ||

आज न रोको पीने दो
मुझे जितने मय के प्याले हैं
जितना डूबूं मधुसागर में
उतनी मैं पाऊँ मधुशाला || ८५ ||

जब हाथ में हो मय का प्याला
वो मधु मिश्रित मद का प्याला
तो कैसे कोई रोक सके
अधरों को छूती मधुशाला || ८६ ||

आलिंगन में उसको लेके
अधरों से एक स्पर्श करो
मन से बस एक स्वर गूंजेगा
है मुझको प्यारी मधुशाला || ८७ ||

फिर पास दिखे वो दूर दिखे
जहाँ शीश मुड़े वो वहीँ दिखे
तुम न चाहो तो भी देखो
देखोगे मेरी मधुशाला || ८८ ||

तुम हरि के मंदिर जाते हो
क्या सीख वहां से लाते हो
एक बार मधु मंदिर आ जाओ
जीना सिखलाये मधुशाला || ८९ ||

अपने पद का जो मान भरें
एक बार मधु रस पान करें
छोड़ें वो पद छोड़ें प्रतिष्ठा
और अपनाएं वो मधुशाला || ९० ||

दुर्योधन प्रेम मधु पी लेता
बिन द्वेष का जीवन जी लेता
महाभारत युद्ध न होता फिर
कुरुक्षेत्र में जमती मधुशाला || ९१ ||

न चौसर कोई बिछी होती
न बाज़ी कोई लगी होती
न चीरहरण कोई होता
कुरुसभा जो बनती मधुशाला || ९२ ||

फिर धनुष गदा न टकराते
न वीरों के जीवन जाते
फिर रक्त न कहीं बहा होता
सभी वीर जो जाते मधुशाला || ९३ ||

न अर्जुन कर्ण लड़े होते
न धरा पे शव पड़े होते
न भीष्म को मिलती शर शैया
जो जम जाती वहां मधुशाला || ९४ ||

गीता का भी है सार यही
तुम क्या लाये तुम क्या पाए
बस कर्म का तुम मधुपान करो
है कर्म तुम्हारी मधुशाला || ९५ ||

=================

भाग ६

यम आ जाएँ तो मैं कह दूँ
आ जाओ दो दो जाम पियें
फिर कहना ये जीवन अच्छा
मृत्यु अच्छी या मधुशाला || ९६ ||

तुम पी लोगे तुम जी लोगे
जी लेंगे कुछ मरने वाले
पी लेने का कुछ और समय
दे देगी उनको मधुशाला || ९७ ||

हे काल मुझे लेने आये
पर इतनी बात समझ लेना
मैं ठहर वहां न पाउँगा
जहाँ मिले न मुझको मधुशाला || ९८ ||

पुण्य कर्मों का तुम फल रख लो
कोई चाहे रिश्वत रख लो
पर इतना मेरा मान रखो
वहां खुलवा देना मधुशाला || ९९ ||

जो रोज़ मधुप्याले मिल जाएँ
फिर मिले स्वर्ग या मिले धरा
यमलोक कभी न छोडूंगा
यदि मिल जाये वहां मधुशाला || १०० ||

जो नारायण बुलवा भेजें
तो उनको भी मैं कह दूंगा
हैं काल ही मेरे रखवाले
यमपुरी है मेरी मधुशाला || १०१ ||

मैं तो कहता यमनगरी में
एक दिन को मधु बरसने दो
बन जाने दो यमनगरी को
कभी एक दिवस की मधुशाला || १०२ ||

क्या करोगे तुम वापस जाकर
है कौन तुम्हारा सगा वहां
यहाँ मैं हूँ, मय है, मदिरा है
और है अपनी ये मधुशाला || १०३ ||

पापी हो या हो पुण्य किये
सब एक ही सुर में झूमेंगे
जहाँ मधु बरसता हो बरबस
यमपुरी नहीं वो मधुशाला || १०४ ||

