Tag Archives: manish varshney hindi poems

मैं ऐसे तो न जलता

मेरी तन्हाई की उमस को,
तेरे प्यार की कुछ बूंदें ही मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता|
मेरे सूने दिल को,
तेरी धड़कनों की आवाज़ मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता||

तेज़ धूप में सूखा पत्ता जल जाता है,
शमां की गर्मी से मोम पिघल जाता है,
जो तू पास होती..
मैं वो पत्ता, वो मोम तो न बनता,
तेरे प्यार की कुछ बूंदें ही मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता|

जहाँ लाल दिखे सिर्फ वहीँ तो आग नहीं होती,
मेरी ख़ामोशी तो बिन रंग जला करती है,
जो तू पास होती..
मैं इस तरह से खामोश तो न रहता,
तेरे प्यार की कुछ बूंदें ही मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता|

ये जीवन ऐसी माचिस की डिबिया है,
ये दिन रात उस डिबिया की तीलियाँ हैं,
नित जलती तो हैं पर बुझती नहीं,
जो तू पास होती..
मेरा कोई पल ऐसी तीली न बनता,
तेरे प्यार की कुछ बूंदें ही मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता|

जब बादलों से छन के धूप निकलती है,
साये से ढंकी ये धरती फिर चमकती है,
जो तू पास होती..
मैं इस तड़प के साये में तो न बसता,
तेरे प्यार की कुछ बूंदें ही मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता|

बिन बरसात मैंने इस धरती को जलते देखा है,
बिन आंसुओं के उसे रोते देखा है,
जो तू पास होती..
मैं बारिश की वैसी आस तो न बनता,
तेरे प्यार की कुछ बूंदें ही मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता|

किसी बात में ये दिल नहीं लगता,
तुझसे लगा है बस तुझे चाहता है,
जो तू पास होती..
मैं अपने दिल के आगे यूँ बेबस तो न रहता,
तेरे प्यार की कुछ बूंदें ही मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता|

बरसों से इन सांसो में एक तेज़ गति है,
जाने कब से एक हलचल सी मन में बसी है,
जो तू पास होती..
मैं हमेशा ऐसे बैचेन तो न रहता,
तेरे प्यार की कुछ बूंदें ही मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता|

जब भी तेरी याद आ जाती है,
सिर्फ दिल नहीं, रूह नहीं,
जिस्म के हर रेशे से टकराती है,
जो तू पास होती..
मैं हर घडी ये चोटें तो न सहता,
तेरे प्यार की कुछ बूंदें ही मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता|

लगता नहीं कि ज़िन्दगी अब ऐसे चल पायेगी,
या मैं जी पाउँगा या बस जलन रह जाएगी,
कि जो तू पास होती..
मैं ऐसे जल जल के तो न जीता,
तेरे प्यार की कुछ बूंदें ही मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता|
मेरे सूने दिल को,
तेरी धड़कनों की आवाज़ मिल जाती..
मैं विरह से ऐसे तो न जलता||

मेरी तमन्नाएँ

मेरी तमन्नाएँ,
ये मुझसे कुछ कहती हैं,
एक सवाल पूछती हैं,
एक जवाब मांगती हैं|

कभी तेज़ किसी तूफान सी,
मेरे मन में उठती जाती हैं|
इस जग माया के जंगल में,
कभी कई दिनों खो जाती हैं|
कभी दर्द दे जाती हैं,
कभी मरहम बन जाती हैं,
एक सवाल पूछती हैं,
एक जवाब मांगती हैं|

मैं कुछ भी न कह पाऊं,
कभी चुप सा कर देती हैं|
मैं उन्हें ही जपता जाऊं,
कभी चुप ही नहीं होती हैं|
कभी खिलखिला देती हैं
कभी मायूस हो जाती हैं,
कभी पास नज़र आती हैं,
कभी दूर चली जाती हैं,
एक सवाल पूछती हैं,
एक जवाब मांगती हैं|

तुम सबके मन की करते हो,
न अपने दिल की सुनते हो|
सब ही तुमको क्यूँ प्यारे हैं,
एक हम ही क्यूँ पराये हैं?
एक ताना दे जाती हैं,
एक कटाक्ष कर जाती हैं,
एक सवाल पूछती हैं,
एक जवाब मांगती हैं|

और मैं ये समझाता हूँ,
अभी समय नहीं आया है|
मैं इनको बतलाता हूँ,
संदेहों का साया है|
इतना आसान ही होता,
जो चाहते वो कर जाते|
इतना आसान ही होता,
जो चाहते वो पा जाते|
मेरी आखें नम  जाती हैं,
फिर पलकें झुक जाती हैं|
एक सवाल पूछती हैं,
एक जवाब मांगती हैं|

मेरी तमन्नाएँ,
ये मुझसे कुछ कहती हैं,
एक सवाल पूछती हैं,
एक जवाब मांगती हैं|

तेरी राह पे मैं चल दूँ

पलकों को बंद करके
तेरी तस्वीरों को याद करके,
बेख्याल सा चल दूँ
तेरी राह पे मैं चल दूँ ||

इन आखों से जो दिखती है
एक बेरंग सी दुनिया है,
“कागज़ों” के पीछे चलती
बड़ी बेढंग सी दुनिया है,
तेरी आँखों को याद करके
रौशनी से मैं मिल लूँ
बस बेख्याल सा चल दूँ
तेरी राह पे मैं चल दूँ ||

यहाँ हवा ठहरी सी है
दीवारों में जकड़ी सी है,
छाँव तो मुझे कहीं दिखी नहीं
बस धूप ही बिखरी सी है,
तेरी ज़ुल्फ़ों को याद करके
ठंडी छाँव से मन भर लूँ
बेख्याल सा चल दूँ
तेरी राह पे मैं चल दूँ ||

तेरे महके से आँगन में
पतझर में भी फूल खिलते हैं,
किरने भी और दमकती हैं
बादल भी खूब बरसते हैं,
तेरे आँचल को याद करके
उसे छूने को फिर तरसूं
बस बेख्याल सा चल दूँ
तेरी राह पे मैं चल दूँ ||

कभी एक शोर सा सुनता हूँ
कभी ख़ामोशी में बहता हूँ,
पागल एक परिंदे सा
बस उड़ता न ठहरता हूँ,
तेरी आवाज़ याद करके
एक राहत सी मैं सुन लूँ
बस बेख्याल सा चल दूँ
तेरी राह पे मैं चल दूँ ||

कितनी ही राहें जाती हैं
कुछ सीधी कुछ मुड़ जाती हैं,
कब से मैं ढूंढू राह तेरी
जो बस तुझ तक लेके जाती है,
खुली पलकों से जो दिखी नहीं
बंद नज़रों से दिख जाती है
वो अकेली राह ही मैं चुन लूँ
बस बेख्याल सा चल दूँ
तेरी राह पे मैं चल दूँ ||

कुछ इस तरह तुझसे इश्क़ हुआ था मुझे

कुछ इस तरह तुझसे इश्क़ हुआ था मुझे
तेरी नज़रों में फिरदौस दिखा था मुझे

आफ़ताब को जब भी एकटक देखता था
बस तेरा ही ख्याल आता था मुझे

इस जहाँ में मेरे लिए कुछ भी नया न था
तुझे मिलकर एक नया जहाँ मिल गया था मुझे

हूरों की वैसे तो यहाँ कोई कमी नहीं
पर तेरे हुस्न ने ही ज़िंदा किया था मुझे

इबादत से जैसे रूह महक उठती है
तेरी खुशबू ने वैसे महकाया था मुझे

तेरी सादगी का इस जहाँ में तो कोई जवाब नहीं
कि रूह तलक जिसने छू दिया था मुझे

तुझे सोचते, वक़्त, न जाने कब कट जाता था
हर लम्बा सफर भी छोटा लगता था मुझे

मेरे दोस्तों ने कई महफिलें सजाई थीं
तेरे बिना हर समां अधूरा लगा था मुझे

चाहे ख्वाब चाहे हक़ीक़त से चला आता हो
पर हर लम्हा तेरी ही याद दिलाता था मुझे

कभी मस्ती कभी उदासी में डूबा देता था
तेरी याद का हर लम्हा कभी हंसाता कभी रुला देता था मुझे

