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पांच रूपये का मैच

शनिवार का दिन था| सतेंद्र सुबह काफी देर से आशीष के घर से बाहर निकलने का इंतज़ार कर रहा था| वो आशीष के घर के बाहर एक परचूनी के खोखे पे बैठा आशीष का इंतज़ार कर रहा था| मोहल्ले के सभी लड़के मैच खेलने के लिए इकट्ठे हो गए थे बस आशीष की ही देरी थी| क्रिकेट का सामान तो आशीष के पास ही रहता था| तो सभी लड़के टकटकी लगाकर आशीष के घर के गेट को देखे जा रहे थे कि इतने में आशीष की मां घर के बाहर झाड़ू लगाने निकली. सभी ने सतेंद्र को बोला- “अबे पूछ ना आशीष कितनी देर में आएगा?” सत्नेद्र ने कहा- “तुम लोग भी तो पूछ सकते हो?” उन लड़कों में से एक ने कहा- “अबे सबको पता है कि हम में से किसी ने पूछा तो ऑन्टी चिल्ला के यहाँ से भगा देंगी पर तुझे वो कुछ नहीं कहती| तुझे पूछना है तो जल्दी पूछ वार्ना हम लोग तो जा रहे हैं| कहीं और से लड़के इकट्ठे कर लेंगे और सामान भी| अगर आशीष नहीं आएगा तो क्या मैच नहीं खेलेंगे? ”

मोहल्ले के सभी लड़कों को शनिवार का बेसब्री से इंतज़ार रहता था क्योंकि बाकी दिन तो सबके स्कूल होते थे तो घर वापस आकर होम वर्क करना पढता था और खेलने का वक़्त नहीं मिलता था | लेकिन सतेंद्र को इस दिन का खास तौर से इंतज़ार रहता था और “बेसब्री” शब्द भी उसके लिए नाकाफी था | इसकी दो वजह थी- एक तो मोहल्ले के क्रिकेट खेलने वाले लड़कों में बस वही एक था जो स्कूल नहीं जाता था| तो हर रोज़ वो बोर हो जाता था| दूसरा हर शनिवार को वो पांच-पांच रुपये के मैच बदता था जिसे जीतकर वोअगले शनिवार तक अपना खर्चा चलाता था| उसे घर से पॉकेट मनी नहीं मिल पाती थी| उसके मां बाबूजी ने उसका एडमिशन पास के ही एक सरकारी स्कूल में करा दिया था जहाँ पढाई तो क्या, पढाई के बारे में बातें भी नहीं होती थीं| सतेंद्र के पिता जी के उस स्कूल के कुछ अध्यापकों से सम्बन्ध थे तो हाजरी की कोई परेशानी नहीं थी| रोज़ बस गणित का एक ट्यूशन पढ़ने जाता था क्योंकि वही एक विषय था जिसे समझने में सतेंद्र को थोड़ी दिक्कत होती थी वर्ना बाकी के विषय वो या तो खुद से पढ़ लेता था या फिर आशीष की मदद ले लेता था| वह पढ़ने में अच्छा था लेकिन घर की आर्थिक स्तिथि अच्छी न होने की वजह से उसे सरकारी स्कूल में एडमिशन लेना पड़ा| आशीष की मां ये सब जानती थी तो सतेंद्र के लिए उनके मन में एक अलग ही सहानुभूति थी|

जब सब लड़के नाराज़ होने लगे तो सतेंद्र ने आशीष की मां से पूछा- “ऑन्टी आशीष जगा कि नहीं?” आशीष की मां ने कहा- “अच्छा तो फिर आज तुम लोगों का मैच होगा तभी सब लोग तैयार बैठे हो क्यों? आशीष अंदर तैयार हो रहा है अभी आता ही होगा” इतने में आशीष बाहर आता हुआ दिखाई दिया| उसके हाथ में बैट, बोल और 2 विकेट थे| सतेंद्र ने पूछा- “अबे तीसरा विकेट कहाँ गया?” आशीष- “पता नहीं यार मैंने बहुत ढूंढा पर मिला नहीं लेकिन कोई नहीं, दूसरी टीम भी तो विकेट लायी होगी|”
सतेंद्र-“हाँ ठीक है और अगर नहीं भी लायी होगी तो बीच में ईटों का विकेट बना लेंगे|”
आशीष- “वैसे मैच किसके साथ है?”
सतेंद्र- “लविंडा के साथ|”
आशीष- “चल तो फिर जीत ही जायेंगे|” और इस बात पे दोनों मुस्कुराते हुए टीम के साथ मैदान की तरफ चल दिए|

लविंडा आशीष के घर के पास खटीकों की एक बस्ती थी, वहीं रहता था| ज्यादातर वहां हर घर में छोटी-छोटी लोहे की पत्तियों की फैक्टरी लगी हुईं थी| लविंडा उनमें से ही एक फैक्ट्री में काम करता था| उसकी टीम के और भी लड़के उन्ही छोटी फैक्टरियों में काम करते थे| लविंडा अपने मामा के यहाँ रहता था| उसके मां बाप बहुत गरीब थे उसे पाल पोस नहीं सकते थे तो वो उसे उसके मामा के यहाँ छोड़ गए थे| जब कभी मामा से छुट्टी मिल जाती थी तो लविंडा मैच खेलने आ जाता था| लविंडा को क्रिकेट का बहुत शौक था और इसलिए हर बार सतेंद्र से हारने के बाद भी मैच बद लेता था| अपनी टीम में बस वही एक था जो थोड़ा अच्छा खेलता था|

मैदान पे जैसे ही सब लोग पहुंचे तो देखा की लविंडा आज एक नई टीम के साथ आया था| सतेंद्र ने पूछा- “अबे ये कौन लोग हैं ?”
लविंडा- “ये लोग पास में ही काम करने आये हैं, इनको खेलना आता है तो अपने साथ बुला लाया| पुराने खिलाड़ी आज कहीं और मैच खेलने निकल गए|”
सतेंद्र- “चलो तो फिर मैच शुरू करते हैं?”

