Tag Archives: motivational poem

हिंदुत्व क्या है?

यदि समझ सको तो समझो
हिंदुत्व शब्द क्या है?
यदि हो विवेक सोचो..
हिंदुत्व मंत्र क्या है?

हिंदुत्व आस्था है,
हिंदुत्व उपासना है..
तन मन में गंगा सी बहे,
हिंदुत्व वह चेतना है..

हिंदुत्व ही है पूजा,
हिंदुत्व प्रार्थना है..
हम कोटि जन मनों की,
हिंदुत्व वंदना है..

हिंदुत्व शुद्ध नीति है,
हिंदुत्व में ही प्रीति है..
हिंदुत्व में शक्ति निहित,
हिंदुत्व में ही कीर्ति है..

हिंदुत्व धर्म ज्ञान है,
हिंदुत्व में ही त्राण है..
श्वांसों में वेग से चले,
हिंदुत्व में ही प्राण हैं..

हिंदुत्व में है जीवन,
हिंदुत्व में है दर्पण..
हिंदुत्व में ही सत्य है,
हिंदुत्व में है अर्पण..

शास्त्रों में जो समाया है,
वेदों ने जिसको गाया है..
उस वैदिक सनातन धर्म को,
हिंदुत्व जगत में लाया है..

हिंदुत्व में दया है,
हिंदुत्व शांति भी..
हिंदुत्व यज्ञ भी है,
हिंदुत्व क्रांति भी..

मर्यादा है ये राम की,
है कृष्ण का सुदर्शन..
गांडीव ये अर्जुन का,
है भीष्म का अटल प्रण..

हिंदुत्व में ही शिव हैं,
हिंदुत्व में हैं शम्भू..
हिंदुत्व परम ब्रह्म है,
हिंदुत्व में हैं विष्णु..

हिंदुत्व में ही यश है,
हिंदुत्व में सम्मान है..
शील है हिंदुत्व में,
हिंदुत्व में अभिमान है..

हिंदुत्व जन्मभूमि है,
हिंदुत्व कर्मभूमि है..
सबको सहेज ले जो,
हिंदुत्व मातृभूमि है..

हिंदुत्व राष्ट्रशक्ति है,
हिंदुत्व लोकशक्ति है..
हिंदुत्व में ही है विजय,
हिंदुत्व राष्ट्रभक्ति है..

हिंदुत्व ही गगन में,
हिंदुत्व ही धरा पे..
हिंदुत्व हर क्षितिज में,
हिंदुत्व हर दिशा में..

हिंदुत्व अपना पथ है,
हिंदुत्व अपना रथ..
हिंदुत्व ही एक मार्ग है,
हिंदुत्व ही एक लक्ष्य..

हिंदुत्व धरमपंथ है,
हिंदुत्व आदि अंत है..
कुछ और हो न हो कभी,
हिंदुत्व बस अनंत है..
हिंदुत्व ही अनंत है ||

वो दरिया है बह जायेगा..

करे कोशिशें कोई हज़ार
हो अड़चनें चाहे अपार
रोके न जो रुक पायेगा
बांधे न जो बंध पायेगा
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

बादल को बरस जाना ही है
बिजली को चमक जाना ही है
हो शेर भले पिंजरे में बंद
पर उसको गरज आना ही है..
आदत में उसकी है नहीं
वो चुप तो न रह पायेगा..
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

शब् जाती है शब् जाएगी
सहर आती है वो आएगी
हो घाम कितनी तेज़ ही
पर शाम न रुक पायेगी
बन्दे में वो ताक़त कहाँ
कुदरत को बदल जो पायेगा..
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

बाहों में न आये गगन
रूकती कहाँ है ये पवन
बंध के जहाँ में जो रहे
ना मुदित है ना है वो मगन
जो पानी है जो रेत है
मुट्ठी से फिसल ही जायेगा..
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

कदम ना उसको रुकने दें
जिसके मन में आशाएं हों
स्वप्न ना उसको सोने दें
यदि आतुर अभिलाषाएं हों
नदिया सा जिसको बहना है
वो ताल तो ना बन पायेगा..
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

रोके न जो रुक पायेगा
बांधे न जो बंध पायेगा
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..

-मंजुसुत इशांश

“जीवन-उद्देश्य “

उस पथ पर चलना बेमानी है, जिसकी कोई मंज़िल नहीं|
वो जीवन जीना बेमानी है, जिसका कोई हासिल नहीं||

क्यों व्यर्थ बोझ बढ़ाना है, अपनी इस धरती मैया का|
बेहतर उठकर उद्धार करें, किसी भटके राही की खिवैया का||

क्यों जिए यहाँ कुछ पता नहीं, क्यों मरे यहाँ कुछ पता नहीं|
उद्देश्य-विहीन इस जीवन को हम जिए यहाँ क्यों पता नहीं||
उठकर मिलकर कुछ करें अभी, तो आंधी चले फिर हवा नहीं|
हर किसी को हर ख़ुशी मिले, कोई आंसू नहीं, कोई गिला नहीं||

राक्षसों से मुक्त कराने को, भगवन ने भी अवतार लिया|
सब दुष्टों का संहार किया, जन-जीवन का उद्धार किया||
उन्ही भगवन को बना पत्थर, मंदिरों में हमने पूजा है|
न सीख ली उनके जीवन से, न उनके संदेशों को जाना है||

तो सुनहरे कल को कल्पित करें कैसे, जब अर्थहीन सब काज है|
कैसे होगा रोशन भविष्य, जब अँधेरे में हमारा आज है||
क्या गीत सजायेंगे हम, आने वाली पीढ़ी के अधरों पर|
जब स्वार्थी हमारे संगीतों में,
न जन सेवा की धुन है, न देशभक्ति का साज है||

आओ मिलकर सब शपथ लें, जीवन स्वार्थ रहित बनाएंगे|
देश और जन सेवा को, अपना परम उद्देश्य बनाएंगे||
न एक पल खाली बैठेंगे, न एक पल व्यर्थ गवाएंगे|
बस जिएंगे जन सेवा के लिए, जन सेवा के लिए मर जायेंगे||

“कर्म-गाथा “

कर्म करता ही मैं जाऊं
कर्म की गाथा मैं गाउँ|
कर्म करते हुए सदैव
कर्म में ही मिल मैं जाऊं||

कर्म सत्य, कर्म सुन्दर, कर्म ही पुरुषार्थ है|
कर्म आदि, कर्म अंत, कर्म ही परमार्थ है||

कर्म से ही तुम हो मैं हूँ, कर्म से संसार है|
कर्म ही जीवन-रत्न, कर्म जीवन सार है||

कर्म श्रेष्ठ, कर्म ज्येष्ठ, कर्म ही बलवान है|
कर्म करने से डरे जो, वो नहीं इंसान है||

कर्म भक्ति, कर्म शक्ति, कर्म ही भगवान है|
कर्म गीता, कर्म बाइबिल, कर्म ही कुरान है||

कर्म से ही हर दिशा है, कर्म से ही हर डगर|
कर्म ही है देश मेरा, कर्म ही मेरा नगर||

हर पल कर्म करता ही जाये, मनुष्य वो महान है|
विधाता की है ये वाणी सुनो, कर्म ही प्रधान है||
विधाता की ये वाणी सुनो, कर्म ही प्रधान है||