वैसे तो ये दुनिया बहुत बड़ी है
तेरे इश्क़ का हर एहसास बस तुझमें ही समेट देता था मुझे

अपने काम में मशगूल होने में मेरा कोई नाम न था
तेरी याद में मशगूल होने ने कुछ तो बदनाम किया था मुझे

तुझे मिल के में सारी नफरतों को भुला था
कुछ अपनों ने तेरे इश्क़ से जल के नफरत से देखा था मुझे

जाने कितने सवाल मेरे जेहन में उलझे से थे
तुझे देख के खुद के होने का जवाब मिल गया था मुझे

आवारगी में कभी ये अरमान कभी वो अरमान जगाता था
तुझे मिल के एक बस तेरा अरमान हुआ था मुझे

कोई मंदिर में आरती सुने कोई मस्जिद में सुने अज़ान
तेरे इश्क़ में खोके वही सुकून मिलता था मुझे

तेरी खुशबू से सारा शहर ही महकता था
हर गली हर चौराहे ने न जाने कितना दौड़ाया था मुझे

ताउम्र कोई चीज़ काम की न लगी मुझको
तुझसे इश्क़ करना पहला काम का काम मिला था मुझे

सुनसान सड़क सी मैंने ये ज़िन्दगी गुज़ारी थी
तुझे मिल के कई महफिलों का मज़ा मिला था मुझे

चाँद छूने को न जाने कितने ही बेक़रार होते होंगे
तुझे पाने की बेक़रारी में ही क़रार मिलता था मुझे

मेरे पास कुछ न था जिसकी मैं कोई बात करूँ
तुझे इश्क़ करके पहली बार गुमान हुआ था मुझे

वैसे चाहत की बारिशें हर किसी को नहीं भिगातीं
मेरा नसीब था तेरे इश्क़ ने भिगोया था मुझे

इस जहाँ में कोई शराब ऐसी नशीली नहीं
तेरे इश्क़ में जैसा नशा हुआ था मुझे

सांस एक बार आती है एक बार जाती है
तेरे इश्क़ में तो हर दम ही आराम मिला था मुझे

दुनिया में कोई डर ऐसा नहीं जो मुझे हरा सके
पर तेरे बिछड़ने के डर ने कई बार हराया था मुझे

बिन सोचे समझे बोलने की यूँ तो मेरी आदत नहीं
न जाने क्यों बिन बात मेरे होठों ने पुकारा था तुझे

दुआएं कैसे करते है मुझे मालुम न था
आसमान को देख हर रोज़ मैंने माँगा था तुझे

जाने कैसे तू मुझसे मिलने को राज़ी हुई
शायद मेरी दुआओं के असर ने बुलाया था तुझे

खुदा की नेमतों पे वैसे हर किसी का हक़ है
तुझे इश्क़ करने का हक़ बस मिला था मुझे

खुद के लिए तो मैंने कोई सिफारिश न की थी
जाने कैसे तेरे इश्क़ से रब ने नवाज़ा था मुझे

पहली मुलाक़ात का जब तोहफा तू ले आई थी
मदहोशी के आलम ने घेरा था मुझे

तुझे कहने को जो बातें सोची थीं, मैं कह न सका
पर आँखों ही आँखों में तूने समझा था मुझे

तुझे इश्क़ करना ही एक काम मेरे पास था
दूसरे हर काम से मेरे दिल ने दूर भगाया था मुझे

तू हर वक़्त पास रहे दिल यही दुहाई देता था
मेरे दिल ने इस क़दर कम्बख्त बनाया था मुझे

दिन को तेरी राह तकना रात में घड़ियाँ गिनना
तेरे इश्क़ ने कुछ ऐसा पागल बनाया था मुझे

तुझे मिलना तुझे सोचना बस यही ज़िन्दगी थी मेरी
तेरे इश्क़ ने आशिकी में ऐसा सरताज बनाया था मुझे

अपने इश्क़ का वो दौर कुछ ऐसा चला था
जैसे इश्क़ करने को रब ने सिर्फ तुझे और सिर्फ बनाया था मुझे

तेरे छूने का एहसास अब तक मेरी रूह में ज़िंदा है
वो एक छुअन से तूने अपनाया था मुझे

दिवाली ईद तो लोग एक बार मानते है
तेरे इश्क़ ने जश्न मनाने को हर रोज़ बुलाया था मुझे

