Tag Archives: manish varshney hindi poems

यादों की डगर..

कोई और राह तो है नहीं
जो हमको कहीं मिलाती है..
बस यादों की एक डगर है
जो तुझे मुझ तक,
और मुझे तुझ तक ले के जाती है..

इस डगर के एक सिरे पे
मैं कब से चल रहा हूँ,
तू उधर से आती होगी
तेरी राह मैं तक रहा हूँ..
कोई और सहारा है नहीं
कि मुझे तसल्ली आती है..
बस यादों की एक डगर है
जो तुझे मुझ तक,
और मुझे तुझ तक ले के जाती है..

कोई पत्ता कहीं गिरता है
तेरी पायल सा बजता है,
बेचैन मैं हो जाता हूँ
तुझे कहीं नहीं पाता हूँ..
फिर राह वही चलता हूँ
कि आस वहीँ से आती है..
बस यादों की एक डगर है
जो तुझे मुझ तक,
और मुझे तुझ तक ले के जाती है..

मालूम है तेरी आदत
तू देर हमेशा करती थी,
और मेरी वही शिकायत, घर से
जल्दी क्यों न निकलती थी..
इस डगर पे किसने रोका है
क्यूँ अब तक नहीं तू आती है..
बस यादों की एक डगर है
जो तुझे मुझ तक,
और मुझे तुझ तक ले के जाती है..

तेरा साया नज़र आता है
दिल कमल सा खिल जाता है..
ये कदम तेज़ हो जाते हैं
जब तेरा आँचल लहराता है..
अब हम-तुम मिलने वाले हैं
कोयल भी गुनगुन जाती है..
बस यादों की एक डगर है
जो तुझे मुझ तक,
और मुझे तुझ तक ले के जाती है..

मध्धम सी बहती पवन में
अब तेरी ही खुशबु आती है..
धड़कनें ये बढ़ने लगती हैं
जब पास मेरे तू आती है..
अब दूर कहीं तू न जाये
आरज़ू ये मेरी सुनाती है..
बस यादों की एक डगर है
जो तुझे मुझ तक,
और मुझे तुझ तक ले के जाती है..

कोई और राह तो है नहीं
जो हमको कहीं मिलाती है..
बस यादों की एक डगर है
जो तुझे मुझ तक,
और मुझे तुझ तक ले जाती है..

वो दरिया है बह जायेगा..

करे कोशिशें कोई हज़ार
हो अड़चनें चाहे अपार
रोके न जो रुक पायेगा
बांधे न जो बंध पायेगा
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

बादल को बरस जाना ही है
बिजली को चमक जाना ही है
हो शेर भले पिंजरे में बंद
पर उसको गरज आना ही है..
आदत में उसकी है नहीं
वो चुप तो न रह पायेगा..
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

शब् जाती है शब् जाएगी
सहर आती है वो आएगी
हो घाम कितनी तेज़ ही
पर शाम न रुक पायेगी
बन्दे में वो ताक़त कहाँ
कुदरत को बदल जो पायेगा..
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

बाहों में न आये गगन
रूकती कहाँ है ये पवन
बंध के जहाँ में जो रहे
ना मुदित है ना है वो मगन
जो पानी है जो रेत है
मुट्ठी से फिसल ही जायेगा..
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

कदम ना उसको रुकने दें
जिसके मन में आशाएं हों
स्वप्न ना उसको सोने दें
यदि आतुर अभिलाषाएं हों
नदिया सा जिसको बहना है
वो ताल तो ना बन पायेगा..
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

रोके न जो रुक पायेगा
बांधे न जो बंध पायेगा
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

-मंजुसुत इशांश

बड़ा मुश्किल है..

दिल जिसे देखना चाहे
आइना वो मुझे दिखाता नहीं..
औरों की नज़रों में अपना
निशां पाना बड़ा मुश्किल है..
खुद से खुद को यहाँ,
ढूंढ पाना बड़ा मुश्किल है ||

अपने से लगने वाले कुछ
रस्ते बीच में छूट गए..
सपनों की चादर ओढ़ी
मंज़िलें भी मेरी बिछड़ गईं..
नए रस्तों पे नई मंज़िलें अब,
तलाश पाना बड़ा मुश्किल है..
खुद से खुद को यहाँ,
ढूंढ पाना बड़ा मुश्किल है ||

समय की कड़ी सीमाओं में
हम बंधके पलते बढे हुए..
फिर कुछ देर तलक आज़ाद रहे
और फिर पिंजरे में बंद हुए..
बंधनों की सब दीवारों को
तोड़ जाना बड़ा मुश्किल है..
खुद से खुद को यहाँ,
ढूंढ पाना बड़ा मुश्किल है ||

वो सवाल तो मुझसे करते हैं
पर जवाब न मेरे सुन पाते..
सब बात तो मुझसे करते हैं
पर बात न मेरी सुन पाते..
अब किसी की कुछ सुनना और अपनी
कुछ कह पाना बड़ा मुश्किल है..
खुद से खुद को यहाँ,
ढूंढ पाना बड़ा मुश्किल है ||

एक शहर था मेरा..
एक ज़मीं थी अपनी..
कुछ लोग मेरे थे..
एक ज़िन्दगी थी अपनी..
इस जन्नत में यहाँ
वैसे तो हर रंगत है..
पर दिल खिल जाये ऐसी
हंसी मिल पाना बड़ा मुश्किल है..
खुद से खुद को यहाँ,
ढूंढ पाना बड़ा मुश्किल है ||

औरों की नज़रों में अपना
निशां पाना बड़ा मुश्किल है..
खुद से खुद को यहाँ,
ढूंढ पाना बड़ा मुश्किल है ||

मेरे मत की अधिकारिणी..