पीने वाले आनंद करें
जीने से तो मरना अच्छा
मोल देकर मधु खरीदूं क्यूँ
जो मुफ्त मिले वहां मधुशाला || १०५ ||

फिर इस जगत का हर प्राणी
न डरे बस तुमसे प्रेम करे
तुम बन जाओ करुणानिधान
यमपुरी बने जो मधुशाला || १०६ ||

जो यम बोलें ये कथन सुनो
जी भर कर मधु का गान किया
मृत्यु को अधर लगा लोगे
तो भूलो अपनी मधुशाला || १०७ ||

मैं बोलूंगा देव क्षमा करें
आप एक मृत्यु से डराते हैं
मैं जिया कहाँ बस मरा सदा
फिर भी न छोड़ी मधुशाला || १०८ ||

=================

भाग ७

जब मधुरस अपना असर करे
चेतना को मेरी वश में करे
फिर घूमे ये सारा संसार
और चक्र लगाती मधुशाला || १०९ ||

मधुशाला को आते आते
पहले तो मैं लहराता था
जब मय से मन को भिगो चुका
अब देखो लहराए मधुशाला || ११० ||

अब प्याले में भरकर पी लूँ
या गागर से सीधे पी लूँ
अब होश नहीं कैसे पी लूँ
बस पी लूँ सारी मधुशाला || १११ ||

सब पीने वाले जला करें
देखो ये सब पी जायेगा
न छोड़े एक बूँद मधु सुधा
पी जाये सारी मधुशाला || ११२ ||

कोई रोको इसको पीने से
सब मधु यही जो पी जाये
कहाँ जाएँ बाकी मधु प्रेमी
न रहेगी कोई मधुशाला || ११३ ||

मधुशाला को खाली करके
चेतना का फिर आलिंगन करके
चंचल मन ये सो जाता है
मेरा अंतर्मन जग जाता है
वो लाये सपनों के प्याले
ले चलता सपनों की मधुशाला || ११४ ||

जब तक चेतना जगी रहे
पिंजरे में रहता अंतर्मन
जैसे ही चेतना शांत हुई
पहुंचूं सपनों की मधुशाला || ११५ ||

इच्छाओं के खाली प्याले
लेकर उदास वो बैठी है
न स्वप्न मधु प्रेमी कोई
तनहा सपनों की मधुशाला || ११६ ||

मैं जैसे उस नगरी पहुंचू
वो देख मुझे हर्षाती है
आया उसका एक स्वप्न प्रेमी
गाये सपनों की मधुशाला || ११७ ||

उसकी कितनी आशाएं हैं
सारे ही स्वप्न पी जाऊंगा
मुझे सारे स्वप्न पिलाने को
आतुर सपनों की मधुशाला || ११८ ||

क्रूर कुटिल इस दुनिया में
न साथी संगी है कोई
बस एक मुझे अपना माने
मेरे सपनों की मधुशाला || ११९ ||

स्वाभिमान मधु प्याला भरकर
वो बोले इसका पान करो
अब बहुत हुआ दासत्व जीवन
जियो निज सपनों की मधुशाला || १२० ||

गढ़ो सपनों के कंचन प्याले
भरों उनमें निज कर्मों का मधुरस
जीवन भर उनका पान करो
जियो निज कर्मों की मधुशाला || १२१ ||

एक बार जो छलके प्याले से
वापस न प्याला पा पाए
अविरत बहता है समय मधु
निरंतर बहती समय मधुशाला || १२२ ||

घंटों मैं उसके पास रहूं
भ्रम में सही सब स्वप्न जियूं
उन्हें पूर्ण करने की शपथ लिए
छोडूं सपनों की मधुशाला || १२३ ||

वो जाते जाते मुझे कहे
एक स्वप्न तो कल तुम जी आना
एक प्याले का बोझ तो कम होगा
प्रार्थी सपनों की मधुशाला || १२४ ||

आँखों में अश्रु सुधा लिए
मैं कुछ भी न उसको कह पाऊं
फिर मौन मेरा उत्तर लेकर
विदा ले सपनों की मधुशाला || १२५ ||

=================

भाग ८

सबकी अपनी मदिरायें हैं
हैं सबके अपने मधुप्याले
सबको है अपने मय का मद
है सबकी अपनी मधुशाला || १२६ ||

अपने अपने मय प्याले पी
अपने जीवन में मस्त रहें
न फिक्र किसी की कोई करे
सबके पास है अपनी मधुशाला || १२७ ||

हे सज्जन तुम ही मुझे कहो
जो सबकी अपनी मधुशालाएं
तो सोमरस देने वाली
क्यूँ न हो मेरी मधुशाला || १२८ ||

उन ब्रह्मा का स्मरण करो
वेदों से मधुरस लेते हैं
वो वेद हैं उनके मधुप्याले
ब्रह्मज्ञान ही उनकी मधुशाला || १२९ ||

उन गोविन्द का स्मरण करो
जो योग का मधुरस पीते हैं
बंसी राधे हैं मधुप्याले
वो अनन्य प्रेम ही मधुशाला || १३० ||

मथुरा की पावन धरती पर
कृष्ण प्रेम का मधु रस बहता है
हर भक्त वहां का मधुप्याला
है भक्ति उसकी मधुशाला || १३१ ||

उन शिव का भी तुम ध्यान धरो
विष का उन्होंने मधुपान किया
तांडव नृत्य है उनका मधुप्याला
जग कल्याण ही जिनकी मधुशाला || १३२ ||

वो पवनपुत्र वो महावीर
सदा राम नाम का मधु पियें
राम भक्ति जिनका मधुप्याला
स्वयं राम ही जिनकी मधुशाला || १३३ ||

कोई प्रेम का मधुरस पीता है
प्रियतमा की आस में जीता है
विरह टूटे एक छवि मिले
ये अभिलाषा ही मधुशाला || १३४ ||

प्रेम पिपासु वो प्रेमी
विरह का मधुरस पीता है
निजमन है उसका मधुप्याला
है मिलन कामना मधुशाला || १३५ ||

प्रेमिका की एक वो अमिट छवि
आखों के प्यालों का मधुरस
एक बार पिए तो प्राण बचें
वो अनुपम दर्शन मधुशाला || १३६ ||

प्रियतमा से अपनी मधुर मिलन
वो प्रेमी हर पल यही मांगे
प्रियतमा की आँखें मधुप्याले
प्रियतमा की बाहें मधुशाला || १३७ ||

प्रियतमा की भी है यही आशा
उस प्रेमी का अनुराग मिले
वो प्रेम स्पर्श है मधुप्याला
उसका आलिंगन मधुशाला || १३८ ||

जब मधुर मिलन फिर हो जाये
जो प्रेम सुधा फिर मिल जाये
दोनों के मन हैं मधुप्याले
वो प्रेम समर्पण मधुशाला || १३९ ||

=================

भाग ९

कुछ गर्व के अपने प्यालों में
धन धान्य का मधुरस पीते हैं
वो व्यापारी वो धन कुबेर
धन कोष है जिनकी मधुशाला || १४० ||

कुछ लोभी हैं कुछ नकारे
कुछ न करने के ही मारे
कुछ किये बिना सब पाने की
लालसा ही जिनकी मधुशाला || १४१ ||

स्वाभिमान के छलके प्यालों में
आज़ादी के वो परवाने
स्वराज्य का मधुरस पीते थे
आज़ादी जिनकी मधुशाला || १४२ ||

वो रोष का मधुरस न पीते
वो क्रोध का मधुरस न पीते
न होता स्वतंत्र कोई प्याला
न स्वतंत्र ही कोई मधुशाला || १४३ ||

मृत्यु के भय पर विजय पा
सीमा रक्षा में लीन रहे
देशभक्ति जिसका मधुप्याला
राष्ट्ररक्षा सैनिक की मधुशाला || १४४ ||

पर ऐसे भी कुछ नेता हैं
बस स्वार्थ का मधुरस पीते हैं
दुष्कर्म अकर्म ही मधुप्याले
भ्रष्टता ही जिनकी मधुशाला || १४५ ||

उस भँवरे को ही तुम देखो
है पुष्प के आगे मंडराता
पुष्प पंखुरियाँ हैं मधुप्याले
वो पुष्प ही उसकी मधुशाला || १४६ ||

उस दीपक को भी तुम देखो
ज्योति का वो मधुपान करे
बाती घृत उसके मधुप्याले
आलोक ही उसकी मधुशाला || १४७ ||

उस पथिक की तुम कल्पना करो
अविरत ही अपनी राह चले
उसके दो पग हैं मधुप्याले
वो राह है उसकी मधुशाला || १४८ ||

सरगम के कुछ पागल प्रेमी
नगमे ही नगमे गाते हैं
हैं सुर ही जिनके मधुप्याले
संगीत ही जिनकी मधुशाला || १४९ ||

अपनी धुन में उड़ता पक्षी
अम्बर को चुनौती देता है
दो पंख हैं उसके मधुप्याले
चिर उड़ान ही उसकी मधुशाला || १५० ||

खुद गीला गमछा ओढ़, धरा को
फसल की चुनरी पहनाता
अन्न उगाकर उदर भरे
खेती किसान की मधुशाला || १५१ ||

एक माता का नवजात शिशु
जब दुग्ध मधु रस पीता है
वो दुग्ध श्रोत हैं मधुप्याले
माता कल्याणी मधुशाला || १५२ ||

थक हार के अपने कामों से
जब शाम को अपने घर लौटे
गृहणी बच्चे हैं मधुप्याले
गृहस्थी गृहस्थ की मधुशाला || १५३ ||

देखो तनिक इस चंदा को
चांदनी का मधुरस पीता है
पूर्णिमा अमावस दो प्याले
वसुधा आकर्षण मधुशाला || १५४ ||

इस सूरज की ही बात करो
अग्नि का मधुरस पीता है
तपन का है बस एक प्याला
तपना ही जिसकी मधुशाला || १५५ ||

इस धरती का ही मनन करो
मेघों से मधुरस लेती है
तो कौन बचा इस दुनिया में
न हो जिसकी कोई मधुशाला || १५६ ||

पीने का अर्थ जो पहचाने
जीवन का अर्थ सही जाने
क्या है मदिरा, क्या है प्याला
वो जाने क्या है मधुशाला || १५७ ||

=================

भाग १०

वे सज्जन बोले हे मानव
सुनकर तुम्हारी ये सब बातें
आज मैं जाकर पहचाना
क्या है मधु देवी मधुशाला || १५८ ||

शत नमन करूँ मैं उस मधु को
जिसका है तुमने पान किया
शत नमन करूँ मैं वो देवी
जिसको तुम कहते मधुशाला || १५९ ||

व्यर्थ मधु को सब कोसें
अपमानजनक कथन बोलें
कितना सम्मानित मधुरस है
कितनी आदरणीय मधुशाला || १६० ||

सुनकर तुम्हारे वचनों को
लगता है मुझको अब ऐसे
जग में एक सच्ची है मदिरा
दूजी सच्ची है मधुशाला || १६१ ||

अब ऐसे लगता है मुझको
मधुपान किये ही जाऊं मैं
अब प्याले कभी न खाली हों
जीवन मैं बिताऊं मधुशाला || १६२ ||

अनमोल तुम्हारे शब्दों ने
कैसा मुझपे जादू है किया
मन पाना चाहे मय का रस
मन जाना चाहे मधुशाला || १६३ ||

मुझको भी अपने साथ में लो
कुछ प्याले मैं भी पी लूंगा
तुमको जहाँ ये ज्ञान मिला
वो गुरु अपनाऊँ मधुशाला || १६४ ||

मैं बोला सज्जन न समझे
कितना वर्णन विस्तार किया
न तुम मधुरस को पहचाने
न तुम पहचाने मधुशाला || १६५ ||

मैंने अपना मधुपान किया
तुम पान करो अपने मय का
अपनी मदिरा मैं पहचाना
तुम पहचानो अपनी मधुशाला || १६६ ||

कितने ही मधुरस पान किये
कितने ही मदिरालय घूमा
पर परम मधु की प्यास बुझी
जब पाई अपनी मधुशाला || १६७ ||

वे सज्जन बोले हे मानव
तुम कैसी दुविधा देते हो
क्या अपने अपने हैं मधुरस
क्या अपनी अपनी मधुशाला || १६८ ||

मैं बोला सज्जन नहीं कठिन
इतनी सी बात समझ लेना
सबकी अपनी प्रतिभाएं हैं
वे प्रतिभाएं ही हैं मधुशाला || १६९ ||

जो प्राणी जन्म यहाँ लेता
है कुछ विशेष उसमें होता
वो विशेष कर्म हैं मधुप्याले
उसकी विशेषता मधुशाला || १७० ||

सर्वप्रथम स्वयं को पहचानो
फिर लक्ष्य को अपने तुम जानो
लक्ष्य प्राप्ति का प्रयास मधुरस
वो लक्ष्य तुम्हारी मधुशाला || १७१ ||

किसी और से कदम मिलाओगे
न अपनी मधु को पाओगे
न पाओ सुख अपने मन का
न पाओ अपनी मधुशाला || १७२ ||

मन का तर्पण है वस्तु नहीं
बाजार जो तुमको मिल जाये
स्वयं ही है तुमको वह पानी
निज मन की तृप्ति मधुशाला || १७३ ||

न अपना मधुरस पहचाने
दासत्व का विषरस पी माने
कंठष्ठ करो मेरी वाणी
न भाये पराई मधुशाला || १७४ ||

धन्य हैं सभी पीने वाले
जो अपना मधु रस पहचाने
स्व निर्माण किया अपना प्याला
स्व सृजित की अपनी मधुशाला || १७५ ||

निज सपनों को साकार करे जो
वही सच्चा मधु प्रेमी है
वही सच्चा पुरुषार्थ करे
जिसकी अपनी हो मधुशाला || १७६ ||

अब चलता हूँ मैं देर हुई
मेरा मधु रस मुझको याद करे
वो प्याले मेरी राह तकेँ
बाट जोहती मेरी मधुशाला || १७७ ||

=================

भाग ११

वे सज्जन बोले हे मनुज
एक अंतिम प्रश्न मैं करता हूँ
सच में है क्या तेरा मधुरस
सच में क्या तेरी मधुशाला || १७८ ||

अधरों पे एक मुस्कान लिए
मैंने उन सज्जन को बोला
चलो बता तुम्हें मैं देता हूँ
क्या मेरी अनुपम मधुशाला || १७९ ||

मैं बोला शब्द मधुप्याले हैं
जो भाव निकलता है मधुरस
मेरे लेख ही मुझको तृप्त करें
मेरा लेखन मेरी मधुशाला || १८० ||

जो एक बार पढ़ ले इसको
गीता वेदों का सार मिले
कोई और सार न चाहे मन
चाहे बस केवल मधुशाला || १८१ ||

शब्द नहीं ये भाव नहीं
भावना का अनुपम सागर है
या तुम डूबो या मैं डूबूं
दोनों पहुंचेंगे मधुशाला || १८२ ||

है लेख नहीं कुछ शब्दों का
नारायण इसमें समाये हैं
ये मधुशाला ही दुनिया है
ये दुनिया ही है मधुशाला || १८३ ||

आगमन है क्या प्रस्थान है क्या
है सृजन कहाँ है गमन कहाँ
सब आते हैं मधुशाला से
है जाना सबको मधुशाला || १८४ ||

इससे पहले अंतिम विराम
मैं दूँ अपनी मधुशाला को
इस जीवन का शत धन्यवाद
ये जीवन भी तो है मधुशाला || १८५ ||

श्वासों के अपने सब प्याले
भरकर के प्रेम की मदिरा से
नित्य तुम उसका पान करो
तो आनंदित जीवन मधुशाला || १८६ ||

जब जग आया जीवन आया
न कुछ आया जीवन आया
इस जीवन का सम्मान करो
ये सबसे अनुपम मधुशाला || १८७ ||

जो आएंगे वो पाएंगे
जो जाएंगे फिर आएंगे
और हर पल गाते जायेंगे
हे मधुशाला, हे मधुशाला || १८८ ||

वो सोयेंगे स्वर गूंजेगा
वो जागेंगे स्वर गूंजेगा
वो खो देंगे स्वर गूंजेगा
फिर पा लेंगे स्वर गूंजेगा
मन की हर कम्पित धड़कन से
बस एक स्वर गूंजे मधुशाला || १८९ ||

हैं धरा अम्बर जब तक जग में
और जब तक चंदा तारे हैं
गायी जाएगी हर मन में
तब तक मेरी ये मधुशाला || १९० ||

न रोक स्वयं को पाएंगे
जो एक बार पढ़ जायेंगे
वो मन ही मन दोहराएंगे
हे मधुशाला, हे मधुशाला || १९१ ||

कल्पना से शब्दों को चुनकर
मैंने प्रेम की मधु बना ली है
चाहे पान करो चाहे गान करो
मैंने है पा ली मधुशाला || १९२ ||

आत्मा के किसी एक अंतर को
झकझोर कहीं ये आयी हो
तो इसके स्वागत में बोलो
हे मधुशाला, हे मधुशाला || १९३ ||

हर प्राणी के निज जीवन का
है सार बताती मधुशाला
जो भाई हो मन से बोलो
हे मधुशाला, हे मधुशाला || १९४ ||

यदि सच्चे अर्थों में तुमको
जीवन मधु पान कराया हो
तो अधरों को अपने खोलो
कहो मधुशाला, बोलो मधुशाला || १९५ ||

-मंजूसुत ईशांश

(यदि ये कविता पसंद आई हो तो कृपया शेयर करना न भूलें| मुझे लगता है, इस मधुशाला का यही पारितोषिक होगा कि इसे ज्यादा से ज्यादा पाठक गण मिलें| धन्यवाद ||)

मैं तेरी राह तकता हूँ

तुझे याद करता हूँ
तेरी राह तकता हूँ,
तू पास नहीं है जो
तेरे पास होने की
फरियाद करता हूँ |
तुझसे अलग होकर
दिल टूटता सा है,
दिल के उन टुकड़ों को
मैं जोड़ जोड़ कर,
तुझे दिल में रख लेता हूँ|
फिर तुझे याद करता हूँ,
फिर तेरी राह तकता हूँ ||

तुझसे अलग होकर
मेरे इस सीने में,
एक दर्द सा उठता है
वो दर्द निकलता है,
एक आह सी भरता है
फिर मैं तड़पता हूँ,
तू पास नहीं है जो
तेरे पास होने की
फरियाद करता हूँ |
फिर तुझे याद करता हूँ,
फिर तेरी राह तकता हूँ ||

तू मेरे लिए क्या है
मैं बता नहीं सकता,
तेरे साथ की कीमत
कभी जता नहीं सकता,
जानता हूँ बस इतना,
तू प्रार्थना के जैसी है,
एक दुआ के जैसी है,
फिर दुआ मैं करता हूँ,
तू पास नहीं है जो
तेरे पास होने की
फरियाद करता हूँ |
फिर तुझे याद करता हूँ,
फिर तेरी राह तकता हूँ ||