तू जब भी मिलने आती थी हज़ार खुशियाँ साथ ले आती थी
और हर बार तेरे जाने ने कितना तड़पाया था मुझे

तेरी बातें मुझे कितना बैचैन करती थीं
और बस तेरी आवाज़ से ही चैन आता था मुझे

तेरे इश्क़ में सब से पराया हो चला था
और तेरे इश्क़ में सबने ही ठुकराया था मुझे

तेरे सिवा मैंने कभी न कोई परवाह की
तेरे सिवा कभी न कुछ और याद आया था मुझे

मेरे तेरे इश्क़ के खुमार में झूमता ही रहा
जाने कब इस ज़माने की नज़र लग गई मुझे

तुझे मिलने आना था और तू मिलने न आई
अब कभी न मिलने आएगी ये न कहलाया था मुझे

तेरे इंतज़ार में कितने ही ही दिन में वहीँ खड़ा रहा
कितने ही दिन तू आएगी ये कहकर दिल ने बहलाया था मुझे

दिल रोज़ तसल्ली देता था
तू छोड़ मुझे न पायेगी ये दिल ने समझाया था मुझे

पैग़ाम मिला तू चली गई
कैसे मैं रहूँगा न एक बार मेरा ख्याल आया था तुझे

तेरे पास होने पे सब अच्छा लगता था
तेरे दूर जाने पे वक़्त ने भी क्या खूब रुलाया था मुझे

जिन भी जगहों पे तू मिली थी
तेरे जाने के बाद कितनी दफा सबने बुलाया था मुझे

तेरे साथ जीना चाहता था मैं तेरे साथ रहना चाहता था
जाने क्या खता हुई जो रब ने छीना था तुझे

तेरे बिन जीना मुश्किल था
तो मेरे दिल ने फिर न जीने दिया मुझे

तुझे इश्क़ करने से पहले मैं ज़िन्दगी में आज़ाद था
तुझे इश्क़ करके ज़िन्दगी ने आज़ाद किया था मुझे

आज जाने कैसे तू फिर यहाँ चली आई है
जहाँ पहली दफा रब ने तुझसे मिलवाया था मुझे

मैं कल यहीं था मैं अब भी यहीं हूँ
जहाँ मेरा नसीब फिर से ले आया है तुझे

काश तुझे रब ये बता दे कि मैं अब न रहा
पर तुझे इश्क़ न करूँ ये अब भी गंवारा नहीं मुझे
तुझे मैं इश्क़ न करूँ ये कभी भी गंवारा नहीं मुझे..

ईशांश

वो मेरे ख्याल बांध नहीं सकते

वो शब्दों को बांध सकते हैं
मेरे ख्याल बांध नहीं सकते
वो कदम तो रोक सकते हैं
मेरे मन को बांध नहीं सकते |

बादल को किसने रोका है
बरसात को किसने रोका है
रौशनी को आना होता है
इस सुबह को किसने रोका है
वो दरवाज़े तो बंद कर सकते हैं
दिन और रात बांध नहीं सकते
वो शब्दों को बांध सकते हैं
मेरे ख्याल बांध नहीं सकते |

ये सूरज, चंदा, तारे सब
ये थे, ये हैं, ये सब होंगे,
ये कभी न मिटने पाएंगे
हम न होंगे पर ये होंगे
वो घडी को तोड़ सकते हैं
समय चक्र को बांध नहीं सकते|
वो शब्दों को बांध सकते हैं
मेरे ख्याल बांध नहीं सकते |

जैसे नदिया चंचल बहती है
जैसे कोयल बेसुध गाती है
जैसे बच्चे हँसते रोते हैं
बेफिकर से होके सोते हैं
वो नींदों को छीन सकते हैं
पर ख़्वाब बांध नहीं सकते
वो शब्दों को बांध सकते हैं
मेरे ख्याल बांध नहीं सकते |

आज़ादी सबको प्यारी है
फिर शब्दों को ही क्यों बांधें हम
मेरी कविता सबसे पूछे ये
पंछी के पंख क्यों काटें हम
वो कुछ देर सांसें रोक सकते हैं
पर धड़कनों को बांध नहीं सकते
वो शब्दों को बांध सकते हैं
मेरे ख्याल बांध नहीं सकते|
वो कदम तो रोक सकते हैं
मेरे मन को बांध नहीं सकते |