बीते का आंकलन करूँ
निष्कर्ष यही मैं पाता हूँ,
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

एक समय तो बस अख़बारों में
घोटाले घूस ही पढता था,
कोई हिंसा यहाँ, कोई दंगा वहां
पढ़ पढ़कर मन ये दुखता था..
कहीं आग लगी विस्फोट हुआ
कहीं जमकर नरसंहार हुआ,
पर दिल्ली बैठी सरकारों को
न दर्द उठा न रोष हुआ..
उन सरकारों के लिए अपरिमित
घृणा से मैं भर जाता हूँ|
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

कैसे भूलूँ मुंबई हमले
भोले लोगों को मारा था,
आतंक के कुछ आकाओं ने
इस देश को तब ललकारा था..
पर आराम पसंद नेताओं ने
घर बैठ तमाशा देखा था,
नपुंसक जन प्रतिनिधिओं की
लाचारी को हमने देखा था..
सशक्त भारत की इस भूमि पर
आज गर्व कर पाता हूँ |
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

पुलवामा उरी के हमलों का
हमने कैसे प्रतिशोध लिया,
आतंक के घर में कदम रखा
उसे ख़त्म किया और जीत लिया..
इस विश्व को हमने जता दिया
हम झुकते नहीं अब लड़ते हैं,
घर परिवार समाज से बढ़कर
राष्ट्र प्रधान समझते हैं..
हर जन की इस भावना में मैं
ईश्वर की शक्ति पाता हूँ|
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

अपमान सेना का और संसद का
हरदम ही होते देखा था,
अपने घर अपनी ज़मीन से
लोगों को बिछड़ते देखा था..
हिन्द संस्कृति का जन आस्था का
उन सबने कैसे दमन किया,
राम कृष्ण अपमानित होते
न्यायालयों में देखा था..
देश हित राष्ट्र गौरव को अब
दांव पे नहीं लगता हूँ|
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

भ्रष्टाचार से त्रस्त राष्ट्र को
निर्मल नवीन सरकार मिली,
मिलावट न कोई गठबंधन की
जन बहुमत की स्वच्छ सरकार मिली..
दीप जला आस्था संस्कृति का
विकास का फिर संकल्प हुआ,
विश्व ने देखा हमने जाना
संकल्प कैसे वो सिद्ध हुआ..
सेवा समर्पित ये सरकार
गंवाना नहीं मैं चाहता हूँ|
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

नोटबंदी ने काले धन के
सर्प का फन ही कुचल दिया,
एक राष्ट्र एक टैक्स नीति ने
कर व्यवस्था को फिर बदल दिया..
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद्
का हमने नेतृत्व किया
भारत भी अब विश्व शक्ति है
हर मन को ये विश्वास दिया..
दृढ़ होते भारत को देख
बार बार हर्षाता हूँ|
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

सड़कों पे सोते लोगों को
छतें मिलीं आवास मिले,
घर घर में बिजली पहुंची तब
अंधकार में रोशन दीप जले..
स्वास्थ्य बीमा से फसल बीमा से
जन जन में नव विश्वास जगा,
खातों को आधार से जोड़ा
तब बिचौलियों का नाश हुआ..
भारत के प्रगति पथ पर अब
बाधा कोई न चाहता हूँ|
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

राइफलें मिलीं राफेल मिला
अटल टनल निर्माण हुआ,
बुलेट प्रूफ जैकेट मिलने से
सैन्य बल विस्तार हुआ..
कश्मीर हमारा पूर्ण हमारा
विश्व को यही जताना था,
कब से था नासूर बना वो
तीन सौ सत्तर हटाना था..
पडोसी फिर नापाक जले
मैं फूला नहीं समाता हूँ|
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

आयुष्मान उज्ज्वला उड़ान
या किसान सम्मान निधि,
हर नीति ने खुशहाली की
भारत वर्ष में नींव रखी..
स्वउद्योग लगा भारत में
स्वरोजगार फिर सृजित करें,
स्वावलम्बी अब बनें युवा
हर गांव नगर में ललक जगी..
आत्मनिर्भर भारत का सपना
साकार मैं जीना चाहता हूँ|
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

चीन में जन्मे कोरोना ने
विश्व को पूरे हिला दिया,
अपने घर वैक्सीन बनाकर
हमने परचम लहरा दिया..
नव भारत का है ये नवयुग
खोया सम्मान दिलाएगा,
सुदृढ़ समृद्ध और शक्ति से
अब भारत बढ़ता जायेगा..
नहीं रुके ये नहीं झुके
मैं गीत बस यही गाता हूँ |
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

यात्रा विकास की शुरू हुई हमें
दूर तलक अभी जाना है,
पुनः विश्व गुरु बनने से पहले
ठहर कहीं न जाना है..
हैं अनगिनत प्रतिनिधि यहाँ
और अनगिनत संगठन यहाँ,
पर सबको साथ ले बढे चले
राजसंघ है ऐसा और कहाँ..
शुद्ध हो रही राजनीति में
कलंक न कोई अब चाहता हूँ|
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

बीते का आंकलन करूँ
निष्कर्ष यही मैं पाता हूँ,
मेरे मत की एक अधिकारिणी
बस बीजेपी ही को पाता हूँ ||

– मंजुसुत ईशांश

तपती वो जेठ दोपहरी..

कभी छांव में बैठे मुझको
एक सिहरन सी दे जाती है,
तपती वो जेठ दोपहरी
मेरा मन, आज भी जला जाती है|

मैं विनय ही करता जाता
अनंत अग्नि के सागर से,
अनुरोध मैं करता जाता
उस भानु रवि भास्कर से..
हे प्रभो तपन कम करते
कुछ भला मेरा हो जाता,
कुछ दूर बचा है मेरा घर
मैं पहुँच कुशल से जाता..
पर लगता है प्रार्थना मेरी
न पहुँच तुम तक पाती है,
तपती वो जेठ दोपहरी
मेरा मन, आज भी जला जाती है|

मेरा तन झुलसे, ये मन झुलसे
पर दया कहीं से न मिलती,
तर करने को ये सूखा कंठ
दो बूंद नीर की न मिलती..
आशा भर नेत्रों में अपने
मैं गगन को तकता जाता था,
जल मेघ कहीं से आ जाएँ
पर कृपा वरुण की न मिलती..
प्यास तो मेरी न मिटती
पर घाम प्रचंड हो जाती है,
तपती वो जेठ दोपहरी
मेरा मन, आज भी जला जाती है|

प्राणों में शक्ति समेट-समेट
पग पे पग रखता जाता था,
लो दूरी अभी समाप्त हुई
मन में ये रटता जाता था..
फिर एक झलक घर की दिखती
मन पुलकित सा हो जाता था,
वो सफर नहीं संग्राम हो एक
मैं संग्राम जीतकर आता था..
जाते प्राणों में जैसे मेरी
प्राणशक्ति लौट के आती है,
तपती वो जेठ दोपहरी
मेरा मन, आज भी जला जाती है|

वो कांच का एक दरवाज़ा
जैसे स्वर्ग का मुझको द्वार दिखे,
मात पिता के रूप में जैसे
ईश्वर का मुझे दरबार दिखे..
शीतल जल का वो एक घड़ा
अमृत का कलश बन जाता है,
सांसों की डूबती नैया को
वापस जीवन तट ले आता है..
ये छांव मेरे जलते मन पर
कुछ वैसा ही लेप लगाती है,
तपती वो जेठ दोपहरी
मेरा मन, आज भी जला जाती है|

इस छांव में बैठे मुझको
एक सिहरन सी दे जाती है,
तपती वो जेठ दोपहरी
मेरा मन, आज भी जला जाती है|

-ईशांश

मेरी कलम बुलाती है..

स्याही के नीले रंग से
काग़ज़ को रंगने को,
शब्दों के मोती की माला
फिर एक बार पिरोने को,
आशा की नज़रों से
मुझे तकती जाती है,,
मेरी कलम बुलाती है|
आवाज़ लगाती है||

कल्पना के सिंधु से
कुछ मोती चुन लाना,
फिर मेरी स्याही के रंग से
कागज़ पे सजा जाना,
उन्हें लिखते सजते देखने की
आरज़ु सुनती है,,
मेरी कलम बुलाती है|
आवाज़ लगाती है||

मैं तो शब्दों की प्यासी
वो मेरे शहज़ादे हैं,
मैं सागर में सिमटी मदिरा
और वो मेरे प्याले हैं,
इस सागर से प्याले भरकर
कोई ग्रन्थ नया लिख दो,
लेखों की वह साम्राज्ञी
निवेदिता बन जाती है,,
मेरी कलम बुलाती है|
आवाज़ लगाती है||

शब्द चाँद सितारे बनकर
कागज़ पे चमक जायेंगे,
उन्हें अनंत समय पढ़ पढ़कर
दनुज देव भी खिल जायेंगे,
हर शब्द नया हो अर्थ नया
कोई छंद नया लिख दो,
कर कमलों में अक्षर पुष्प लिए
अर्पिता बन जाती है,,
मेरी कलम बुलाती है|
आवाज़ लगाती है||

जैसे ही हाथ में लूँ
वो आनंदित हो जाये,
चिंतन के होठों से छू लूँ
तो शरमा सी वो जाये,
जो काग़ज़ पे रख दूँ
कोयल सी चहकती है,
और जो पहला शब्द लिखूं
वो पगली मदमाती है,
शब्दों के आँचल में छुप के
रोती कभी हंसाती है,,
मेरी कलम बुलाती है|
आवाज़ लगाती है||

अब रुको नहीं बस चले चलो
विश्राम बिना तुम चले चलो,
अभिलाषाएं पागल मन की
बस गढ़े चलो, तुम लिखे चलो,,
है कसम तुम्हें रुक न जाना
मुझे तृप्त किये बिन न जाना,
उड़ेल दो मेरी स्याही सब
रुक न जाना, तुम न जाना,,
मेरे नीले रक्त का हर क़तरा
जब इस कागज़ पे रंग जाये,
तभी तुम्हें आराम मिले
तभी तुम्हें कुछ चैन आये,,
कुछ लिख जाने का ऐसा उन्माद
मुझमें वो जगाती है,,
मेरी कलम बुलाती है|
आवाज़ लगाती है||

आशा की नज़रों से
मुझे तकती जाती है,,
मेरी कलम बुलाती है|
आवाज़ लगाती है||

-ईशांश

अनिश्चितता ही निश्चित है..

