Category Archives: Close To Heart

कहीं कुछ खाली सा है

आँखों से सब भरा सा दिखता है,
पर अंदर कहीं कुछ खाली सा है |
जीवन में भले कुछ कमीं नहीं,
फिर भी मन कहीं खोया सा है ||

ये रौशनी जो दिखती है,
वो कहीं अँधेरा तो नहीं,
जिस अँधेरे में जाने से डरता हूँ,
वहीँ कोई सवेरा तो नहीं,
जो कुछ मुझे साफ दिखता है,
लगता है वो कुछ धुंधलाया सा है |
जीवन में भले कुछ कमीं नहीं,
फिर भी मन कहीं खोया सा है ||

अभी तक जो मंजिलें मिली हैं,
वो बस कुछ शुरुआत तो नहीं,
अभी तक जो रास्ते मैं चला हूँ,
वो कोई भूलभुलैया तो नहीं,
जो भी मैंने अब तक हासिल किया,
लगे कि कुछ तो उसमें पराया सा है,
जीवन में भले कुछ कमीं नहीं,
फिर भी मन कहीं खोया सा है ||

सांसों की गिनतियाँ अब कम हो रही हैं,
ज़िन्दगी से चाहतें कुछ कम हो रही हैं,
अपने ही सवालों में कुछ उलझा हूँ ऐसे,
जैसे ज़िन्दगी एक भंवर हो रही है,
जो कुछ भी मैंने देखा या समझा,
लगता है जैसे सब झुठलाया सा है,
आँखों से सब भरा सा दिखता है,
पर अंदर कहीं कुछ खाली सा है |
जीवन में भले कुछ कमीं नहीं,
फिर भी मन कहीं खोया सा है ||

“चार बातें अपने मन से”

कहीं जब कोई न दिखे,
कभी जब कोई न मिले,
तो चार बातें इस मन से ही कर लेता हूँ मैं,
थोड़ा खुद को हंसाने को, कभी थोड़ा खुद को रुलाने को|

कभी ये मन मेरी समझ से परे है,
कभी सन्यासी तो कभी इच्छाओं से घिरे है,
एक पल शांत तो अगले पल ललचाता है,
पता नहीं कभी ये मन मुझसे क्या चाहता है,
जाने कैसे कैसे स्वांग रचाता है, मुझसे अपनी बातें मनवाने को,,
चार बातें इस मन से ही कर लेता हूँ मैं,
थोड़ा खुद को हंसाने को, कभी थोड़ा खुद को रुलाने को|

कभी इस मन के छोटे बड़े सपने होते हैं,
थोड़े से पूरे होते तो बहुत से अधूरे रहते हैं,
कभी ये मन छोटी बड़ी खुशियां ढूंढता है,
कुछ न मिले तो सपने देख कर ही खुश हो लेता है,
कब तक यूँ ही झूठे सपने दिखा के बहलाएगा मुझे,
कोई ज़रा आके पूछे इस दीवाने को,,
चार बातें इस मन से ही कर लेता हूँ मैं,
थोड़ा खुद को हंसाने को, कभी थोड़ा खुद को रुलाने को|

कभी ये मन कुछ ज्यादा मचल जाता है,
कल कुछ और चाहता था, आज कुछ और चाहता है,
कभी इसे सब अच्छा नज़र आता है,
तो कभी पल भर में सब बुरा हो जाता है,
जानी अनजानी गलतियां मुझसे करा के,
फिर छोड़ देता है मुझे आगे पछताने को,,
चार बातें इस मन से ही कर लेता हूँ मैं,
थोड़ा खुद को हंसाने को, कभी थोड़ा खुद को रुलाने को|

पर सच है,
ये मन ही जीवन में अलग तरह के रंग भरता है,
कभी अंदर कांटे सा चुभता, तो कभी फूल सा खिलता है,
कभी अपनों के मिलने पे बच्चों सा उछलता है,
तो कभी उनके बिछड़ने पे मायूस जा किसी कोने में छुपता है,
अच्छे बुरे के जाल में कभी जो फँस जाऊं मैं,
तो एक वही आता है कोई न कोई राह दिखाने को,
चार बातें इस मन से ही कर लेता हूँ मैं,
थोड़ा खुद को हंसाने को, कभी थोड़ा खुद को रुलाने को|

“चल ख़्वाब में चाँद पे मिलते हैं”

