Category Archives: Motivational

Motivational Poems

वो दरिया है बह जायेगा..

करे कोशिशें कोई हज़ार
हो अड़चनें चाहे अपार
रोके न जो रुक पायेगा
बांधे न जो बंध पायेगा
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

बादल को बरस जाना ही है
बिजली को चमक जाना ही है
हो शेर भले पिंजरे में बंद
पर उसको गरज आना ही है..
आदत में उसकी है नहीं
वो चुप तो न रह पायेगा..
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

शब् जाती है शब् जाएगी
सहर आती है वो आएगी
हो घाम कितनी तेज़ ही
पर शाम न रुक पायेगी
बन्दे में वो ताक़त कहाँ
कुदरत को बदल जो पायेगा..
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

बाहों में न आये गगन
रूकती कहाँ है ये पवन
बंध के जहाँ में जो रहे
ना मुदित है ना है वो मगन
जो पानी है जो रेत है
मुट्ठी से फिसल ही जायेगा..
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

कदम ना उसको रुकने दें
जिसके मन में आशाएं हों
स्वप्न ना उसको सोने दें
यदि आतुर अभिलाषाएं हों
नदिया सा जिसको बहना है
वो ताल तो ना बन पायेगा..
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

रोके न जो रुक पायेगा
बांधे न जो बंध पायेगा
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

-मंजुसुत इशांश

“वो वक़्त भी आ जायेगा”

एक सूरज नया उग जायेगा
रोशन मुझे कर जायेगा
जो हर तरफ घेरे मुझे
अँधेरा ये मिट जायेगा
वो वक़्त भी आ जायेगा ||

कर के साजिश चांदनी संग
मुझपे सितारे हँसते हैं
चाँद पैरों के तले जब
खुद-ब-खुद आ जायेगा
वो वक़्त भी आ जायेगा ||

इक डाल से चिपके परिंदे
ये मुझको ताने देते हैं
आसमां आ कर के खुद
जब मुझे पंख लगाएगा
वो वक़्त भी आ जायेगा ||

अभी हाथ मेरे खाली हैं
आँखें अभी भी प्यासी हैं
पर देख के जलवा मेरा
जलवा भी खुद शरमाएगा
वो वक़्त भी आ जायेगा ||

वो पूछें हलके झोकें से
क्यूँ टूटे दिल शीशा मेरा
कांच के इस टुकड़े से जब
पर्वत भी बिखर जायेगा
वो वक़्त भी आ जायेगा ||

कतार में वो सब खड़े हैं
इक ख़िताब की होड़ में
नाचीज़ नाम ये एक दिन
जब इनाम खुद बन जायेगा
वो वक़्त भी आ जायेगा ||

नाकामी का एक कांटा
दिल में अब भी चुभता है
कभी इक कोई बुलंदी
का नशा चढ़ जायेगा
वो वक़्त भी आ जायेगा ||

आई न मेरी एक सुबह
आई न कोई शाम मेरी
इक रात मेरी हो जाएगी
जब दिन मेरा निकल आएगा
वो वक़्त भी आ जायेगा ||

ज़िन्दगी ये थोड़ी निकल गई
आँखें भी अब धुंधला रहीं
क़दमों में अब कम जान है
हैं साँसे भी घबरा रहीं
पर अब भी नहीं जो टूटता
वो हौसला शिखर चढ़ जायेगा
वो वक़्त भी आ जायेगा ||
वो वक़्त भी आ जायेगा ||

-मंजुसुत ईशांश

“कांग्रेस को फिर से हराना है”

साठ साल से ज्यादा ही
जो राज सदा करते आये,
भारत माता की छाती पर
सांप लोटते ही आये,
जनता तो ये सोचे थी कि
वे नवयुग को लाएंगे,
ऐसा क्या आभास था वे
इस देश का मान गिराएंगे,
उन नेताओं के वंशज को,
हमें अब सबक सिखाना है,
देश को हमें बचाना है
कांग्रेस को फिर से हराना है ||

जाति धर्म में बाँट बाँट
जो लोगों को छलते आये,
झूठी मनमोहक नीतियों से
बस मनमुटाव करते आये,
अंग्रेज़ों ने जिस तरह से
देश को कभी बांटा था,
उसी तरह से देश राज्य को
छिन्न भिन्न करते आये,
तुम कश्मीरी, तुम दलित,
तुम माइनॉरिटी, आदिवासी हो,
कभी न कहा कि हे मनुज
तुम एक ही भारतवासी हो,
और तब भी बिन लज्जा के
खुद को सेक्युलर वे कहते हैं,
धर्मनिरपेक्षता की भगवन ये
कैसी परिभाषा कहते हैं,
झूठे वादे, प्रलोभनों की
बातों में अब नहीं आना है,
भारत मां को हमें बचाना है,
कांग्रेस को फिर से हराना है ||

दशकों तक तुमने राज किया
न विकास किया, न काम किया,
भृष्टाचार में लिप्त रहे
बस आराम किया, आराम किया,
जन जनता की एक पार्टी को
एक घर की पार्टी बना दिया,
जो तुम सा बोले वही ठीक
विपरीत को बंदी बना दिया,
और कहते हो कि इस देश में
न्याय बस कांग्रेस करती है,
और अन्याय से किस तरह
पहचत्तर का आपातकाल लगा दिया,
भर भर के तुमने घाव दिए
इस राष्ट्र को अब नहीं सहना है,
स्वयं को हमें बचाना है,
कांग्रेस को फिर से हराना है ||

घोटालों की बात चले
तो जिव्ह्या ही थक जाती है,
बोफोर्स, कोल्, टूजी, हेराल्ड
कहने में शर्म आ जाती है,
गाँधी, पटेल की पार्टी में
ये कैसे नेता आते गए,
जिस थाली में खाते गए
उसी में छेद बनाते गए,
कोई हिम्मत न कर पाया
ऐसे लोगो को फांसी दे,
कुछ न हो तो कम से कम
पार्टी से विदा करा ही दे,
पर ना तिलक, ना बोस ही
अब इस पार्टी को संभाले हैं,
संसद की गरिमा लजाते
कुछ नेता पार्टी चलाते हैं,
ऐसे किसी नेता को अपना
प्रतिनिधि नहीं बनाना है,
लोकतंत्र को हमें बचाना है
कांग्रेस को फिर से हराना है ||

इस पार्टी के नेताओं से
कुछ प्रश्न में करना चाहता हूँ,
क्यों चुन लूँ मैं कांग्रेस को,
ये निर्णय करना चाहता हूँ,
क्या किया उन नेताओं का
जो घोटाले करते गए,
क्या किया उन निर्लज्जों का
जो राष्ट्र सम्पदा हरते गए,
क्यों न रोका उन बोलों को
जो सेना का मनोबल गिराते हैं,
उन्हीं पे उंगली उठाते हैं
जो दुश्मन से हमें बचाते हैं,
राष्ट्र विरोधी तत्वों से
क्यों आप हाथ मिलते हैं,
सत्ता हासिल करने को
किस हद तक गिरते जाते हैं,
साफ़ छवि के एक नेता को
चोर चोर चिल्लाते हैं,
न्यायपालिका के निर्णयों को
मान क्यों नहीं पाते हैं,
कब तक सहारे झूठ के
राजनीति करते जाओगे,
कब सदाचार सतआचरन से
पार्टी को साफ़ बनाओगे,
इन प्रश्नों के उत्तर मिलना
सहज नहीं ये माना है,
राष्ट्रवाद को हमें बचाना है,
कांग्रेस को फिर से हराना है ||
कांग्रेस को फिर से हराना है ||

-ईशांश

मेरी तमन्नाएँ

मेरी तमन्नाएँ,
ये मुझसे कुछ कहती हैं,
एक सवाल पूछती हैं,
एक जवाब मांगती हैं|

कभी तेज़ किसी तूफान सी,
मेरे मन में उठती जाती हैं|
इस जग माया के जंगल में,
कभी कई दिनों खो जाती हैं|
कभी दर्द दे जाती हैं,
कभी मरहम बन जाती हैं,
एक सवाल पूछती हैं,
एक जवाब मांगती हैं|

मैं कुछ भी न कह पाऊं,
कभी चुप सा कर देती हैं|
मैं उन्हें ही जपता जाऊं,
कभी चुप ही नहीं होती हैं|
कभी खिलखिला देती हैं
कभी मायूस हो जाती हैं,
कभी पास नज़र आती हैं,
कभी दूर चली जाती हैं,
एक सवाल पूछती हैं,
एक जवाब मांगती हैं|

तुम सबके मन की करते हो,
न अपने दिल की सुनते हो|
सब ही तुमको क्यूँ प्यारे हैं,
एक हम ही क्यूँ पराये हैं?
एक ताना दे जाती हैं,
एक कटाक्ष कर जाती हैं,
एक सवाल पूछती हैं,
एक जवाब मांगती हैं|

और मैं ये समझाता हूँ,
अभी समय नहीं आया है|
मैं इनको बतलाता हूँ,
संदेहों का साया है|
इतना आसान ही होता,
जो चाहते वो कर जाते|
इतना आसान ही होता,
जो चाहते वो पा जाते|
मेरी आखें नम  जाती हैं,
फिर पलकें झुक जाती हैं|
एक सवाल पूछती हैं,
एक जवाब मांगती हैं|

मेरी तमन्नाएँ,
ये मुझसे कुछ कहती हैं,
एक सवाल पूछती हैं,
एक जवाब मांगती हैं|

वो मेरे ख्याल बांध नहीं सकते

वो शब्दों को बांध सकते हैं
मेरे ख्याल बांध नहीं सकते
वो कदम तो रोक सकते हैं
मेरे मन को बांध नहीं सकते |

बादल को किसने रोका है
बरसात को किसने रोका है
रौशनी को आना होता है
इस सुबह को किसने रोका है
वो दरवाज़े तो बंद कर सकते हैं
दिन और रात बांध नहीं सकते
वो शब्दों को बांध सकते हैं
मेरे ख्याल बांध नहीं सकते |

ये सूरज, चंदा, तारे सब
ये थे, ये हैं, ये सब होंगे,
ये कभी न मिटने पाएंगे
हम न होंगे पर ये होंगे
वो घडी को तोड़ सकते हैं
समय चक्र को बांध नहीं सकते|
वो शब्दों को बांध सकते हैं
मेरे ख्याल बांध नहीं सकते |

जैसे नदिया चंचल बहती है
जैसे कोयल बेसुध गाती है
जैसे बच्चे हँसते रोते हैं
बेफिकर से होके सोते हैं
वो नींदों को छीन सकते हैं
पर ख़्वाब बांध नहीं सकते
वो शब्दों को बांध सकते हैं
मेरे ख्याल बांध नहीं सकते |

आज़ादी सबको प्यारी है
फिर शब्दों को ही क्यों बांधें हम
मेरी कविता सबसे पूछे ये
पंछी के पंख क्यों काटें हम
वो कुछ देर सांसें रोक सकते हैं
पर धड़कनों को बांध नहीं सकते
वो शब्दों को बांध सकते हैं
मेरे ख्याल बांध नहीं सकते|
वो कदम तो रोक सकते हैं
मेरे मन को बांध नहीं सकते |

सपनों की पतंगें

ख्वाहिशों की डोर से
सपनों की पतंगें उड़ा लेता हूँ,
कभी हलके, कभी कसे
अपनी मेहनत के कन्ने बांध लेता हूँ ||

मेरे पास सपनों की
कई रंग बिरंगी पतंगें हैं
कुछ सस्ती कुछ महँगी
कुछ छोटी कुछ बड़ी पतंगें हैं
इस जहाँ में उनकी कोई दुकान नहीं
तो अपने ही मन से उन्हें खरीद लेता हूँ |
कभी हलके, कभी कसे
अपनी मेहनत के कन्ने बांध लेता हूँ ||

एक सपने की पतंग
कभी सुबह उडाता हूँ,
तो दूसरे सपने की पतंग
शाम को लहराता हूँ
रात नींद की बाँहों में
ये सारी पतंगें सहेज लेता हूँ |
कभी हलके, कभी कसे
अपनी मेहनत के कन्ने बांध लेता हूँ ||

वक़्त की ये हवा
जब धीमी सी बहती है,
मेरी कोई एक पतंग
कभी उड़ती कभी गिरती है
उम्मीद की थपकी से
उसे थोड़ा-थोड़ा बढ़ा लेता हूँ |
कभी हलके, कभी कसे
अपनी मेहनत के कन्ने बांध लेता हूँ ||

आकांक्षाओं के आकाश में
अनगिनत ऐसी पतंगें उड़ती होंगी
कुछ साथ-साथ बढ़ती
तो कुछ साथ-साथ कटती होंगीं
मेरी भी पतंग कहीं कट के गिर न जाये
कभी दाएं कभी बाएं
एक तेज़ खेंच से उसे बचा लेता हूँ |
कभी हलके, कभी कसे
अपनी मेहनत के कन्ने बांध लेता हूँ ||

ख्वाहिशों की डोर से
सपनों की पतंगें उड़ा लेता हूँ,
कभी हलके, कभी कसे
अपनी मेहनत के कन्ने बांध लेता हूँ ||

वो सितारों से सपने सजा गया

ज़मीं पे निगाह रख चलने वाला
आसमां से टकरा गया,
मिट्टी से कभी अपने ख़्वाब रंगने वाला,
सितारों से सपने सजा गया|

कभी एक रोटी उसकी चाह थी
कभी बहुत छोटी उसकी राह थी,
छोटे छोटे कदम बढ़ाते हुए
वो एक लम्बी छलांग लगा गया,
मिट्टी से कभी अपने ख़्वाब रंगने वाला,
सितारों से सपने सजा गया|

किसी से आँख मिलाने से जो डरता था
सब से अपना रस्ता बचा के जो चलता था,
धीरे धीरे अपनी आशाओं के सागर में
अपनी एक अलग कश्ती तैरा गया,
मिट्टी से कभी अपने ख़्वाब रंगने वाला,
सितारों से सपने सजा गया|

कभी कुछ लोग उसपे हँसते थे
भले बुरे ताने कसते थे
उनके ठहाकों को दिल से लगा
संघर्ष की अग्नि से वो खुद को चमका गया,
मिट्टी से कभी अपने ख़्वाब रंगने वाला,
सितारों से सपने सजा गया|

जीवन के कई पल उसने अकेले काटे थे
कुछ ही अफ़साने किसी के साथ बांटे थे
तन्हाई में खुद से बातें करते,
अपने ख्यालों में बुनी,
एक हसीन दास्ताँ वो सबको सुना गया,
मिट्टी से कभी अपने ख़्वाब रंगने वाला,
सितारों से सपने सजा गया|
ज़मीं पे निगाह रख चलने वाला
आसमां से टकरा गया||

“नई सुबह”

है सुबह नई
ये वक़्त नया
सुबह जगने का एहसास नया
क़िस्मत से मुझे मिले इस पल में
मेरे जीने का अंदाज़ नया|

जो बीता था वो पुराना था
था अपना और न बेगाना था
अच्छा था वो या फिर था बुरा
पल जैसा भी था सुहाना था
अब गाना है फिर गीत नया
संगीत नया और सुर भी नया|
क़िस्मत से मुझे मिले इस पल में
मेरे जीने का अंदाज़ नया||

कल की अब फिक्र करूँ क्यों मैं
कल की अब चाह भरूँ क्यों मैं
कल का हर पल अनजाना है
तो क्यों न ये पल जी लूँ मैं
इस पल में मेरा विश्वास नया
एक सोच नयी, जज़्बात नया|
क़िस्मत से मुझे मिले इस पल में
मेरे जीने का अंदाज़ नया|

एक नई दास्ताँ ज़रूरी है
ख़ुद की पहचान ज़रूरी है
एक जैसा अब तक जीता था
एक नई पहचान ज़रूरी है
अब करना है कोई काम नया
एक राह नई, एक मुकाम नया|
क़िस्मत से मुझे मिले इस पल में
मेरे जीने का अंदाज़ नया|

“संघर्ष”

जब साथ तुम्हारे ख़ुशी न हो
अधरों पे झूठी हंसी न हो
जब मार्ग तुम्हें कोई दिखे नहीं
संघर्ष विकल्प कोई बचे नहीं
तब, नस नस में बहता खून खून
रग रग में उठता ये जूनून
हर पल सहता, हर पल कहता
संघर्ष करो, संघर्ष करो||

जब रात दिन में भेद न हो
और प्रियजनों का मेल न हो
तपती गर्मी की छाया हो
न हाथ तुम्हारे माया हो
तब, सांसों का बढ़ता महावेग
आँखों में आता रक्त तेज़
हर पल सहता, हर पल कहता
संघर्ष करो, संघर्ष करो||

जब पथ में कांटे बिछे रहें
और दुःख के बादल घिरे रहें
जब प्यास तुम्हारी बुझे नहीं
एक बूँद सफलता मिले नहीं
तब, धड़कन का हर गति परिवर्तन
हर अंग में होता ये कम्पन
हर पल सहता, हर पल कहता
संघर्ष करो, संघर्ष करो||

“जीवन-उद्देश्य “

उस पथ पर चलना बेमानी है, जिसकी कोई मंज़िल नहीं|
वो जीवन जीना बेमानी है, जिसका कोई हासिल नहीं||

क्यों व्यर्थ बोझ बढ़ाना है, अपनी इस धरती मैया का|
बेहतर उठकर उद्धार करें, किसी भटके राही की खिवैया का||

क्यों जिए यहाँ कुछ पता नहीं, क्यों मरे यहाँ कुछ पता नहीं|
उद्देश्य-विहीन इस जीवन को हम जिए यहाँ क्यों पता नहीं||
उठकर मिलकर कुछ करें अभी, तो आंधी चले फिर हवा नहीं|
हर किसी को हर ख़ुशी मिले, कोई आंसू नहीं, कोई गिला नहीं||

राक्षसों से मुक्त कराने को, भगवन ने भी अवतार लिया|
सब दुष्टों का संहार किया, जन-जीवन का उद्धार किया||
उन्ही भगवन को बना पत्थर, मंदिरों में हमने पूजा है|
न सीख ली उनके जीवन से, न उनके संदेशों को जाना है||

तो सुनहरे कल को कल्पित करें कैसे, जब अर्थहीन सब काज है|
कैसे होगा रोशन भविष्य, जब अँधेरे में हमारा आज है||
क्या गीत सजायेंगे हम, आने वाली पीढ़ी के अधरों पर|
जब स्वार्थी हमारे संगीतों में,
न जन सेवा की धुन है, न देशभक्ति का साज है||

आओ मिलकर सब शपथ लें, जीवन स्वार्थ रहित बनाएंगे|
देश और जन सेवा को, अपना परम उद्देश्य बनाएंगे||
न एक पल खाली बैठेंगे, न एक पल व्यर्थ गवाएंगे|
बस जिएंगे जन सेवा के लिए, जन सेवा के लिए मर जायेंगे||

“कर्म-गाथा “

कर्म करता ही मैं जाऊं
कर्म की गाथा मैं गाउँ|
कर्म करते हुए सदैव
कर्म में ही मिल मैं जाऊं||

कर्म सत्य, कर्म सुन्दर, कर्म ही पुरुषार्थ है|
कर्म आदि, कर्म अंत, कर्म ही परमार्थ है||

कर्म से ही तुम हो मैं हूँ, कर्म से संसार है|
कर्म ही जीवन-रत्न, कर्म जीवन सार है||

कर्म श्रेष्ठ, कर्म ज्येष्ठ, कर्म ही बलवान है|
कर्म करने से डरे जो, वो नहीं इंसान है||

कर्म भक्ति, कर्म शक्ति, कर्म ही भगवान है|
कर्म गीता, कर्म बाइबिल, कर्म ही कुरान है||

कर्म से ही हर दिशा है, कर्म से ही हर डगर|
कर्म ही है देश मेरा, कर्म ही मेरा नगर||

हर पल कर्म करता ही जाये, मनुष्य वो महान है|
विधाता की है ये वाणी सुनो, कर्म ही प्रधान है||
विधाता की ये वाणी सुनो, कर्म ही प्रधान है||

“मैं थका हूँ लेकिन मरा नहीं”

मैं रुका नहीं
मैं झुका नहीं
आशा का दीप अभी बुझा नहीं
जब तक है साँस लडुंगा मैं
मैं थका हूँ लेकिन मरा नहीं

तुमने मुझको अभी बांधा है
कर्ज़ों के बोझ से लादा है
सपनों के पंख लगा कर मैं
पंछी बन कर उड़ जाऊंगा
जीवन भर जो बांधे मुझको
पिंजरा कोई ऐसा बना नहीं
जब तक है साँस लडुंगा मैं
मैं थका हूँ लेकिन मरा नहीं

हैं तुमने कुछ उपकार किये
ऋण सभी के मैंने चुका दिए
फिर भी तुमने नहीं छोड़ा है
मंज़िल का रस्ता मोड़ा है
मंज़िल मैं पा ही जाऊंगा
है अब वो मुझसे दूर नहीं
जब तक है साँस लडुंगा मैं
मैं थका हूँ लेकिन मरा नहीं

जो चाहा वो मिल जायेगा
मुरझा ये पुष्प खिल जायेगा
काँटों के इस वन जीवन मैं
परमार्थ मुझे मिल जायेगा
कोशिशें की तुमने डिगाने की
कर्मपथ से मैं कभी डिगा नहीं
जब तक है साँस लडुंगा मैं
मैं थका हूँ लेकिन मरा नहीं
मैं रुका नहीं
मैं झुका नहीं
आशा का दीप अभी बुझा नहीं