पहले मैच का टॉस हुआ| टॉस लविंडा ने जीता और बैटिंग ली| 6 – 6 ओवर का मैच था| लविंडा ने अपने नए प्लेयर के साथ ओपनिंग शुरू की| उसकी टीम हमेशा सतेंद्र की टीम की तुलना में कमज़ोर रहती थी तो वो ज्यादातर ओवर खुद ही डालता था और बैटिंग में भी ज्यादातर स्ट्राइक अपने पास ही रखता था| लेकिन आज उस नए प्लेयर ने तो कोहराम मच दिया था| सतेंद्र की तरफ से ज्यादा ओवर आशीष ही डालता था| आशीष एक अच्छा फ़ास्ट बॉलर था| पहली बोल पे लविंडा ने स्ट्राइक बदली और फिर पूरी बैटिंग उसका नंबर नहीं आया| पहले ओवर में १२, दूसरे में १०, तीसरे में फिर १२| ऐसे कर के ६ ओवर में बिना किसी विकेट के 56 रन| उस नए प्लेयर कि बैटिंग देख कर सतेंद्र का हलक सूख गया| वैसे तो सतेंद्र ओवर नहीं करता था पर इस बार उसने भी ओवर कराया था और बस तीन रन ही दिए| वो सबसे ज्यादा किफायती रहा| अब तक लविंडा ने जितने मैच खेले थे उसकी टीम कभी भी 20 -25 रन से ज्यादा नहीं बना पाई थी लेकिन आज तो बस कमाल ही हो गया था| सतेंद्र की टीम भी कम नहीं थी लेकिन अब तक उन्होंने ने भी 6 ओवर में 40 से ज्यादा रन नहीं बनाये थे लेकिन 56 रनों का लक्ष्य देखकर उनके भी पसीने छूट गए| जैसे तैसे उन्होंने 30 रन बनाये और मैच हार गए| लविंडा वैसे तो उम्र में सब लड़कों से बड़ा था लेकिन आज छोटे बच्चों की तरह मैदान के चारों तरफ भाग रहा था| सतेंद्र से आज वो पहला मैच जीता था| सतेंद्र और आशीष को बहुत बुरा लग रहा था| जिस टीम से अब तक कोई मैच नहीं हारे थे, उससे आज पहली बार इतनी बुरी तरह से हार गए थे| सतेंद्र को पांच रुपये जेब से जाते हुए बहुत खटक रहे थे| लेकिन उसकी उम्मीद अभी भी दूसरे मैच से थी| उसने पहले मैच से एक बात जान ली थी कि वो नया प्लेयर फ़ास्ट बोलर्स को बहुत अच्छा खेल रहा था लेकिन स्पिन खेलने में थोड़ा झिझक रहा था|

दूसरा मैच शुरू हुआ| टॉस फिर से लविंडा ने जीता| लेकिन इस बार उसने बोलिंग ली| सारे ओवर्स उन नए प्लेयर्स ने ही कराये और सतेंद्र की टीम ने 6 ओवर में इस बार 44 रन बना लिए| लेकिन सतेंद्र के सामने ये रन बचाने की एक बड़ी चुनौती थी| पिछले मैच में ही जिस टीम ने 6 ओवर में 56 रन बनाये हों उनके लिए 45 रन बनाना कोई मुश्किल काम नहीं था| सतेंद्र ने निर्णय लिया कि 6 में से 3 ओवर वही डालेगा| पहला ओवर उसने खुद डाला| सतेंद्र की बोल थोड़ी धीमी आती थी| दूर से देखकर लगता था कि खेलना आसान होगा लेकिन क्रीज़ पर उसकी बोल खेलना आसान नहीं था| पहले ओवर में एक चौका खाकर उसने 7 रन दिए| अगला ओवर उसने आशीष को दिया लेकिन फ़ास्ट नहीं धीमी बोल करने को कहा| आशीन वैसे तो फ़ास्ट बॉलर था लेकिन लेग स्पिन भी करा लेता था| उसका ओवर थोड़ा महँगा रहा लेकिन उसने लविंडा का कीमती विकेट उड़ा लिया था| उसने 8 रन दिए| मैच आखिरी ओवर तक पहुंचा और लविंडा की टीम को जीत के लिए 11 रन चाहिए थे| आखिरी ओवर आशीष का ही था| आशीष ने पहली ही बोल पर चौका खा लिया| सतेंद्र ने आकर उसे समझाया की बोल को शार्ट रखे जिससे कैच होने की संभावना थी| आशीष ने वही किया और उसे विकेट मिल गई| सतेंद्र ख़ुशी से झूम उठा| वो ये मैच किसी भी कीमत पर जीतना चाहता था क्योंकि उसके पास जो पांच रुपये थे वो तो पहला मैच हारकर जा चुके थे और अगर वो ये मैच भी हार गया तो उस पर पांच रूपये की उधारी हो जाएगी| फिर वो पूरा सप्ताह कैसे चलाएगा| सतेंद्र के मन में यही सब चल रहा था| आशीष ने तीसरी गेंद डाली| वो बल्ले का किनारा लेकर पीछे चली गई और एक ही रन बन सका| अब क्रीज़ पर नया प्लेयर था| आशीष ने जैसे ही ओवर की चौथी बोल डाली, उस नए प्लेयर ने आगे निकल के बोल उड़ा दी| बोल बाउंडरी की तरफ हवा में जा रही थी| सतेंद्र का दिल जैसे बैठ गया, उसे लगा कि मैच हाथ से निकल गया लेकिन बोल बाउंडरी से एक टप्पा पहले गिरी| सतेंद्र को जैसे जीवनदान मिल गया था| वो भागकर आशीष के पास गया और बोला- “देख भाई यही बोल फिर से डालना| मैं उसी तरफ कैच के लिए भागूंगा| अब बस नसीब से ही ये जीत मिलेगी|” आशीष ने वही किया और उस नए प्लेयर ने भी वही शॉट दोहराया| बोल हवा में बहुत लंबी उछल गई और सतेंद्र को बोल के नीचे आने का वक़्त मिल गया| आशीष बस हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रहा था की सतेंद्र कहीं कैच न छोड़ दे| बोल जैसे ही नीचे आई, सतेंद्र के हाथ से फिसल गई| लविंडा ख़ुशी से झूमने ही वाला था कि सतेंद्र ने छुटी बोल फिर से लपक ली| वो ज़मीन पे लेट गया| आशीष दौड़ा दौड़ा आया और सतेंद्र को उठाया| दोनों गले मिलकर उछलने लगे| लविंडा ने सतेंद्र को पांच रुपये दे दिए| आशीष ने भी सतेंद्र को पांच रुपये देते हुए कहा- “भाई ये रख ले वार्ना इस हफ्ते की तेरी पॉकेट मनी कम पड़ जाएगी| अगले शनिवार को जब फिर जीत जायेंगे तब मुझे दे देना|” सतेंद्र ने आशीष को गले लगते हुए कहा- “थैंक्स यार| मैं ज़रूर लौटा दूंगा|”