चल ख़्वाब में चाँद पे मिलते हैं,
धरती पे कोई जगह नहीं,,
हमें देख यहाँ सब जलते हैं,
की हमने ऐसी खता नहीं ||

तू प्यार की चादर ले आना,
मैं दिल का बिछौना लाऊंगा,,
मुझे देख के तू शरमायेगी,
तुझे देख के मैं मुस्काउंगा,,
चल निंदिया की डोली में चलते हैं,
लगती उसमें कोई टिकट नहीं |
चल ख़्वाब में चाँद पे मिलते हैं,
धरती पे कोई जगह नहीं ||

फूलों की बगिया न मिले सही,
तारों का गुलदस्ता लाऊंगा,,
नदिया की धारा न बहे सही,
प्रेम रस से तुझे भिगाउंगा,,
चल मन के पंखों से उड़ते हैं,
हमें रोकेगी कोई डगर नहीं,,
चल ख़्वाब में चाँद पे मिलते हैं,
धरती पे कोई जगह नहीं ||

देखेगी न कोई और नज़र,
न होगी इस जग की कोई फ़िकर,,
बस हाथों में होगा हाथ तेरा,
और तेरी नज़र पे मेरी नज़र,,
संग कुछ पल सुकून से बैठेंगे,
वहां डरने की कोई वजह नहीं,,
चल ख़्वाब में चाँद पे मिलते हैं,
धरती पे कोई जगह नहीं ||

वहां तारों के मेले देखेंगे,
कुछ खेल बचपन के खेलेंगे,,
चखने को चाहे कुछ न हो,
पर प्यार से मन हम भर लेंगे,,
चल जल्दी हम तुम सो जाते हैं,
करते अब कुछ भी देर नहीं,
चल ख़्वाब में चाँद पे मिलते हैं,
धरती पे कोई जगह नहीं,,
हमें देख यहाँ सब जलते हैं,
की हमने ऐसी खता नहीं ||

“हे विदित तुम्हारा स्वागत है”

नव जीवन हो तुम नव तरंग
नव वेला में हो नव उमंग
पुष्पों से सजे इन हृदयों में
आज तुम्हारा स्वागत है..
हे विदित तुम्हारा स्वागत है..

नव चक्षु में नव ज्योति है
कर कमलों में नव शक्ति है
तुम्हें देख चूम के हर दिशा
बस गीत तुम्हारे गाती है
आशीषों से नहलाते हैं
और फिर से हम दोहराते हैं
कि आज तुम्हारा स्वागत है..
हे विदित तुम्हारा स्वागत है..

नयनों में तुम बस जाते हो
जब प्यारा सा मुस्काते हो
बाँहों में तुम्हें झुलाएं जो
प्रिय रुदन से हमें रिझाते हो
जब ह्रदय से तुम्हें लगाते हैं..
आशीषों से नहलाते हैं
और फिर से हम दोहराते हैं
कि आज तुम्हारा स्वागत है..
हे विदित तुम्हारा स्वागत है..

शत वर्ष तुम्हारी आयु हो
हर ख़ुशी तुम्हारी साथी हो
सब लोग तुम्हारा गान करे
मान करें सम्मान करें
हे प्रभु के नव उपहार तुम्हें
आशीषों से नहलाते हैं
और फिर से हम दोहराते हैं
कि आज तुम्हारा स्वागत है..
हे विदित तुम्हारा स्वागत है..

मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई

मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई
सिर्फ एक बस एक मेरी, अब रहगुज़र नहीं कोई..

घर से जब चला था, एक ही मुकाम मिला था
मंज़िलों की मेरी अब गिनती नहीं कोई..
मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई..

कुछ निवाले कुछ ज़मीन बस यही थोड़ी चाहत थी
अब बस बेफिक्री है और अब हसरत नहीं कोई..
मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई..

नए पल नए रास्ते अब यही मेरे दोस्त है
पुरानी कड़वी यादों से भी, अब दुश्मनी नहीं कोई..
मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई

कितनी ही महफ़िलों के दरवाज़ों से मैं लौट आया
कि मेरे आराम की “एक शाम” अब तक आई नहीं कोई..
मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई..

जब तक हो सका, जहाँ तक हो सका, तेरे साथ चला मैं “ए दोस्त”
तुझसे अलग होने की भी मेरी मजबूरी रही कोई..
मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई..