सपनों की पतंगें

ख्वाहिशों की डोर से
सपनों की पतंगें उड़ा लेता हूँ,
कभी हलके, कभी कसे
अपनी मेहनत के कन्ने बांध लेता हूँ ||

मेरे पास सपनों की
कई रंग बिरंगी पतंगें हैं
कुछ सस्ती कुछ महँगी
कुछ छोटी कुछ बड़ी पतंगें हैं
इस जहाँ में उनकी कोई दुकान नहीं
तो अपने ही मन से उन्हें खरीद लेता हूँ |
कभी हलके, कभी कसे
अपनी मेहनत के कन्ने बांध लेता हूँ ||

एक सपने की पतंग
कभी सुबह उडाता हूँ,
तो दूसरे सपने की पतंग
शाम को लहराता हूँ
रात नींद की बाँहों में
ये सारी पतंगें सहेज लेता हूँ |
कभी हलके, कभी कसे
अपनी मेहनत के कन्ने बांध लेता हूँ ||

वक़्त की ये हवा
जब धीमी सी बहती है,
मेरी कोई एक पतंग
कभी उड़ती कभी गिरती है
उम्मीद की थपकी से
उसे थोड़ा-थोड़ा बढ़ा लेता हूँ |
कभी हलके, कभी कसे
अपनी मेहनत के कन्ने बांध लेता हूँ ||

आकांक्षाओं के आकाश में
अनगिनत ऐसी पतंगें उड़ती होंगी
कुछ साथ-साथ बढ़ती
तो कुछ साथ-साथ कटती होंगीं
मेरी भी पतंग कहीं कट के गिर न जाये
कभी दाएं कभी बाएं
एक तेज़ खेंच से उसे बचा लेता हूँ |
कभी हलके, कभी कसे
अपनी मेहनत के कन्ने बांध लेता हूँ ||

ख्वाहिशों की डोर से
सपनों की पतंगें उड़ा लेता हूँ,
कभी हलके, कभी कसे
अपनी मेहनत के कन्ने बांध लेता हूँ ||

“चल ख़्वाब में चाँद पे मिलते हैं”

चल ख़्वाब में चाँद पे मिलते हैं,
धरती पे कोई जगह नहीं,,
हमें देख यहाँ सब जलते हैं,
की हमने ऐसी खता नहीं ||

तू प्यार की चादर ले आना,
मैं दिल का बिछौना लाऊंगा,,
मुझे देख के तू शरमायेगी,
तुझे देख के मैं मुस्काउंगा,,
चल निंदिया की डोली में चलते हैं,
लगती उसमें कोई टिकट नहीं |
चल ख़्वाब में चाँद पे मिलते हैं,
धरती पे कोई जगह नहीं ||

फूलों की बगिया न मिले सही,
तारों का गुलदस्ता लाऊंगा,,
नदिया की धारा न बहे सही,
प्रेम रस से तुझे भिगाउंगा,,
चल मन के पंखों से उड़ते हैं,
हमें रोकेगी कोई डगर नहीं,,
चल ख़्वाब में चाँद पे मिलते हैं,
धरती पे कोई जगह नहीं ||

देखेगी न कोई और नज़र,
न होगी इस जग की कोई फ़िकर,,
बस हाथों में होगा हाथ तेरा,
और तेरी नज़र पे मेरी नज़र,,
संग कुछ पल सुकून से बैठेंगे,
वहां डरने की कोई वजह नहीं,,
चल ख़्वाब में चाँद पे मिलते हैं,
धरती पे कोई जगह नहीं ||

वहां तारों के मेले देखेंगे,
कुछ खेल बचपन के खेलेंगे,,
चखने को चाहे कुछ न हो,
पर प्यार से मन हम भर लेंगे,,
चल जल्दी हम तुम सो जाते हैं,
करते अब कुछ भी देर नहीं,
चल ख़्वाब में चाँद पे मिलते हैं,
धरती पे कोई जगह नहीं,,
हमें देख यहाँ सब जलते हैं,
की हमने ऐसी खता नहीं ||