शनिवार का दिन था| सतेंद्र सुबह काफी देर से आशीष के घर से बाहर निकलने का इंतज़ार कर रहा था| वो आशीष के घर के बाहर एक परचूनी के खोखे पे बैठा आशीष का इंतज़ार कर रहा था| मोहल्ले के सभी लड़के मैच खेलने के लिए इकट्ठे हो गए थे बस आशीष की ही देरी थी| क्रिकेट का सामान तो आशीष के पास ही रहता था| तो सभी लड़के टकटकी लगाकर आशीष के घर के गेट को देखे जा रहे थे कि इतने में आशीष की मां घर के बाहर झाड़ू लगाने निकली. सभी ने सतेंद्र को बोला- “अबे पूछ ना आशीष कितनी देर में आएगा?” सत्नेद्र ने कहा- “तुम लोग भी तो पूछ सकते हो?” उन लड़कों में से एक ने कहा- “अबे सबको पता है कि हम में से किसी ने पूछा तो ऑन्टी चिल्ला के यहाँ से भगा देंगी पर तुझे वो कुछ नहीं कहती| तुझे पूछना है तो जल्दी पूछ वार्ना हम लोग तो जा रहे हैं| कहीं और से लड़के इकट्ठे कर लेंगे और सामान भी| अगर आशीष नहीं आएगा तो क्या मैच नहीं खेलेंगे? ”
मोहल्ले के सभी लड़कों को शनिवार का बेसब्री से इंतज़ार रहता था क्योंकि बाकी दिन तो सबके स्कूल होते थे तो घर वापस आकर होम वर्क करना पढता था और खेलने का वक़्त नहीं मिलता था | लेकिन सतेंद्र को इस दिन का खास तौर से इंतज़ार रहता था और “बेसब्री” शब्द भी उसके लिए नाकाफी था | इसकी दो वजह थी- एक तो मोहल्ले के क्रिकेट खेलने वाले लड़कों में बस वही एक था जो स्कूल नहीं जाता था| तो हर रोज़ वो बोर हो जाता था| दूसरा हर शनिवार को वो पांच-पांच रुपये के मैच बदता था जिसे जीतकर वोअगले शनिवार तक अपना खर्चा चलाता था| उसे घर से पॉकेट मनी नहीं मिल पाती थी| उसके मां बाबूजी ने उसका एडमिशन पास के ही एक सरकारी स्कूल में करा दिया था जहाँ पढाई तो क्या, पढाई के बारे में बातें भी नहीं होती थीं| सतेंद्र के पिता जी के उस स्कूल के कुछ अध्यापकों से सम्बन्ध थे तो हाजरी की कोई परेशानी नहीं थी| रोज़ बस गणित का एक ट्यूशन पढ़ने जाता था क्योंकि वही एक विषय था जिसे समझने में सतेंद्र को थोड़ी दिक्कत होती थी वर्ना बाकी के विषय वो या तो खुद से पढ़ लेता था या फिर आशीष की मदद ले लेता था| वह पढ़ने में अच्छा था लेकिन घर की आर्थिक स्तिथि अच्छी न होने की वजह से उसे सरकारी स्कूल में एडमिशन लेना पड़ा| आशीष की मां ये सब जानती थी तो सतेंद्र के लिए उनके मन में एक अलग ही सहानुभूति थी|
जब सब लड़के नाराज़ होने लगे तो सतेंद्र ने आशीष की मां से पूछा- “ऑन्टी आशीष जगा कि नहीं?” आशीष की मां ने कहा- “अच्छा तो फिर आज तुम लोगों का मैच होगा तभी सब लोग तैयार बैठे हो क्यों? आशीष अंदर तैयार हो रहा है अभी आता ही होगा” इतने में आशीष बाहर आता हुआ दिखाई दिया| उसके हाथ में बैट, बोल और 2 विकेट थे| सतेंद्र ने पूछा- “अबे तीसरा विकेट कहाँ गया?” आशीष- “पता नहीं यार मैंने बहुत ढूंढा पर मिला नहीं लेकिन कोई नहीं, दूसरी टीम भी तो विकेट लायी होगी|”
सतेंद्र-“हाँ ठीक है और अगर नहीं भी लायी होगी तो बीच में ईटों का विकेट बना लेंगे|”
आशीष- “वैसे मैच किसके साथ है?”
सतेंद्र- “लविंडा के साथ|”
आशीष- “चल तो फिर जीत ही जायेंगे|” और इस बात पे दोनों मुस्कुराते हुए टीम के साथ मैदान की तरफ चल दिए|
लविंडा आशीष के घर के पास खटीकों की एक बस्ती थी, वहीं रहता था| ज्यादातर वहां हर घर में छोटी-छोटी लोहे की पत्तियों की फैक्टरी लगी हुईं थी| लविंडा उनमें से ही एक फैक्ट्री में काम करता था| उसकी टीम के और भी लड़के उन्ही छोटी फैक्टरियों में काम करते थे| लविंडा अपने मामा के यहाँ रहता था| उसके मां बाप बहुत गरीब थे उसे पाल पोस नहीं सकते थे तो वो उसे उसके मामा के यहाँ छोड़ गए थे| जब कभी मामा से छुट्टी मिल जाती थी तो लविंडा मैच खेलने आ जाता था| लविंडा को क्रिकेट का बहुत शौक था और इसलिए हर बार सतेंद्र से हारने के बाद भी मैच बद लेता था| अपनी टीम में बस वही एक था जो थोड़ा अच्छा खेलता था|
मैदान पे जैसे ही सब लोग पहुंचे तो देखा की लविंडा आज एक नई टीम के साथ आया था| सतेंद्र ने पूछा- “अबे ये कौन लोग हैं ?”
लविंडा- “ये लोग पास में ही काम करने आये हैं, इनको खेलना आता है तो अपने साथ बुला लाया| पुराने खिलाड़ी आज कहीं और मैच खेलने निकल गए|”
सतेंद्र- “चलो तो फिर मैच शुरू करते हैं?”
पहले मैच का टॉस हुआ| टॉस लविंडा ने जीता और बैटिंग ली| 6 – 6 ओवर का मैच था| लविंडा ने अपने नए प्लेयर के साथ ओपनिंग शुरू की| उसकी टीम हमेशा सतेंद्र की टीम की तुलना में कमज़ोर रहती थी तो वो ज्यादातर ओवर खुद ही डालता था और बैटिंग में भी ज्यादातर स्ट्राइक अपने पास ही रखता था| लेकिन आज उस नए प्लेयर ने तो कोहराम मच दिया था| सतेंद्र की तरफ से ज्यादा ओवर आशीष ही डालता था| आशीष एक अच्छा फ़ास्ट बॉलर था| पहली बोल पे लविंडा ने स्ट्राइक बदली और फिर पूरी बैटिंग उसका नंबर नहीं आया| पहले ओवर में १२, दूसरे में १०, तीसरे में फिर १२| ऐसे कर के ६ ओवर में बिना किसी विकेट के 56 रन| उस नए प्लेयर कि बैटिंग देख कर सतेंद्र का हलक सूख गया| वैसे तो सतेंद्र ओवर नहीं करता था पर इस बार उसने भी ओवर कराया था और बस तीन रन ही दिए| वो सबसे ज्यादा किफायती रहा| अब तक लविंडा ने जितने मैच खेले थे उसकी टीम कभी भी 20 -25 रन से ज्यादा नहीं बना पाई थी लेकिन आज तो बस कमाल ही हो गया था| सतेंद्र की टीम भी कम नहीं थी लेकिन अब तक उन्होंने ने भी 6 ओवर में 40 से ज्यादा रन नहीं बनाये थे लेकिन 56 रनों का लक्ष्य देखकर उनके भी पसीने छूट गए| जैसे तैसे उन्होंने 30 रन बनाये और मैच हार गए| लविंडा वैसे तो उम्र में सब लड़कों से बड़ा था लेकिन आज छोटे बच्चों की तरह मैदान के चारों तरफ भाग रहा था| सतेंद्र से आज वो पहला मैच जीता था| सतेंद्र और आशीष को बहुत बुरा लग रहा था| जिस टीम से अब तक कोई मैच नहीं हारे थे, उससे आज पहली बार इतनी बुरी तरह से हार गए थे| सतेंद्र को पांच रुपये जेब से जाते हुए बहुत खटक रहे थे| लेकिन उसकी उम्मीद अभी भी दूसरे मैच से थी| उसने पहले मैच से एक बात जान ली थी कि वो नया प्लेयर फ़ास्ट बोलर्स को बहुत अच्छा खेल रहा था लेकिन स्पिन खेलने में थोड़ा झिझक रहा था|
दूसरा मैच शुरू हुआ| टॉस फिर से लविंडा ने जीता| लेकिन इस बार उसने बोलिंग ली| सारे ओवर्स उन नए प्लेयर्स ने ही कराये और सतेंद्र की टीम ने 6 ओवर में इस बार 44 रन बना लिए| लेकिन सतेंद्र के सामने ये रन बचाने की एक बड़ी चुनौती थी| पिछले मैच में ही जिस टीम ने 6 ओवर में 56 रन बनाये हों उनके लिए 45 रन बनाना कोई मुश्किल काम नहीं था| सतेंद्र ने निर्णय लिया कि 6 में से 3 ओवर वही डालेगा| पहला ओवर उसने खुद डाला| सतेंद्र की बोल थोड़ी धीमी आती थी| दूर से देखकर लगता था कि खेलना आसान होगा लेकिन क्रीज़ पर उसकी बोल खेलना आसान नहीं था| पहले ओवर में एक चौका खाकर उसने 7 रन दिए| अगला ओवर उसने आशीष को दिया लेकिन फ़ास्ट नहीं धीमी बोल करने को कहा| आशीन वैसे तो फ़ास्ट बॉलर था लेकिन लेग स्पिन भी करा लेता था| उसका ओवर थोड़ा महँगा रहा लेकिन उसने लविंडा का कीमती विकेट उड़ा लिया था| उसने 8 रन दिए| मैच आखिरी ओवर तक पहुंचा और लविंडा की टीम को जीत के लिए 11 रन चाहिए थे| आखिरी ओवर आशीष का ही था| आशीष ने पहली ही बोल पर चौका खा लिया| सतेंद्र ने आकर उसे समझाया की बोल को शार्ट रखे जिससे कैच होने की संभावना थी| आशीष ने वही किया और उसे विकेट मिल गई| सतेंद्र ख़ुशी से झूम उठा| वो ये मैच किसी भी कीमत पर जीतना चाहता था क्योंकि उसके पास जो पांच रुपये थे वो तो पहला मैच हारकर जा चुके थे और अगर वो ये मैच भी हार गया तो उस पर पांच रूपये की उधारी हो जाएगी| फिर वो पूरा सप्ताह कैसे चलाएगा| सतेंद्र के मन में यही सब चल रहा था| आशीष ने तीसरी गेंद डाली| वो बल्ले का किनारा लेकर पीछे चली गई और एक ही रन बन सका| अब क्रीज़ पर नया प्लेयर था| आशीष ने जैसे ही ओवर की चौथी बोल डाली, उस नए प्लेयर ने आगे निकल के बोल उड़ा दी| बोल बाउंडरी की तरफ हवा में जा रही थी| सतेंद्र का दिल जैसे बैठ गया, उसे लगा कि मैच हाथ से निकल गया लेकिन बोल बाउंडरी से एक टप्पा पहले गिरी| सतेंद्र को जैसे जीवनदान मिल गया था| वो भागकर आशीष के पास गया और बोला- “देख भाई यही बोल फिर से डालना| मैं उसी तरफ कैच के लिए भागूंगा| अब बस नसीब से ही ये जीत मिलेगी|” आशीष ने वही किया और उस नए प्लेयर ने भी वही शॉट दोहराया| बोल हवा में बहुत लंबी उछल गई और सतेंद्र को बोल के नीचे आने का वक़्त मिल गया| आशीष बस हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रहा था की सतेंद्र कहीं कैच न छोड़ दे| बोल जैसे ही नीचे आई, सतेंद्र के हाथ से फिसल गई| लविंडा ख़ुशी से झूमने ही वाला था कि सतेंद्र ने छुटी बोल फिर से लपक ली| वो ज़मीन पे लेट गया| आशीष दौड़ा दौड़ा आया और सतेंद्र को उठाया| दोनों गले मिलकर उछलने लगे| लविंडा ने सतेंद्र को पांच रुपये दे दिए| आशीष ने भी सतेंद्र को पांच रुपये देते हुए कहा- “भाई ये रख ले वार्ना इस हफ्ते की तेरी पॉकेट मनी कम पड़ जाएगी| अगले शनिवार को जब फिर जीत जायेंगे तब मुझे दे देना|” सतेंद्र ने आशीष को गले लगते हुए कहा- “थैंक्स यार| मैं ज़रूर लौटा दूंगा|”
दोपहर के खाने का वक़्त हो चला था| सब लोग अपने अपने घर के लिए निकल गए| शाम को सब फिर से उसी खोखे पे इकठ्ठा हुए| सतेंद्र ने आशीष के पास जाकर कहा- “भाई अगले शनिवार को लविंडा से फिर से मैच बद दिया है, पांच रूपये का|” और दोनों एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुराने लगे|