वो वक़्त था कसूरवार जिसने ये फासले किये “ए दोस्त ”
वरना तेरे मेरे दिलों के बीच दूरी नहीं कोई..
मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई
सिर्फ एक बस एक मेरी, अब रहगुज़र नहीं कोई..

“तेरे मेरे दरमियां(गीत)”

तेरे मेरे दरमियां,
कुछ न कुछ तो है,
ये तेरा प्यार है,
या मेरा प्यार है,,
तेरे मेरे दरमियां..

बातों में तेरी, कोई खनक है
आँखों में है एक नशा,,
सांसो की तेरी, महकती खुशबु
जैसे रूहानी हवा,
जैसे रूहानी हवा है या फिर कोई बहार है,,
तेरे मेरे दरमियां,
जानेजां कुछ न कुछ तो है,
ये तेरा प्यार है,
या मेरा प्यार है,,
तेरे मेरे दरमियां..

सूरज की सुबह, की किरणों के जैसी
है ये तेरी मुस्कान,,
माथे की बिंदियाँ, होठों की लाली,,
लाते हैं एक तूफ़ान,,
तूफान कि जिससे होता मेरा दिल बेक़रार है,,
तेरे मेरे दरमियां,
कुछ न कुछ तो है,
ये तेरा प्यार है,
या मेरा प्यार है,,
तेरे मेरे दरमियां..

फिर वही महफ़िल सजा ले

कभी अगर वक़्त मिले
तो फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

अरसा हुआ तेरे साथ यूँ बैठे
अरसा हुआ तेरे पास यूँ ठहरे
चल कुछ मेरी सुन कुछ अपनी सुना ले
फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

किसी ज़माने में पीकर ज़ोर से हँसता था तू
किसी ज़माने नशे में गाता था मैं
चल उस ज़माने को फिर अपने पास बुला ले
फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

कभी घर से बहाने बनाकर मयख़ाने जाते थे
वहां दोस्ती और जाम की एकरंग महफ़िल सजाते थे
चल मय के घर जाने को फिर कोई बहाना बना ले
फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

कितने ही बंधनों से बंधा हूँ मैं
कितने ही झांसों में फंसा है तू
बंधन मैं ये तोड़ता हूँ, उन झांसों से तू खुद को छुड़ा ले
फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

कई खुशियां अकेले जी हैं तूने
कई ग़म हैं झेले मैंने अकेले
चल उसी ख़ुशी और ग़म का जश्न मना ले
फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

मय से जिनका नाता नहीं, वो ये न समझेंगे
तेरे मेरे जाम के दौर में क्या लुत्फ़ है, वो ये न समझेंगे
चल दौर-ए-जाम में एक शाम अपनी बिता ले
फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

कितनी ही ज़िम्मेदारियाँ हैं तेरे सर
कितनी ही ज़िम्मेदारियाँ निभाता हूँ मैं
चल एक ज़िम्मेदारी दोस्ती की निभा ले
कभी अगर वक़्त मिले
तो फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

जब पहली बार हम मिले थे..

सुबह की खिली धूप में
खिला हुआ सा तेरा चेहरा
मुझे देख के और भी खिल गया था
जब पहली बार हम मिले थे..

पहले से एक दूसरे को जानते थे
पर पहली बार आमने सामने थे
सड़क से गुजरती भीड़ के बीच
एक बार में ही एक दूसरे को पहचान गए थे
जब पहली बार हम मिले थे..

कांपते पैरों से मैंने सड़क पार की
और कांपते हुए तूने एक कदम बढ़ाया
एक दूसरे को देख के कैसे मुस्काये थे
जब पहली बार हम मिले थे..

पहली बार तेरी गाड़ी पे पीछे बैठा था
थोड़ा डरा थोड़ा सहमा सा था
कैसे दो गहरे दोस्त एक साथ चले थे
जब पहली बार हम मिले थे..

कंधे पे पीछे बैग टांगे
तेरे साथ चर्च गया था
दोनों ने एक दूसरे की ख़ुशी की प्रार्थना की
कैसे चर्च के बाहर उन मासूम बच्चों से हँसे बोले थे
जब पहली बार हम मिले थे..

तेरे साथ का वो पहला एहसास कितना अलग था
तेरी खुशबु से महका महका ये जग था
अकेले इस जीवन में एक साथ कई मेले लगे थे
जब पहली बार हम मिले थे..

फिर धीरे धीरे बातें करते करते
उन पहाड़ियों के बीच से गुज़रे थे
कैसे वो सारे फूल हमारे स्वागत में कुछ ज्यादा ही खिले थे
जब पहली बार हम मिले थे..