दोपहर के खाने का वक़्त हो चला था| सब लोग अपने अपने घर के लिए निकल गए| शाम को सब फिर से उसी खोखे पे इकठ्ठा हुए| सतेंद्र ने आशीष के पास जाकर कहा- “भाई अगले शनिवार को लविंडा से फिर से मैच बद दिया है, पांच रूपये का|” और दोनों एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुराने लगे|

सबसे बड़ा आश्चर्य

काम ख़त्म होने का साइरन बजा | कांतिलाल ने अपने चेहरे का पसीना पोंछा | वो दिल्ली में जहाँ मज़दूरी करता था वहां एक बड़ा सा मॉल बनने वाला था| आज उसके चेहरे पर रोज़ाना की तरह शिकन नहीं थी बल्कि थोड़ा सुकून और राहत थी | आज शनिवार था | आज उसे पूरे हफ्ते का मेहनताना मिलने वाला था और अगले दिन छुट्टी थी| कांतिलाल को और मज़दूरों के साथ साथ दिन की 150 रूपये मज़दूरी मिलती थी तो पूरे हफ्ते के 6 दिन के हिसाब से 900 रुपये मिलने वाले थे | लाइन में खड़ा खड़ा मन ही मन वो सोचे जा रहा था “पांच किलो तो आटा ले लूंगा, दो लीटर तेल, चूल्हे के लिए कुछ किलो लकड़ियाँ भी आ जाएँगी, चाय-मसाले मुन्नों कि माँ खुदही ले लेगी, मुझे तो याद नहीं रहते, और इस सब के बाद शायद कुछ करीब करीब 500 रुपये तो बच ही जायेंगे, वो मैं मुन्नों की मम्मी को दे दूंगा, खुश हो जाएगी वो, हफ्ते का एक ही तो दिन होता है जिसकी वो आस लगाये रहती है कि कुछ रुपये मैं उसके हाथ में रखूँगा| अरे लेकिन बिट्टू ने भी तो कुछ स्कूल का सामान मंगाया है| रोज़ मुझसे कहता है, बापू आज कापी- पेन्सिल लाना मत भूलना वरना टीचर कल फिर स्कूल में मुझे सबके सामने डांटेगी | आज तो कापी पेन्सिल मैं ले ही जाऊंगा..” इन सब ख्यालों में उसे बीच में किसी की आवाज़ सुनाई दी- “क्यों भाई, आज पैसे नहीं चाहिए क्या, नहीं चाहिए तो मैं ही रख लेता हूँ”| यादराम जी सबकी मज़दूरी दे रहे थे | बड़े मज़ाकिया किस्म के भले इंसान थे | कांतिलाल ने झेंपते हुए कहा- “अरे नहीं नहीं मालिक, पैसे नहीं मिलेंगे तो पेट की आग कैसे बुझेगी, पेट की आग न बुझेगी तो कन्धों में जान कैसे आएगी और अगर कन्धों में जान न आई तो आपका ये मॉल कैसे खड़ा होगा, बताइये?” कांति ने भी यादराम से ज़रा सी चुटकी ले ली |
यादराम – “अरे कांति रे, आज कल तो तू भी बातें बनाने लगा है, चल छोड़, ये ले पूरे 920 रूपये और जल्दी घर जा | भाभी और बच्चे तेरा इंतज़ार कर रहे होंगे|”
कांतिलाल- “हाँ हाँ जाता हूँ जाता हूँ लेकिन ये बीस रुपये ज्यादा क्यों?”
यादराम- “अरे आज मॉल के चार मालिकों में से किसी एक कि बिटिया का जन्मदिन है, तो उसी ख़ुशी में सब मज़दूरों को २० रूपये ज्यादा मज़दूरी देने को कहा है|”
कांतिलाल- “चलो अच्छा है, ठीक है यादराम जी, धन्यवाद, अब सोमवार को मिलते हैं | राम राम |”

कांतिलाल घर की तरफ चल दिया| रास्ते से उसने सारा राशन ख़रीदा | बिट्टू के लिए कापी-पेन्सिल भी ले लीं | जैसे ही घर पहुंचा और घर के अंदर कदम रखा तो नज़ारा ही कुछ और था | आश्चर्यचकित होते हुए उसने कहा- “अरे मुन्नों की माँ, आज इतनी सजावट किसलिए भई?”
कुमकुम- “मुझे पता था कि आज आप फिर भूल जाओगे | मुन्नों कितनी गुस्सा है, पता है? आज मनाने से भी न मनेगी | मैं तो समझा समझा के थक गयी कि बेटा तेरे बापू काम के चक्कर में सभी कुछ भूल जाते हैं | गुस्सा नहीं करते पर हर बार यही कहती है कि बापू मुझे अब प्यार नहीं करते | पहले तो कभी मेरा जन्मदिन नहीं भूलते थे लेकिन पिछले दो सालों से लगातार भूले जा रहे है| ”
कांतिलाल के माथे पे बल पड़ गए और कुमकुम के पास जा के धीरे से बोला- “क्या? आज मुन्नों का जन्मदिन है और तुमने मुझे बताया भी नहीं?” ये कहकर उसने बचे हुए रूपये कुमकुम के हाथ में रख दिए | कुमकुम- “अरे तुम्हारे जाने के बाद मुझे याद आया कि तुम्हें याद दिलाना था पर आज सवेरे तुम जल्दी निकल गए, मैं क्या करती? अब जा के मना लो अपनी बिटिया को | ”

कांति किराये के मकान में रहता था | मकानमालिक ने उसे दो कमरे ८०० रुपये महीने के किराये पे दिए थे | कांति अंदर वाले कमरे में गया और पीछे से मुन्नों के कान खींचकर उसे एक नेल पोलिश देते हुए बोला – “जन्मदिन मुबारक मेरी बिटिया |” मुन्नों का चेहरा मानो गुलाब के ताज़े फूल सा खिल गया और बोली- “बापू इस बार तुम भूले नहीं, मुझे लगा अब आप मुझे प्यार नहीं करते | इसलिए आज के दिन सवेरे बिना मुझे मिले चले गए | ”
कांति- “सच बताऊँ बेटा, मुझे कल रत सोते समय याद था लेकिन सुबह पता नहीं काम के ध्यान में मैं तेरा जन्मदिन ही भूल गया | पर दिन में मुझे फिर याद आ गया तो मैं तेरे लिए ये नेल पोलिश ले आया | तू कई दिनों से अपनी माँ से कह रही थी ना | मुझे सब पता है | लेकिन अब तू मुझसे नाराज़ तो नहीं है ना?” मुन्नों ने कांति को गले से लगा के कहा- “नहीं बापू मैं अब बिलकुल भी नाराज़ नहीं हूँ | मैं अपनी ये नेल पोलिश नेहा को दिखा के आऊँ?” कांति ने मुन्नों के सर पे हाथ फेर के कहा- “जा लेकिन जल्दी आ जाना |”

कांति ने हाथ मुंह धोये और चारपाई पे लेट गया | कुमकुम उसके पास आ के बैठ गई और बोली – “अब क्या सोच रहे हो ?” कांति- “कुमकुम, एक बात बता..” कुमकुम बीच में ही बोली – “यही ना कि तुमने मुन्नों कि पढाई छुड़वा कर अच्छा किया कि नहीं? रोज़ रोज़ एक ही बात क्यों सोचते रहते हो?” कांति – “हाँ लेकिन मैं क्या करता ? जब तक बिट्टू पढ़ने लायक नहीं हुआ था तब तक तो मैंने मुन्नों कि पढाई का खर्च उठा लिया लेकिन जब बिट्टू के पढ़ने लिखने की उम्र आ गई तो मैं या तो बिट्टू को पढ़ा सकता था या कि मुन्नों को | मुन्नों तो एक दिन शादी करके पराई हो जाएगी | बिट्टू तो हमारे पास ही रहेगा सो ये सोचकर मैंने मुन्नों कि पढाई रुकवा दी लेकिन मेरा यकीन कर कुमकुम, मैं जब भी मुन्नों का चेहरा देखता हूँ मुझे खुद पे गुस्सा आने लगता है | वो हर क्लास मैं फर्स्ट आई थी | अगर मैं उसे पढ़ा पता तो तो तू देखती, वो कुछ बन के दिखाती | बचपन में माँ बाबू जी कि बात मान कर पढ़ लिख लिया होता तो आज मेरे बच्चों को ये दिन ना देखने पढ़ते | तू सच बता तू भी तो इस बात पे मुझसे गुस्सा होगी?” कुमकुम- “नहीं जी, मैं देखती नहीं हूँ क्या | आप से जितना बन सकता है आप उतना करते हो हम सब के लिए | आप बिन बात ही परेशान हुए जाते हो | और फिर मुन्नों के ब्याह के लिए भी तो पैसे जोड़ने हैं | मान लो अगर उसे पढ़ा भी ले तो उसके ब्याह के लिए रकम कहाँ से जोड़ेंगे?” कांति ने भी हाँ में अपना सर हिला दिया और पूछा- “अच्छा ये बता बिट्टू दिखाई नहीं देता, अभी भी खेल के वापस नहीं आया क्या?” कुमकुम- “नहीं नहीं वो तो कब का घर आ गया था | स्कूल का सारा काम भी कर लिया | बस अभी उसे केक लेने भेजा है, आता ही होगा | ” कांति- “केक? वो तो 200 -300 से कम का नहीं आएगा| फिर तुमने फ़िज़ूल खर्ची शुरू कर दी? ” कुमकुम- “अरे सुनो तो, आपके बचाये हुए रुपयों में से नहीं लिए हैं | वो मैं रोज़ दो रूपये बच्चों के नाम के निकाल के अपने पास बचा लेती हूँ, उन्ही में से दिए हैं |” कांति बोला- “फिर ठीक है, अच्छा ये बता कभी मेरे नाम के भी कुछ रुपये बचाये हैं कि नहीं?” कुमकुम शरमा के चल दी | इतने में बिट्टू भी केक ले के आ गया | सब लोग खाना खा के और केक खा के सोने चले गए|

इसी सब में दिन गुज़रने लगे | मुन्नों भी बड़ी होने लगी | कांति ने कुछ हज़ार रूपये बचा तो लिए थे पर उसकी शादी के लिए वे काफी ना थे | रिश्ते वाले आते थे और मुन्नों सबको पसंद भी आती थी लेकिन बात पैसों पे आके रुक जाती थी | क्यूंकि मुन्नों सुन्दर और सुशील थी, घर के सभी कामों में निपुण थी तो लड़के वाले कम से कम इतनी मांग तो करते थे कि कांति उनकी पूरी दावत का खर्च उठा सके | कांति की भी अब उम्र हो चली थी | बिट्टू की पढाई होने में और नौकरी लगने में अभी चार पांच साल का समय था | कांति अब हफ्ते मैं तीन चार दिन ही काम पे जा पता था | कुमकुम ने भी घर पे सिलाई कढ़ाई का काम शुरू कर दिया था लेकिन उससे भी कुछ ज्यादा रूपये नहीं मिल पाते थे कि मुन्नों के ब्याह के लिए पूरे पढ़ पाएं |