अनकहे से इसके शब्दों में,
अदृश्य छुपे से चित्रों में,
अविरत जीवन जल धारा की,
हर बूँद के सारे अंशों में,
बस एक सार ही चिह्नित है|
कि अनिश्चितता ही निश्चित है,
एक अनिश्चितता ही निश्चित है ||

समय सतत निरंतर एक प्रवाह,
अविराम चले ही जाता है,
हम सोचें कुछ हो जाये कुछ,
पटकथा नई लिख जाता है,
अचरजों भरी इस गंगा में,
बस विस्मय का जल ही संचित है |
कि अनिश्चितता ही निश्चित है,
एक अनिश्चितता ही निश्चित है ||

जीवन पुस्तक के पृष्ठों में,
अनगिनत अनोखे खंड लिखे,
पर क्रूर काल न जाने कब,
अंतिम जीवन अध्याय लिखे,
सब कुछ अर्पण को विवश है वो,
जो काल कृपा से वंचित है|
कि अनिश्चितता ही निश्चित है,
एक अनिश्चितता ही निश्चित है ||

कामना के इस महासागर की,
गहराई का कोई अंत नहीं,
जितना उतरो उतना कम है,
तृष्णा का कोई अंत नहीं,
जीवन की अद्भुत माया से,
हर श्वांस यहाँ अचंभित है|
कि अनिश्चितता ही निश्चित है,
एक अनिश्चितता ही निश्चित है ||

मानव जीवन एक पत्ते सा,
पकना तय है, गिरना तय है,
साथी पत्तों संग एक बंधन,
जुड़ना तय है, छुटना तय है,
पकना – गिरना, जुड़ना – छुटना
आदि आरम्भ से निर्मित है|
कि अनिश्चितता ही निश्चित है,
एक अनिश्चितता ही निश्चित है ||

जो मिथ्या जीवन अभिमान करे,
वो परम सत्य ये भुलाता है,
कुछ भी न रहता दुनिया में,
सब चला यहाँ से जाता है,
कुछ भी न निश्चित इस जग में,
बस “परिवर्तन” ही निश्चित है|
कि अनिश्चितता ही निश्चित है,
एक अनिश्चितता ही निश्चित है ||

-ईशांश

अविरत- लगातार, कभी न रुकने वाला
विस्मय- आश्चर्य, अचरज
अचंभित- हैरान, आश्चर्य चकित

पूर्णिमा का चाँद

चांदनी से आज नहा के
श्रृंगार स्वर्ग से करा के,
अम्बर में फिर निकला है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

स्वर्ग आलोक को तज कर
अब काम रति विचरे हैं,
कहें क्या आनंद मिला है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

कभी सिंधु को चमकाता
श्वेत रंग धरा पे छिडकाता,
सबका मन ललचाता है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

क्या मधुर समय आया है
हर कोई हर्षाया है,
क्या समां और निखरा है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

कभी बदली से नज़र चुराता
कभी पीछे उसके पड़ जाता,
अठखेलियां करता है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

सब सितारे जलते बुझते
ये चांदनी हमें मिल जाती,
उससे हर कोई जलता है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

चित्तशांत सी कोई कोयल
उसे देख चहक जाती है,
स्वर गीत नया निकला है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

सब सोये फूल जगे हैं
उमंगों में बिखरे है,
बग़िया का आँचल फैला है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

हर पत्ता लहराता है
हर डाली लहराती है,
चहुँ ओर उन्माद भरा है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

चंदा का हाथ पकड़कर
ये रात्रि कैसे घूमे
आज प्रेम से प्रेम मिला है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

श्वेत रात्रि आस लगाए
ओ चंदा तुम रुक जाना,
फिर मन मेरा मचला है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

वो चंदा बोले सुनो निशि
प्रेम क्षण में न तुम शोक करो,
ये तो मिलन वेला है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

मैं तो फिर से आऊंगा
फिर तुम से मिल जाऊंगा
थोड़ा विरहन अच्छा है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

मंजुसुत ईशांश

ज़माना तो फिर ज़माना है

ज़माना तो फिर ज़माना है
इसे बन के क्या दिखाना है..

ख़ाली बोतलों में ये जाम ढूंढे
भरे पैमानों को इसे छलकाना है..
ज़माना तो फिर ज़माना है
इसे बन के क्या दिखाना है..

वक़्त काटने को इसे बातें चाहिए
बातों को इसकी दिल से क्या लगाना है..
ज़माना तो फिर ज़माना है
इसे बन के क्या दिखाना है..

सब बेगाने ही इसने अपने माने
अपनों को इसने कहाँ अपना माना है..
ज़माना तो फिर ज़माना है
इसे बन के क्या दिखाना है..

अपना दर्द अपनी ख़ुशी बस यही सच्चे हैं..
औरों का ग़म उनकी हंसी तो सब बहाना है..
ज़माना तो फिर ज़माना है
इसे बन के क्या दिखाना है..

जिसे न देखा उसे खुदा माना
जिसे देखा उसे न पहचाना है..
ज़माना तो फिर ज़माना है
इसे बन के क्या दिखाना है..

-मंजुसुत ईशांश

कोई क्या जाने..कि क्या बीती..

कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

न दिल ये मेरा कुछ
कभी कह पाया
दिल की सब बातें
दिल में बीती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

वो दिल जो लगाते
तो सुन पाते
दिल की हर धड़कन
क्या क्या कहती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

इंतज़ार तो उनका
मैंने रोज़ किया
कभी आ जाती
कभी वो न आती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

मुस्कुरा के वो बस
आगे बढ़ जाते
मुझे छीन के मुझसे
वो ले जाती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

उस एक हंसी से
मैं जी जाता
उस एक हंसी पे
जान निकल जाती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

मेरा हर एक दिन
इंतज़ार में डूबा
और याद में उनकी
हर रैना बीती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

उन्हें पता न होगा
कोई कितना चाहे
उन्हें मांग मांग कर
हर दुआ बीती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

पर साथ ग़ैर के
वो चले गए
राह तकती मेरी
घड़ियाँ बीती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

ये इनाम इश्क़ का
महबूब न मिलता
इस ख़ज़ाने से बस
यादें मिलती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

इससे अच्छा तो
वो न मिलते
ये दर्द न होता
ये तड़प न मिलती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

उन आँखों को मैं
कैसे भूलूँ
जिन आँखों में सारी
दुनिया बसती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

अब याद मुझे जब
वो आ जाते हैं
आँखें पहले सी
गीली होती
कोई क्या जाने
कैसे बीती..
कोई क्या जाने
कि क्या बीती..