कभी एक टक तू मुझे देखती थी
फिर मेरे देखने पे पलकें झुका लेती थी
शायद तेरी आँखों ने हम दोनों के लिए कुछ सपने बुने थे
जब पहली बार हम मिले थे..

जब भी तुझसे बातें करता था
एक एहसास हर बार होता था
जैसे तेरे कई सारे पल मेरे इंतज़ार में गुज़रे थे
जब पहली बार हम मिले थे..

फिर जब तुझसे विदा लेने की घडी आई
तूने कहा “लगता नहीं हम पहली बार मिले हैं”
और मुझे भी बस यही लगा
हम पहली बार नहीं मिले थे
जब इस जनम में हम पहली बार मिले थे||

“अनजाने से ख्वाब में मैंने देखा एक अनजान चेहरा”

अनजाने से ख्वाब मैं मैंने
देखा एक अनजान चेहरा
आँखों का रंग था काला उसका
बालों का रंग सुनेहरा
सारी रात मेरी निंदिया पे
था उसका हरदम पहरा
अनजाने से ख्वाब में मैंने
देखा एक अनजान चेहरा ||

उसके होठों का रंग था ऐसा
जैसे सुबह की लाली का रंग
मेरा उसका मिलन था ऐसा
जैसे कृष्ण राधा हों संग
उसके हर अंदाज़ ने था
क्या क्या आनंद बिखेरा
अनजाने से ख्वाब में मैंने
देखा एक अनजान चेहरा||

आँखों में थी सागर सी गहराई
बोलों में मिसरी की मिठास
सपन नगरी में सारी रात
वो बैठी मेरे पास
अनजानी सी उस खुशबु का
एहसास था कितना गहरा
अनजाने से ख्वाब में मैंने
देखा एक अनजान चेहरा||

जब जब लेती थी अंगड़ाई
एक मस्ती सी छाती थी
दूर पहाड़ों से मस्त घटायें
दौड़ी दौड़ी आती थीं
उसका चंचल रूप बना था
मेरे मन का लुटेरा
अनजाने से ख्वाब में मैंने
देखा एक अनजान चेहरा||

उसकी हंसी की धुन पे
गीत पंछी गुनगुनाते थे
रंग बिरंगे सब फूलों के
चेहरे खिलते जाते थे
देख के उसका सुन्दर मुखड़ा
मन पुलकित होता मेरा
अनजाने से ख्वाब में मैंने
देखा एक अनजान चेहरा||

इस जग की तो नहीं थी वो
फिर किस जग से आई होगी
ऐसा रंग रूप अनोखा
किस जग से लायी होगी
सपने में ही दुआ करता मैं
थोड़ा और टल जाये सवेरा
अनजाने से ख्वाब में मैंने
देखा एक अनजान चेहरा||

“सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं”

कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं
कितना कुछ है कहने को तुझे
पर सामने तेरे मेरे शब्द पता नहीं कहाँ खो जाते हैं|

सोचता हूँ कि मेरी नज़रें तुझे सब बयां कर दें
पर तुझे देखते ही मेरे होश पता नहीं कहाँ खो जाते हैं|
कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं|

जी करता है कि एकटक देखूं तुझे
पर तेरी सादगी, तेरी मासूमियत सब मेरा चैन ले जाते हैं|
कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं|

क्या अंदाज़-ए-बयां करूँ तेरी खूबसूरती को मैं
तेरा दीदार-ए-हुस्न मेरे दिलो दिमाग संभाल नहीं पाते हैं|
कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं|

क्या तारीफ करूँ तेरी मुस्कान की मैं
कि तेरी एक हँसी से मेरे सारे ग़म दूर हो जाते हैं|
कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं|

अच्छी लगती है मुझे इन ज़ुल्फ़ों की शरारत
इनके लहराने से हर तरफ मदहोशी के बादल छा जाते हैं|
कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं|

हिम्मत कर के गर होठ बयां कर भी दें
तो तेरे रूठ जाने के ख़्याल मुझे रूह तक डरा जाते हैं|
कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं|

पर ए मेरी मोहब्बत, तेरी दीवानगी का जुनून कुछ है इस क़दर
एक दिन तुझे पा ही लूंगा, मेरे ज़ज़्बात मुझे विश्वास दिला जाते हैं|
कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं|
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं||