ये विरह बड़ी समस्या है,
तेरी भी और मेरी भी|
ये दूरी एक तपस्या है,
तेरी भी और मेरी भी||
जो किया क्या वो सही किया?
जो जिया क्या वो सही जिया?
तू प्रश्न हमेशा करती है,
मैं उत्तर न दे पाता हूँ,
कि होनी एक अटल अवस्था है,
तेरी भी और मेरी भी|
ये दूरी एक तपस्या है,
तेरी भी और मेरी भी||
मैं कटे फूल सा मुरझाया,
तू बिन बारिश धरती सी है|
मैं सांसों का एक चलता साया,
तू रुकी हुई नदिया सी है|
अनसुलझी सी एक व्यथा है,
तेरी भी और मेरी भी|
ये दूरी एक तपस्या है,
तेरी भी और मेरी भी||
दो जिस्म भले हम दिखते हों,
आत्मा तो अपनी एक है|
दिल दो भले धड़कते हों,
धड़कन तो उनकी एक है|
फिर एक जैसी ही तो तमन्ना है,
तेरी भी और मेरी भी|
ये दूरी एक तपस्या है,
तेरी भी और मेरी भी||
तुझ संग मैं बाग़ सा खिलता हूँ,
और तू कली सी महकती है|
मैं प्रेम गगन में उड़ता हूँ,
जहाँ तू चिड़िया सी चहकती है|
बेसब्र मिलन की इच्छा है,
तेरी भी और मेरी भी|
ये दूरी एक तपस्या है,
तेरी भी और मेरी भी||
पर तुझको याद दिला दूँ मैं,
सब दिन एक जैसे न होंगे|
तुझको ये बात बता दूँ मैं,
हम दूर हमेशा न होंगे|
कि हर पल में यही दुआ है,
तेरी भी और मेरी भी|
ये दूरी एक तपस्या है,
तेरी भी और मेरी भी||
Nice bhai
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Really very nice poem and very nice write up.keep posting such nice poem.
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