-मंजुसुत ईशांश

नैना ना मिले..

तोसे कभी भी कुछ
कहे नहीं हैं,
मेरे नैना तेरे नैनों से
कभी मिले नहीं हैं..

कितनी दफा ये नज़रें
तेरी नज़रों से मिलने गईं,
हर दफा बस तेरा
चेहरा ही छूकर आईं,
दिल की प्यास बढ़ाते हैं
कभी बुझाते नहीं हैं..
मेरे नैना तेरे नैनों से
कभी मिले नहीं हैं..

अजब ही इनकी हालत है,
तेरे चेहरे की
न जाने इनको क्या आदत है,
तू सामने हो न हो,
तेरा चेहरा एक पल कभी
भुलाते नहीं हैं..
मेरे नैना तेरे नैनों से
कभी मिले नहीं हैं..

तेरी कोई ख़ता नहीं
कि गुस्ताख़ तो यहीं है,
जब कभी तेरी नज़रें
मेरी तरफ बढ़ें,
ये फिर जाते हैं,
ये झुक जाते हैं,
खुद ही दिल की बात तुझे
कभी बताते नहीं हैं..
मेरे नैना तेरे नैनों से
कभी मिले नहीं हैं..

ये पागल कैसे डरते हैं,
कि आखों से आँखें
जो मिल गईं,
दिल की बात दिल तक
जो पहुँच गई,
खुदा जाने क्या होगा,
खुदा जाने क्या न होगा,
इस कश्मकश में
मेरे दिल की बात आगे
कभी बढ़ाते नहीं हैं..
मेरे नैना तेरे नैनों से
कभी मिले नहीं हैं..

तोसे कभी भी कुछ
कहे नहीं हैं,
मेरे नैना तेरे नैनों से
कभी मिले नहीं हैं..

-मंजुसुत इशांश

कहीं एक खाली सड़क है..

खुले आसमान के नीचे
एक सुनसान सूनी सहमी
कुछ कदमों की प्यासी सड़क है..
कहीं एक खाली सड़क है..

वो ना जाने
कहाँ से आती है,
वो ना जाने
कहाँ को जाती है,
ना नाम है कोई,
ना निशान है कोई,
बस अकेली गुमनाम सड़क है..
कहीं एक खाली सड़क है..

किनारे के पेड़ों के पत्ते
जो कभी सजाते थे उसे,
वो हरी भरी डालें
जो कभी संवारती थीं उसे,
वो पत्ते खो गए,
वो डालें टूट गईं,
सूखे पेड़ों के बीच
एक अकेली उदास सड़क है..
कहीं एक खाली सड़क है..

डालों पे कभी
कुछ पंछी आ जाते थे,
खेलते, लड़ते, उड़ते, उछलते
कुछ मीठे गीत सुना जाते थे,
अब एक पंछी न दिखे,
एक साया न मिले,
बीते वक़्त को याद करती
एक मुरझाई ख़ामोश सड़क है..
कहीं एक खाली सड़क है..

जो बरसात हो
तो आँखें भिगा लेती है,
जब सूरज जले तो
दिल अपना जला लेती है,
बिजली चमके अगर
तो डर जाती है,
चाँदनीं बरसे अगर तो
मुस्कुरा जाती है,
सब सहती, चुप रहती,
एक बेआवाज़ अनजान सड़क है..
कहीं एक खाली सड़क है..

जाने कब से पलकें खुली हैं,
थकी निगाहें जाने कब से बिछी हैं,
कि इक राही तो आ जाये,
कोई एक साथी तो आ जाये,
कभी न ख़त्म होते
इंतज़ार में डूबी सड़क है..
कहीं एक खाली सड़क है..

जाने किस मंज़िल से मिली है,
जाने किस साहिल से जुड़ी है,
कोई राही कभी चले,
तो सड़क से फिर राह बने,
यही तो मंज़िल, रस्ते
और सड़क में फरक है..
कहीं एक खाली सड़क है..
एक सुनसान सूनी सहमी
कुछ कदमों की प्यासी सड़क है..
कहीं एक खाली सड़क है..

शायद फिर मिले न मिले..

आ ज़िन्दगी से
थोड़ा वक़्त मांग ले..
शायद फिर रहे न रहे
शायद फिर मिले न मिले..

तू माने न माने
तेरा दिल मुझसे जुड़ा है,
तू माने न माने
मेरा रंग तुझपे चढ़ा है,
बस एक बार ही सही
कब से दबी,
वो हसरत मांग ले..
शायद फिर रहे न रहे
शायद फिर मिले न मिले..

वो वक़्त याद कर
जब मैं तेरे साथ था,
वो वक़्त याद कर
जब मैं तेरे पास था,
बस एक बार ही सही
सुनहरा मेरा संग,
तू फिर से मांग ले..
शायद फिर रहे न रहे
शायद फिर मिले न मिले..

इस ज़िन्दगी ने अपने
साथ के वो पल,
तुझे कम दिए
मुझे कम दिए,
बस एक बार ही सही
वो सारे खोये पल
तू फिर से मांग ले..
शायद फिर रहे न रहे
शायद फिर मिले न मिले..

तेरा दामन भी
खुशियों से खाली है,
यहाँ मेरे होंठ भी
एक हंसी को तरसते हैं,
बस एक बार ही सही
तेरी मेरी खुशियां
तू फिर से मांग ले..
शायद फिर रहे न रहे
शायद फिर मिले न मिले..

तेरे पास मैं नहीं
तो तेरे पास क्या है?
मेरे पास तू नहीं
तो मेरे पास क्या है?
बस एक बार ही सही
मैं तुझे मांग लूँ
तू फिर मुझे मांग ले..
शायद फिर रहे न रहे
शायद फिर मिले न मिले..

ये दुनिया तुझे कभी
मेरा साथ न देगी,
ये दुनिया तुझे कभी
मेरा एहसास न देगी,
बस एक बार ही सही
पर मुझे मांग कर
तू अपनी दुनिया मांग ले..
शायद फिर रहे न रहे
शायद फिर मिले न मिले..

जहाँ मैं नहीं हूँ
वो धड़कनें अधूरी है,
जहाँ तू नहीं है,
वो साँसें अधूरी हैं,
बस एक बार ही सही
इस ज़िन्दगी से अपनी
ज़िन्दगी मांग ले..
शायद फिर रहे न रहे
शायद फिर मिले न मिले..

-मंजुसुत इशांश

मैं तेरी राह तकता हूँ

तुझे याद करता हूँ
तेरी राह तकता हूँ,
तू पास नहीं है जो
तेरे पास होने की
फरियाद करता हूँ |
तुझसे अलग होकर
दिल टूटता सा है,
दिल के उन टुकड़ों को
मैं जोड़ जोड़ कर,
तुझे दिल में रख लेता हूँ|
फिर तुझे याद करता हूँ,
फिर तेरी राह तकता हूँ ||

तुझसे अलग होकर
मेरे इस सीने में,
एक दर्द सा उठता है
वो दर्द निकलता है,
एक आह सी भरता है
फिर मैं तड़पता हूँ,
तू पास नहीं है जो
तेरे पास होने की
फरियाद करता हूँ |
फिर तुझे याद करता हूँ,
फिर तेरी राह तकता हूँ ||

तू मेरे लिए क्या है
मैं बता नहीं सकता,
तेरे साथ की कीमत
कभी जता नहीं सकता,
जानता हूँ बस इतना,
तू प्रार्थना के जैसी है,
एक दुआ के जैसी है,
फिर दुआ मैं करता हूँ,
तू पास नहीं है जो
तेरे पास होने की
फरियाद करता हूँ |
फिर तुझे याद करता हूँ,
फिर तेरी राह तकता हूँ ||

मैं तुझसे कहता हूँ
कुछ बातें करनी हैं,
में तुझसे कहता हूँ
कभी एक रात जगनी है,
पर तेरे साथ में होकर
मदहोश मैं जीता हूँ,
तू पास नहीं है जो
तेरे पास होने की
फरियाद करता हूँ |
फिर तुझे याद करता हूँ,
फिर तेरी राह तकता हूँ ||

मुझे कभी समझ न आया
क्यों उसने मुझे बनाया?
पर जब से तू मुझे मिली है
जीने की राह मिली है,
भूले से इन सांसों का
अफ़सोस नहीं करता हूँ,
तू पास नहीं है जो
तेरे पास होने की
फरियाद करता हूँ |
फिर तुझे याद करता हूँ,
फिर तेरी राह तकता हूँ ||
मैं तेरी राह तकता हूँ ||

ये ज़िन्दगी जाने कैसे जी रही है?

कभी हवा सी बह रही है,
कभी मूरत सी उदास बैठी है,
बेबस वो कभी हंसती है,
बेबस वो कभी रोती है,
आंधी से मजबूर किसी बादल सी
कभी ठहरी तो कभी उड़ रही है|
ये ज़िन्दगी जाने कैसे जी रही है
ये ज़िन्दगी जाने कैसे जी रही है||

खुद की परवाह किये बिना,
बेपरवाह सी चल रही है,
मेरा तो अब कोई बस नहीं,
तो बेबस ही चल रही है,
कोई आड़ मिले तो छुप जाये,
सब की आँखों से बच जाये,
बस यही इंतज़ार कर रही है|
ये ज़िन्दगी जाने कैसे जी रही है||

एक हाथ में एक सपना लिए,
एक हाथ में एक उम्मीद लिए,
सर पे आशाओं का घड़ा रखे,
बेबस किसी खिलाडी सी,
मन में गिरने का डर लिए,
पतले धागे पे चल रही है|
ये ज़िन्दगी जाने कैसे जी रही है||

धड़कन की एक आवाज़ पर
जो भागी भागी आती थी
मासूम से मेरे गालों पर
प्यार से अपना हाथ फेर जाती थी,
अब चीखूँ भी तो सुने नहीं
वो बेबस किसी पागल सी
जाने किस डगर खो रही है|
ये ज़िन्दगी जाने कैसे जी रही है||

मुझे याद आता है वो गर्मी में,
मेरा पसीना पोंछ जाती थी,
जाड़े की कड़कड़ ठंडी में
मेरे पास अलाव जला जाती थी
आँखों में कभी जो आंसूं हों
मेरा हाथ पकड़ लेती थी,
बेबात कभी में हँसता था,
मेरे संग हंसी पकड़ लेती थी,
मुझे छोड़ मेरा साथ छोड़,
अभी वो जाने कहाँ फिर रही है
ये ज़िन्दगी जाने कैसे जी रही है|

मुझे याद आता है,
वो कभी मेरे पीछे भागती थी,
उसकी पायल की आवाज़ें सुनकर,
कभी मैं उसके पीछे भागता था|
मेरी ज़िन्दगी मेरे साथ
और मैं अपनी ज़िन्दगी के साथ चलता था|
अब मैं किसी और रस्ते,
ज़िन्दगी किसी और राह चल रही है|
जाने ये ज़िन्दगी कैसे जी रही है||