मैं तुझसे कहता हूँ
कुछ बातें करनी हैं,
में तुझसे कहता हूँ
कभी एक रात जगनी है,
पर तेरे साथ में होकर
मदहोश मैं जीता हूँ,
तू पास नहीं है जो
तेरे पास होने की
फरियाद करता हूँ |
फिर तुझे याद करता हूँ,
फिर तेरी राह तकता हूँ ||

मुझे कभी समझ न आया
क्यों उसने मुझे बनाया?
पर जब से तू मुझे मिली है
जीने की राह मिली है,
भूले से इन सांसों का
अफ़सोस नहीं करता हूँ,
तू पास नहीं है जो
तेरे पास होने की
फरियाद करता हूँ |
फिर तुझे याद करता हूँ,
फिर तेरी राह तकता हूँ ||
मैं तेरी राह तकता हूँ ||

“कांग्रेस को फिर से हराना है”

साठ साल से ज्यादा ही
जो राज सदा करते आये,
भारत माता की छाती पर
सांप लोटते ही आये,
जनता तो ये सोचे थी कि
वे नवयुग को लाएंगे,
ऐसा क्या आभास था वे
इस देश का मान गिराएंगे,
उन नेताओं के वंशज को,
हमें अब सबक सिखाना है,
देश को हमें बचाना है
कांग्रेस को फिर से हराना है ||

जाति धर्म में बाँट बाँट
जो लोगों को छलते आये,
झूठी मनमोहक नीतियों से
बस मनमुटाव करते आये,
अंग्रेज़ों ने जिस तरह से
देश को कभी बांटा था,
उसी तरह से देश राज्य को
छिन्न भिन्न करते आये,
तुम कश्मीरी, तुम दलित,
तुम माइनॉरिटी, आदिवासी हो,
कभी न कहा कि हे मनुज
तुम एक ही भारतवासी हो,
और तब भी बिन लज्जा के
खुद को सेक्युलर वे कहते हैं,
धर्मनिरपेक्षता की भगवन ये
कैसी परिभाषा कहते हैं,
झूठे वादे, प्रलोभनों की
बातों में अब नहीं आना है,
भारत मां को हमें बचाना है,
कांग्रेस को फिर से हराना है ||

दशकों तक तुमने राज किया
न विकास किया, न काम किया,
भृष्टाचार में लिप्त रहे
बस आराम किया, आराम किया,
जन जनता की एक पार्टी को
एक घर की पार्टी बना दिया,
जो तुम सा बोले वही ठीक
विपरीत को बंदी बना दिया,
और कहते हो कि इस देश में
न्याय बस कांग्रेस करती है,
और अन्याय से किस तरह
पहचत्तर का आपातकाल लगा दिया,
भर भर के तुमने घाव दिए
इस राष्ट्र को अब नहीं सहना है,
स्वयं को हमें बचाना है,
कांग्रेस को फिर से हराना है ||

घोटालों की बात चले
तो जिव्ह्या ही थक जाती है,
बोफोर्स, कोल्, टूजी, हेराल्ड
कहने में शर्म आ जाती है,
गाँधी, पटेल की पार्टी में
ये कैसे नेता आते गए,
जिस थाली में खाते गए
उसी में छेद बनाते गए,
कोई हिम्मत न कर पाया
ऐसे लोगो को फांसी दे,
कुछ न हो तो कम से कम
पार्टी से विदा करा ही दे,
पर ना तिलक, ना बोस ही
अब इस पार्टी को संभाले हैं,
संसद की गरिमा लजाते
कुछ नेता पार्टी चलाते हैं,
ऐसे किसी नेता को अपना
प्रतिनिधि नहीं बनाना है,
लोकतंत्र को हमें बचाना है
कांग्रेस को फिर से हराना है ||

इस पार्टी के नेताओं से
कुछ प्रश्न में करना चाहता हूँ,
क्यों चुन लूँ मैं कांग्रेस को,
ये निर्णय करना चाहता हूँ,
क्या किया उन नेताओं का
जो घोटाले करते गए,
क्या किया उन निर्लज्जों का
जो राष्ट्र सम्पदा हरते गए,
क्यों न रोका उन बोलों को
जो सेना का मनोबल गिराते हैं,
उन्हीं पे उंगली उठाते हैं
जो दुश्मन से हमें बचाते हैं,
राष्ट्र विरोधी तत्वों से
क्यों आप हाथ मिलते हैं,
सत्ता हासिल करने को
किस हद तक गिरते जाते हैं,
साफ़ छवि के एक नेता को
चोर चोर चिल्लाते हैं,
न्यायपालिका के निर्णयों को
मान क्यों नहीं पाते हैं,
कब तक सहारे झूठ के
राजनीति करते जाओगे,
कब सदाचार सतआचरन से
पार्टी को साफ़ बनाओगे,
इन प्रश्नों के उत्तर मिलना
सहज नहीं ये माना है,
राष्ट्रवाद को हमें बचाना है,
कांग्रेस को फिर से हराना है ||
कांग्रेस को फिर से हराना है ||

-ईशांश

ये ज़िन्दगी जाने कैसे जी रही है?

कभी हवा सी बह रही है,
कभी मूरत सी उदास बैठी है,
बेबस वो कभी हंसती है,
बेबस वो कभी रोती है,
आंधी से मजबूर किसी बादल सी
कभी ठहरी तो कभी उड़ रही है|
ये ज़िन्दगी जाने कैसे जी रही है
ये ज़िन्दगी जाने कैसे जी रही है||

खुद की परवाह किये बिना,
बेपरवाह सी चल रही है,
मेरा तो अब कोई बस नहीं,
तो बेबस ही चल रही है,
कोई आड़ मिले तो छुप जाये,
सब की आँखों से बच जाये,
बस यही इंतज़ार कर रही है|
ये ज़िन्दगी जाने कैसे जी रही है||

एक हाथ में एक सपना लिए,
एक हाथ में एक उम्मीद लिए,
सर पे आशाओं का घड़ा रखे,
बेबस किसी खिलाडी सी,
मन में गिरने का डर लिए,
पतले धागे पे चल रही है|
ये ज़िन्दगी जाने कैसे जी रही है||

धड़कन की एक आवाज़ पर
जो भागी भागी आती थी
मासूम से मेरे गालों पर
प्यार से अपना हाथ फेर जाती थी,
अब चीखूँ भी तो सुने नहीं
वो बेबस किसी पागल सी
जाने किस डगर खो रही है|
ये ज़िन्दगी जाने कैसे जी रही है||

मुझे याद आता है वो गर्मी में,
मेरा पसीना पोंछ जाती थी,
जाड़े की कड़कड़ ठंडी में
मेरे पास अलाव जला जाती थी
आँखों में कभी जो आंसूं हों
मेरा हाथ पकड़ लेती थी,
बेबात कभी में हँसता था,
मेरे संग हंसी पकड़ लेती थी,
मुझे छोड़ मेरा साथ छोड़,
अभी वो जाने कहाँ फिर रही है
ये ज़िन्दगी जाने कैसे जी रही है|

मुझे याद आता है,
वो कभी मेरे पीछे भागती थी,
उसकी पायल की आवाज़ें सुनकर,
कभी मैं उसके पीछे भागता था|
मेरी ज़िन्दगी मेरे साथ
और मैं अपनी ज़िन्दगी के साथ चलता था|
अब मैं किसी और रस्ते,
ज़िन्दगी किसी और राह चल रही है|
जाने ये ज़िन्दगी कैसे जी रही है||

आज कई दिनों बाद,
फिर मुझे उसका ख्याल आया है,
उसके पास मेरे लिए वक़्त न सही,
फिर भी मैंने उसे पास बुलाया है,
आएगी तो कहूंगा मुझे भूले नहीं,
और पूछूंगा कि मेरे बिना
वो कहाँ और कैसे जी रही है|
ये ज़िन्दगी जाने कैसे जी रही है,
मेरी ज़िन्दगी जाने कैसे जी रही है||