मुन्नों माँ बापू की चिंता देख के परेशान हो जाती थी | घर में बड़ी होने के कारण वो घर के लिए अपनी ज़िम्मेदारी समझती थी | उसने कई बार माँ बापू को उसकी पढ़ाई के बारे में बातें करते सुना था | बिट्टू की पढाई और उसकी शादी की चिंता कि वजह से नौवीं क्लास के बाद मुन्नों को पढाई छोड़नी पढ़ी थी | वो अच्छे से ये बात समझती थी और इस वजह से उसने कभी भी माँ बापू से अपनी पढ़ाई को लेके कोई शिकायत नहीं की | बल्कि खुद से उसने एक एन. जी. ओ. की मदद से अपनी पढ़ाई जारी रखी और कभी भी माँ बापू को ये नहीं बताया कि उसने बारहवीं पास कर ली थी और अब बैंक के एग्जाम की तैयारी कर रही थी जिससे कि माँ बापू के आत्म सम्मान को ठेस ना पहुंचे | उसने सोच रखा था कि वो अपनी पढाई के बारे में घर में तब ही बताएगी जब उसकी नौकरी लग जाएगी | उस दिन का मुन्नों को बेसब्री से इंतज़ार था जब वो अपने घर की कुछ ज़िम्मेदारियाँ अपने सर पे ले पायेगी | पिछले साल बस कुछ ही नम्बरों से वो रह गई थी लेकिन इस बार उसे पूरा विश्वास था कि वो पास हो जाएगी और जल्द ही किसी सरकारी बैंक में उसे नौकरी मिल जाएगी | एक महीने बाद रिजल्ट आने वाला था और एक एक दिन मुन्नों का मुश्किल से कट रहा था | आखिर रिजल्ट आ गया और मुन्नों का नंबर भी | वो खुश भी बहुत थी और थोड़ी परेशान भी कि घर में जब ये बताएगी तो माँ बापू कैसी प्रतिक्रिया देंगे? वे खुश तो होंगे लेकिन कहीं फिर से सोचने तो नहीं लगेंगे कि उन्होंने मेरे साथ गलत किया है ? कहीं मैं फिर से उनके आत्म सम्मान को चोट तो नहीं पहुंचा दूंगी ? दो दिन निकल गए थे और मुन्नों ने इतनी ख़ुशी की बात छुपाये रखी थी | आख़िरकार मुन्नों ने माँ बापू को बताने का फैसला किया और शाम को जब कांति घर आया तो माँ बापू को एक पास बुला के बोली- “बापू, तुमसे एक बात कहनी है, गुस्सा तो नहीं करोगे ?” कांति ने आश्चर्य से मुन्नों कि तरफ देखा और कहा- “क्यों क्या हुआ बेटा ?” मुन्नों ने कहा- “बापू मेरा बैंक में नंबर आ गया है और दो हफ्ते बाद मुझे बैंक में ट्रेनिंग के लिए जाना है | ” कांति और कुमकुम ने एक दूसरे की तरफ आश्चर्य से देखा | कुमकुम बोली- “मतलब ?” कांति ने भी पूछा – “बेटा लेकिन उसके लिए तो बारहवीं या उसके आगे की क्लास पास करनी पढ़ती है ना और तूने तो बस नौवीं पास की है?” मुन्नों ने थोड़ा सहम कर कहा- “हाँ बापू, मैंने आप दोनों को बताया नहीं | बारहवीं तो मैंने दो साल पहले ही पास कर ली थी और दो साल से मैं बैंक कि तैयारी में लगी थी पर अब मेरा नंबर आ गया है और दो हफ्ते बाद जॉइन करना है | ” कांति और कुमकुम के पास शब्द नहीं थे | मुन्नों फिर बोली – “पता है बापू, पूरे 14000 वेतन मिलेगा | ” ये सुनकर तो कांति और कुमकुम के पैरों के नीचे से ज़मीं ही निकल गई | दोनों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उनके जीवन में ऐसा भी एक पल आ सकता है | दोनों के मुंह से बस एक ही शब्द निकला – “14000 , तू सच कह रही है क्या ?” मुन्नों बोली- “हाँ माँ बापू मैं सच कह रही हूँ | ” और उसने अपना जोइनिंग लेटर भी ला के दिखाया | कांति और कुमकुम को और कुछ तो समझ नहीं आया लेकिन उस कागज़ पे 14 के आगे लगे तीन जीरो समझ आ गए | उनके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे और आँखों से आंसू नहीं रुक रहे थे | उनकी बिटिया ने उनके जीवन का सबसे बड़ा आश्चर्य जो उन्हें दिया था | कांति और कुमकुम ने मुन्नों को गले लगा लिया | कांति को अचानक से उसे वो दिन याद आ गया जब मुन्नों पैदा हुई थी | कांति के माँ बाप तो पोता चाहते थे लेकिन लड़की पैदा होने पे कांति उतना ही खुश था जितना वो लड़के के पैदा होने पे खुश होता | उसने अपने माँ बाप से कहा था- “आप लोग देखना मेरी बिटिया जीवन में कुछ बन के दिखाएगी | कुछ कर के दिखाएगी | ” उसने छत की तरफ देखा और उसे लगा जैसे उसके स्वर्गीय माता पिता कह रहे हों- “बेटा तूने सच ही कहा था | देख आज हमारी मुन्नों ने कुछ बन के दिखा दिया |”

“जीवन की सीख”

प्रशांत रोज़ की तरह सुबह जल्दी नहा धो कर, नाश्ता करके स्कूल के लिए निकल गया| घडी में सवा सात बज चूका था| आज वो लेट हो गया था| स्कूल था तो ८ बजे का लेकिन प्रशांत को एक घण्टा पहले निकालना पढता था| साइकिल से स्कूल पहुँचने में उसे करीब १ घंटा लग जाता था| “भाई आज तो लेट हो गया, लगता है आज दीपक सर क्लास में घुसने नहीं देंगे| एक तो वैसे भी मुश्किल से एक ही क्लास लगती है| वो भी सुबह सुबह|” प्रशांत मन ही मन बड़बड़ाता हुआ साइकिल तेज़ चला रहा था| उत्तर प्रदेश में नवम्बर के महीने में सुबह शाम की अच्छी खासी ठण्ड हो जाती है पर साइकिल तेज़ चलते हुए प्रशांत के पसीने छूट रहे थे|

प्रशांत उत्तर प्रदेश के एक जिले के सरकारी इंटर कॉलेज में ग्यारह वीं क्लास में पढता था| उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों की हालत सरकारी विभागों और सरकारी अस्पतालों जैसी ही थी| सरकारी विभागों में कर्मचारी नहीं आते थे, सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर नहीं आते थे और सरकारी स्कूलों में शिक्षक| उसके स्कूल की हालत भी वैसी ही थी| क्लास में पंखे तो थे पर बिजली कहाँ आती थी| दीवारों में खिड़कियां तो थीं पर उनमे शीशे कहाँ होते थे| बच्चों का गर्मी और सर्दी, दोनों में ही बुरा हल होता था| फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी की लैब में प्रैक्टिकल करने से पहले बच्चे इस बात से डरते थी कि कही कुछ टूट गया तो फाइन देना पड़ेगा, डांट पड़ेगी वो अलग| उन लैब्स में पता नहीं कितने साल पुराने उपकरणों से काम चलाया जा रहा था| बच्चे किसी टीचर से सवाल पूछने से डरते थे कि अगर कोई सवाल पूछ लिया, तो टीचर उससे पहले का सवाल पूछ लेगा और अगर नहीं बताया तो मुर्गा बना देगा| और बाद में जाते हुए कह के जाता था की कुछ पढ़ ले वार्ना पास नहीं होगा| इसलिए घर आ जाना| इस बात का मतलब होता था- घर ट्यूशन पढ़ने आ जाना| प्रशांत की क्लास के आधे से ज्यादा बच्चों ने मैथ्स के मास्टर साहब से ट्यूशन लगा रखा था| इसलिए नहीं कि, उन्हें मैथ्स पढ़ना था, पर इसलिए कि उन्हें मैथ्स में पास होना था| प्रशांत ये जनता था कि मास्टर साहेब से ट्यूशन पढ़के ग्यारहवीं तो पास हो जाएगी लेकिन बारहवीं के बोर्ड के एग्जाम में बिना कुछ पढ़े पास नहीं हो पायेगा| इसलिए प्रशांत ने अपने जिले के कुछ मशहूर ट्युटर्स से मैथ्स के और फिजिक्स के ट्यूशन्स लगा लिए थे| दीपक सर स्कूल में ही केमिस्ट्री अच्छी पढ़ा दिया करते थे तो उसने केमिस्ट्री का ट्यूशन लगाने की ज़रुरत नहीं समझी| घर के आर्थिक हालात ठीक न होने कि वजह से प्रशांत जहाँ तक हो सके अपना खर्चा बचने की कोशिश करता था| दीपक सर का केमिस्ट्री का पहला ही लेक्चर होता था जिसे प्रशांत कभी मिस नहीं करता था| और इसी वजह से तेज़ साइकिल चला कर वो टाइम पे क्लास में पहुंचना चाहता था|

प्रशांत १० मिनट की देरी से क्लास में पहुंचा| दीपक सर को पता था कि प्रशांत एक होनहार और मेहनती स्टूडेंट है तो उन्होंने उसे क्लास में आने से मन नहीं किया| क्लास खत्म होने के बाद प्रशांत ट्यूशन के लिए जैसे ही निकलने लगा, एक छोटे से कद के लड़के ने आके उसे रोक लिया| “कहाँ जा रहा है भाई. आज तो तेरी दावत है|” प्रशांत ने आश्चर्य से उस लड़के की तरफ देखा और कहा- “मतलब”|
छोटे से कद के लड़के ने कहा- “मतलब तो तुझे अभी पता चल जायेगा| बस क्लास से अभी बहार मत जाना|” ये कहकर वो लड़का क्लास से बाहर चला गया| तभी प्रशांत ने क्लास में अखिलेश और अनुज को आते हुए देखा| वो दोनों भी थोड़े डरे हुए थे| प्रशांत ने अखिलेश से पूछा- “क्या हुआ भाई तू डरा हुआ क्यों है| तुझे पता है ये लड़का जो अभी बहार गया है, मुझसे बोला कि तेरी दावत है और क्लास से आज बहार मत जाना|” अखिलेश ने अनुज कि तरफ देखते हुए बोला- “बेटा आज तेरी रैगिंग है|”

प्रशांत के स्कूल में कुछ लड़के थे जो गुंडा गर्दी करते थे| उनके ग्रुप में आठवीं से लेके बारहवीं तक के ज्यादातर फेल हो जाने वाले लड़के थे| प्रशांत ने ये तक सुना था कि उन्होंने स्कूल के बाहर जो पुल जाता था, वहां एक टीचर पे कम्बल गिरा के उसे बहुत पीटा था| ये लड़के किसी भी लड़के को रैगिंग के लिए पकड़ लेते थे और उनमें होड़ लगती थी कि कौन आज ज्यादा ज़ोर से थप्पड़ मरेगा| प्रशांत डर गया| लेकिन उसका माथा ठनक रहा था कि अचानक आज उसे ही क्यों पकड़ लिया| प्रशांत को उसके साथ के कुछ लड़कों ने बताया था कि जो लड़के स्कूल में ज्यादा स्टाइल मारते हैं, या हीरोगिरी करते फिरते हैं, वो गुंडे लड़के जयादातर उन्हीं की रैगिंग करते हैं| प्रशांत ने सोचा कि मैं तो ऐसा कुछ नहीं करता, तो फिर क्या वजह हो सकती है? प्रशांत घबराने लगा| उसे रैगिंग के नाम से ही डर लगता था| प्रशांत मन ही मन सोच रहा था कि पता नहीं आज क्या होगा, कितनी मार खाऊंगा, स्कूल में कितनी हंसी बनेगी| प्रशांत मन ही मन ये सब सोच रहा था कि वो छोटे कद का लड़का अपने ही जैसे कद के लड़के के साथ क्लास में आया और प्रशांत से बोला- “चल जा बाहर से स्वीटी सुपारी ले के आ|” अखिलेश ने धीरे से बोला- “चल भाई, जैसा ये कहते हैं, वैसा कर|” स्कूल के बाहर ही एक पंसारी की दुकान थी| प्रशांत और अखिलेश वहां से सुपारी ले रहे थे कि प्रशांत बोला- “यार मैं भाग जाऊं क्या?” अखिलेश ने कहा-“अबे पागल हो गया है क्या, आज के बाद कभी स्कूल नहीं आना क्या, अगर नहीं तो भाग जा लेकिन अगर स्कूल अाना है तो वही करना पड़ेगा जैसा ये लोग बोल रहे हैं, आगे तेरी मर्ज़ी|” प्रशांत को अखिलेश की बातें सही लगीं| अखिलेश फिर बोला-“तू क्लास में जा, मैं एक बार जा के सुनहरी लाल से मिल के आता हूँ| जो लड़का तेरी रैगिंग लेने को आया है, वो सुनहरी लाल का मौसेरा भाई है| मैं जा के एक बार उसी से बात करता हूँ|” ये कहकर अखिलेश सुनहरी लाल को ढूंढने चला गया और प्रशांत डरते हुए क्लास में पहुंचा| उसने सुपारी देते हुए कहा- “भाई अगर मुझसे कोई गलती हुई है तो मुझे माफ़ करो|” छोटे कद के लड़के ने कहा-“बेटा आज तो तू गया| आज के बाद तू किसी की हंसी नहीं बनाएगा|”
प्रशांत आश्चर्यचकित होते हुए बोला- “लेकिन मैंने तो किसी की हंसी नहीं बनाई|” छोटे कद के लड़के ने कहा- “याद कर, आज या कल मैं तूने किसी की हंसी नहीं बनाई? खैर, अभी भैया लोग स्कूल अाये नहीं हैं, एक बार उनको आ जाने दे, फिर तेरी दावत शुरू करते हैं|”

प्रशांत के चेहरे पे हवाइयां उड़ रहीं थी| उसे समझ नहीं आ रहा था की क्या करे| भाग भी नहीं सकता था| बस वो अखिलेश का इंतज़ार कर रहा था कि शायद वो सुनहरी लाल को बुला के ले आये और समझौता करा दे| प्रशांत का इंतज़ार ख़त्म हुआ और अखिलेश जल्दी जल्दी चलता हुआ आया और प्रशांत के कान में धीरे से बोला- “कल तेरी सुनहरी लाल से कोई बात हुई थी क्या?”
प्रशांत (धीरे से)- “नहीं तो. बस कल नल पे पानी पीते हुए मिला था. क्यों?”
अखिलेश (प्रशांत के कान में)- “मुझे गौरव मिला था| बोल रहा था कि तूने सुनहरी लाल से कुछ ऐसा कहा कि वो नाराज़ हो गया| उसी ने अपने भाई को तुझे मरने को भेजा है|”
प्रशांत-“भाई मैंने तो कुछ भी नहीं कहा उसे| वो आज स्कूल आया है क्या?”
अखिलेश- “नहीं, अभी तक तो मुझे नहीं दिखा| तू यहीं ठहर मैं एक बार फिर से उसे देख के आता हूँ|” ये कहकर अखिलेश सुनहरी लाल को देखने चला गया|

प्रशांत ने मुड़कर उस छोटे कद के लड़के की तरफ देखा और पूछा- “तुम सुनहरी लाल के छोटे भाई हो? मैं और सुनहरी लाल विद्या मंदिर में दसवीं क्लास तक साथ साथ पढ़े हैं|” छोटे कद के लड़के ने कहा- “मुझे पता है| उसी ने मुझे तुझे सबक सिखाने को भेजा है| बस एक बार भाइयों को आ जाने दे, तू रुक जा|”