आज कई दिनों बाद,
फिर मुझे उसका ख्याल आया है,
उसके पास मेरे लिए वक़्त न सही,
फिर भी मैंने उसे पास बुलाया है,
आएगी तो कहूंगा मुझे भूले नहीं,
और पूछूंगा कि मेरे बिना
वो कहाँ और कैसे जी रही है|
ये ज़िन्दगी जाने कैसे जी रही है,
मेरी ज़िन्दगी जाने कैसे जी रही है||

ख़ुशी के फूल

ख़ुशी के फूल,
मैंने चुने तेरे लिए,
दर्द के कांटे सभी,
अपने पास रख लिए|
मुस्कुराहटों की मिठास,
बचाई तेरे लिए,
और कड़वाहटों के समंदर,
मैंने खुद ही पी लिए ||

बेबसी में,
खामोशियों की चीखें सुनी,
घुटन के धुंए में,
सांसें मिलीं|
पर सुकून के रास्ते,
मैंने बनाये तेरे लिए,
और बेचैनियों की सड़कों पर,
कदम अपने रख दिए ||

रौशनी जो धोखा है,
तो अँधेरे में सच्चाई है,
अगर दिन काम का न रहा,
तो फिर रात मेरे काम आई है|
पर सुबहों की हर ताज़गी,
मैंने छुपाई तेरे लिए,
और शामों की थकावटों के,
सब पल अकेले जी लिए ||

इस ज़िन्दगी में,
लाखों ही शब्द मैंने पढ़े हैं,
इस ज़िन्दगी में,
लाखों ही शब्द मैंने सुने हैं|
कुछ ही अनमोल शब्द ढूंढ पाया,
जो मैंने कहे तेरे लिए,
और जो न कह सका,
वो एहसास मैंने कागज़ पे लिख दिए ||

मेरे ग़म को कभी नज़र लगे,
तो होठों पे एक हंसी आती है,
मेरे डर को थोड़ा डर लगे,
तो सुकून की कोई लहर आती है|
तेरे होठों पे मासूम हंसी रहे,
ऐसे जतन मैंने हज़ार किये,
और अपने डर, अपने ग़म,
मैंने झूठी हंसी से दबा दिए ||

जो तू न हो, तो
ये जहाँ रहने के काबिल नहीं,
जो तू न हो, तो
ज़िन्दगी में ज़िन्दगी जैसी कोई बात नहीं|
तू रहे साथ हमेशा,
तू रहे पास हमेशा,
रब को सज़दे मैंने हर बार किये|
मेरे दामन में हंसी की कोई एक कली,
चाहे रहे न रहे,
पर ख़ुशी के फूल सभी,
बस तेरे लिए मांग लिए ||

“माँ”, आज फिर तू याद आई है (Written by my soulmate, my wife – Isha)

एक प्यारी सी मुस्कान होठों पे आई है,
आज फिर तू याद आई है|
ये ठंडी हवा, संग प्यार तेरा लाई है,
आज फिर तू याद आई है||

तेरे आँचल तले बिताया,
वो वक़्त कितना प्यारा था|
भोले से बचपन को बस,
तेरी ममता का सहारा था|
इस झूठी दुनिया में,
बस तुझमें ही सच्चाई है|
आज फिर तू याद आई है||

मुझे यूँ गले से लगा लेती थी,
जैसे मेरे सारे दुःख,
खुद में समा लेती थी|
तेरे डांटने में भी प्यार छिपा था,
ये बात आज समझ आई है|
आज फिर तू याद आई है||

मेरे रूठ जाने पर,
तेरा मुझे मनाना,
मेरी पसंद का खाना बनाकर मुझे खिलाना,
तेरे हाथों से बने खाने का स्वाद,
न अब तक ये ज़ुबाँ भूल पाई है|
आज फिर तू याद आई है||

बीमार मेरे पड़ने पर,
तेरा खुद को भूल जाना|
सारे काम छोड़,
बस मेरा दिल बहलाना|
मेरी चिंता में न जाने,
कितनी रातें तू न सो पाई है|
आज फिर तू याद आई है||

उन सर्द रातों में,
तेरा बार बार जगना,
नंगे ही पैर,
मेरे कमरे की तरफ भागना,
ये सोच के, कि रज़ाई,
मैंने फिर फर्श पे गिराई है|
आज फिर तू याद आई है||

मेरी छोटी सी कामयाबी में,
खुश हो जाती थी|
मेरी बनाई साधारण सी,
तस्वीरें भी तुझे कितना भाती थीं|
मेरे लिए दुनिया सी लड़ने वाली,
मौत से न लड़ पाई है|
आज फिर तू याद आई है||
“माँ”, आज फिर तू याद आई है||

“ये दूरी एक तपस्या है”

ये विरह बड़ी समस्या है,
तेरी भी और मेरी भी|
ये दूरी एक तपस्या है,
तेरी भी और मेरी भी||

जो किया क्या वो सही किया?
जो जिया क्या वो सही जिया?
तू प्रश्न हमेशा करती है,
मैं उत्तर न दे पाता हूँ,
कि होनी एक अटल अवस्था है,
तेरी भी और मेरी भी|
ये दूरी एक तपस्या है,
तेरी भी और मेरी भी||

मैं कटे फूल सा मुरझाया,
तू बिन बारिश धरती सी है|
मैं सांसों का एक चलता साया,
तू रुकी हुई नदिया सी है|
अनसुलझी सी एक व्यथा है,
तेरी भी और मेरी भी|
ये दूरी एक तपस्या है,
तेरी भी और मेरी भी||

दो जिस्म भले हम दिखते हों,
आत्मा तो अपनी एक है|
दिल दो भले धड़कते हों,
धड़कन तो उनकी एक है|
फिर एक जैसी ही तो तमन्ना है,
तेरी भी और मेरी भी|
ये दूरी एक तपस्या है,
तेरी भी और मेरी भी||

तुझ संग मैं बाग़ सा खिलता हूँ,
और तू कली सी महकती है|
मैं प्रेम गगन में उड़ता हूँ,
जहाँ तू चिड़िया सी चहकती है|
बेसब्र मिलन की इच्छा है,
तेरी भी और मेरी भी|
ये दूरी एक तपस्या है,
तेरी भी और मेरी भी||

पर तुझको याद दिला दूँ मैं,
सब दिन एक जैसे न होंगे|
तुझको ये बात बता दूँ मैं,
हम दूर हमेशा न होंगे|
कि हर पल में यही दुआ है,
तेरी भी और मेरी भी|
ये दूरी एक तपस्या है,
तेरी भी और मेरी भी||

मैं ऐसे तो न जलता

मेरी तन्हाई की उमस को,
तेरे प्यार की कुछ बूंदें ही मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता|
मेरे सूने दिल को,
तेरी धड़कनों की आवाज़ मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता||

तेज़ धूप में सूखा पत्ता जल जाता है,
शमां की गर्मी से मोम पिघल जाता है,
जो तू पास होती..
मैं वो पत्ता, वो मोम तो न बनता,
तेरे प्यार की कुछ बूंदें ही मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता|

जहाँ लाल दिखे सिर्फ वहीँ तो आग नहीं होती,
मेरी ख़ामोशी तो बिन रंग जला करती है,
जो तू पास होती..
मैं इस तरह से खामोश तो न रहता,
तेरे प्यार की कुछ बूंदें ही मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता|

ये जीवन ऐसी माचिस की डिबिया है,
ये दिन रात उस डिबिया की तीलियाँ हैं,
नित जलती तो हैं पर बुझती नहीं,
जो तू पास होती..
मेरा कोई पल ऐसी तीली न बनता,
तेरे प्यार की कुछ बूंदें ही मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता|

जब बादलों से छन के धूप निकलती है,
साये से ढंकी ये धरती फिर चमकती है,
जो तू पास होती..
मैं इस तड़प के साये में तो न बसता,
तेरे प्यार की कुछ बूंदें ही मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता|

बिन बरसात मैंने इस धरती को जलते देखा है,
बिन आंसुओं के उसे रोते देखा है,
जो तू पास होती..
मैं बारिश की वैसी आस तो न बनता,
तेरे प्यार की कुछ बूंदें ही मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता|

किसी बात में ये दिल नहीं लगता,
तुझसे लगा है बस तुझे चाहता है,
जो तू पास होती..
मैं अपने दिल के आगे यूँ बेबस तो न रहता,
तेरे प्यार की कुछ बूंदें ही मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता|

बरसों से इन सांसो में एक तेज़ गति है,
जाने कब से एक हलचल सी मन में बसी है,
जो तू पास होती..
मैं हमेशा ऐसे बैचेन तो न रहता,
तेरे प्यार की कुछ बूंदें ही मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता|

जब भी तेरी याद आ जाती है,
सिर्फ दिल नहीं, रूह नहीं,
जिस्म के हर रेशे से टकराती है,
जो तू पास होती..
मैं हर घडी ये चोटें तो न सहता,
तेरे प्यार की कुछ बूंदें ही मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता|

लगता नहीं कि ज़िन्दगी अब ऐसे चल पायेगी,
या मैं जी पाउँगा या बस जलन रह जाएगी,
कि जो तू पास होती..
मैं ऐसे जल जल के तो न जीता,
तेरे प्यार की कुछ बूंदें ही मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता|
मेरे सूने दिल को,
तेरी धड़कनों की आवाज़ मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता||

मेरी तमन्नाएँ

मेरी तमन्नाएँ,
ये मुझसे कुछ कहती हैं,
एक सवाल पूछती हैं,
एक जवाब मांगती हैं|

कभी तेज़ किसी तूफान सी,
मेरे मन में उठती जाती हैं|
इस जग माया के जंगल में,
कभी कई दिनों खो जाती हैं|
कभी दर्द दे जाती हैं,
कभी मरहम बन जाती हैं,
एक सवाल पूछती हैं,
एक जवाब मांगती हैं|

मैं कुछ भी न कह पाऊं,
कभी चुप सा कर देती हैं|
मैं उन्हें ही जपता जाऊं,
कभी चुप ही नहीं होती हैं|
कभी खिलखिला देती हैं
कभी मायूस हो जाती हैं,
कभी पास नज़र आती हैं,
कभी दूर चली जाती हैं,
एक सवाल पूछती हैं,
एक जवाब मांगती हैं|

तुम सबके मन की करते हो,
न अपने दिल की सुनते हो|
सब ही तुमको क्यूँ प्यारे हैं,
एक हम ही क्यूँ पराये हैं?
एक ताना दे जाती हैं,
एक कटाक्ष कर जाती हैं,
एक सवाल पूछती हैं,
एक जवाब मांगती हैं|

और मैं ये समझाता हूँ,
अभी समय नहीं आया है|
मैं इनको बतलाता हूँ,
संदेहों का साया है|
इतना आसान ही होता,
जो चाहते वो कर जाते|
इतना आसान ही होता,
जो चाहते वो पा जाते|
मेरी आखें नम  जाती हैं,
फिर पलकें झुक जाती हैं|
एक सवाल पूछती हैं,
एक जवाब मांगती हैं|

मेरी तमन्नाएँ,
ये मुझसे कुछ कहती हैं,
एक सवाल पूछती हैं,
एक जवाब मांगती हैं|