प्रशांत उस लड़के का चेहरा पढ़ सकता था| वो बस इसी फिराक़ में था की स्कूल के गेट पे उसके भाई लोग आ जाएँ और वो अपना मार पीट का कार्यक्रम शुरू कर सके| प्रशांत की निगाहें भी गेट पर ही थीं| मन ही मन वो भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि भाइयों का वो ग्रुप न आये| तभी उसने गौरव को स्कूल से बहार जाते हुए देखा| गौरव की उन गुंडे लड़कों के ग्रुप में कुछ लड़कों से दोस्ती थी और ज्यादातर उन्हीं लड़कों के साथ उठता बैठता था| प्रशांत ने क्लास में से ही उसे आवाज़ लगायी| गौरव ने सुन लिया और क्लास में आया| प्रशांत गौरव से बोला- “भाई समझा न इसे| हम सब लोग एक ही स्कूल से पढ़े लिखे हैं| अगर मुझसे कोई गलती हुई है तो मैं उसे सुधारने के लिए तैयार हूँ, पर ये रैगिंग वैगिंग तो ठीक नहीं है न|” गौरव ने प्रशांत की तरफ देखा और फिर उस छोटे कद के लड़के की तरफ| गौरव उस लड़के को एक तरफ लेके गया और कुछ बात करने लगा| कुछ मिनट बाद वो वापस प्रशांत की तरफ आया और बोला- “भाई ये रैगिंग बस तभी रुक सकती है जब तू सुनहरी लाल से माफ़ी मांग ले और वो तुझे माफ़ कर दे|” प्रशांत ने कहा- “ठीक है, माफ़ी तो मैं मांग लूंगा लेकिन मुझे पता तो चले कि बात क्या है?”
गौरव- “तू याद कर, आज या कल या पिछले कुछ दिनों में तूने सुनहरी लाल से कुछ कहा हो|”
प्रशांत- “नहीं भाई, मुझे तो कुछ याद नहीं आ रहा|” फिर प्रशांत कुछ देर रुक कर बोला- “हाँ, कल मुझे वो नल पे पानी पीते वक़्त मिला था, छुट्टी के बाद, लेकिन ऐसी तो कोई बात नहीं हुई की बात मेरी रैगिंग तक पहुँच जाये|”
गौरव उस छोटे कद के लड़के से बोला- “सुन भाई, सुनहरी लाल को आ जाने दे, अगर इन दोनों में कोम्प्रोमाईज़ हो गया तो ये राम कहानी यहीं रोक देना| बाकी लोगों से मैं बात कर लूंगा|”
लड़का- “ठीक है, मैं इंतज़ार कर लूंगा| लेकिन एक बात कह देता हूँ, अगर इसकी मुझे किसी से भी कोई और शिकायत मिली तो गौरव भाई, मैं आप की भी नहीं सुनूंगा|”
गौरव- “ठीक है, इस बात की गारंटी मैं लेता हूँ|”

कुछ देर इंतज़ार करने के बाद अखिलेश ने आके बताया कि सुनहरी लाल स्कूल आ गया था| सुनहरी लाल जाति से पंडित था| एक सीधा सा लड़का था| पढ़ने लिखने में एक साधारण सा लड़का था| स्कूल में ज्यादा खेलता कूदता भी नहीं था| इस वजह से जो लड़के उसको जानते थे, वे कभी उसक मज़ाक बनाते या कभी उसका नाम बिगाड़ते| गौैरव ने उस लड़के को सुनहरी लाल को बुला लाने भेजा| सुनहरी लाल के क्लास में घुसने से पहले ही प्रशांत सुनहरी लाल के पास पहुँच कर बोला- “यार ये सब क्या है? मैंने तुझसे ऐसा क्या कह दिया कि तूने अपने भाई को मुझे पिटवाने को भेज दिया|” सुनहरी लाल कुछ देर शांत रहने के बाद बोला- “तुझे याद नहीं, कल जब मैं नल चला रहा था तो तूने क्या कहा था?”
प्रशांत- “नहीं, मुझे तो कुछ याद नहीं आ रहा|”
सुनहरी लाल- “तूने नहीं कहा था कि ‘अबे चोटी, आज खाना नहीं खाया क्या, नल थोड़ा तेजी से चला|'”
ये सुनने के बाद प्रशांत का चेहरा भक्क से पीला पड़ गया| उसे विश्वास नहीं हो रहा था की इतनी छोटी सी बात का ऐसा बतंगड़ बन सकता था| सुनहरी लाल प्रशांत के साथ पांचवीं क्लास से दसवीं क्लास तक विद्या मंदिर में ही पढ़ा था| और क्लास में ज्यादातर लड़के उसे ‘चोटी’ कहकर ही बुलाते थे|

प्रशांत ने सुनहरी लाल से कहा- “भाई, सब तो तुझे इसी नाम से बुलाते थे विद्या मंदिर में, और तूने भी कभी किसी को रोका नहीं| तू अगर मुझे बता देता कि तुझे ऐसा सुनना बुरा लगता है तो मैं तेरा नाम कभी नहीं बिगाड़ता. दोस्तों में तो ये सब…”
सुनहरी लाल ने प्रशांत को बीच में ही रोकते हुए कहा- “प्रशांत! मैं तो कभी तेरा दोस्त नहीं था| सही बात तो ये है कि मेरा अब तक कोई दोस्त रहा ही नहीं| पांचवीं से लेकर अब तक जितने लड़के मुझे जानते हैं, इसी नाम से ही पुकारते हैं| अब तक मेरे पास कोई तरीका नहीं था ऐसे लड़कों को समझाने का लेकिन अब है|”

प्रशांत सुनहरी लाल से नज़रें नहीं मिला पा रहा था| उसकी आँखे थोड़ी सी नम हो गई| उसके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे पर उसने रुंधलाते हुए कहा- “भाई मुझे माफ़ कर दे| मुझे बिलकुल नहीं पता था की तुझे इतना बुरा लग जायेगा| आगे से मैं तेरा नाम कभी नहीं बिगाड़ूँगा|”
सुनहरी लाल को भी थोड़ा बुरा लगा| वो सोच रहा था कि बात आगे बढ़ने से पहले एक बार मुझे प्रशांत से ही बात कर लेनी चाहिए थी| उसने अपने भाई को वापस जाने के लिए इशारा कर दिया| उसका भाई प्रशांत को घूरते हुए क्लास से बाहर निकल गया मानो कह रहा हो- “बेटा इस बार तो तू बच गया, अगली बार नहीं बचेगा|”

प्रशांत ने सुनहरी लाल को थैंक्यू बोलते हुए कहा- “भाई आज तूने बचा लिया वर्ना आज बहुत मार पड़ने वाली थी| सुन मैं अब से तेरा तो क्या किसी का नाम नहीं बिगाड़ूँगा, लेकिन मैं तुझे तेरे नाम से भी नहीं पुकारूँगा|” सुनहरी लाल ने चौंकते हुए पूछा- “तो फिर किस नाम से पुकारेगा|” प्रशांत ने मुस्कुराते हुए कहा- “दोस्त!” और फिर दोनों मुस्कुराते हुए नयी दोस्ती का जश्न मानाने स्कूल के बाहर चाय के ठेले पे चले गए|