All posts by Manish

I am working as senior software developer in Ciena India and have a hobby of writing poems and sharing thoughts.

मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई

मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई
सिर्फ एक बस एक मेरी, अब रहगुज़र नहीं कोई..

घर से जब चला था, एक ही मुकाम मिला था
मंज़िलों की मेरी अब गिनती नहीं कोई..
मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई..

कुछ निवाले कुछ ज़मीन बस यही थोड़ी चाहत थी
अब बस बेफिक्री है और अब हसरत नहीं कोई..
मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई..

नए पल नए रास्ते अब यही मेरे दोस्त है
पुरानी कड़वी यादों से भी, अब दुश्मनी नहीं कोई..
मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई

कितनी ही महफ़िलों के दरवाज़ों से मैं लौट आया
कि मेरे आराम की “एक शाम” अब तक आई नहीं कोई..
मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई..

जब तक हो सका, जहाँ तक हो सका, तेरे साथ चला मैं “ए दोस्त”
तुझसे अलग होने की भी मेरी मजबूरी रही कोई..
मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई..

वो वक़्त था कसूरवार जिसने ये फासले किये “ए दोस्त ”
वरना तेरे मेरे दिलों के बीच दूरी नहीं कोई..
मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई
सिर्फ एक बस एक मेरी, अब रहगुज़र नहीं कोई..

“तेरा इंतज़ार”

कब फिर से तू मिलेगी मुझे
कितनी तड़प से मुझे ये इंतज़ार है,
किस पल किस घडी तेरी एक झलक मिलेगी मुझे
कितनी हसरत से मुझे ये इंतज़ार है,,

हर उस पल से मेरी शिक़ायत है
जिस पल ने दूर किया तुझसे मुझे,
हर उस शय से मेरी बग़ावत है
कि जो फिर न मिला सकी मुझसे तुझे,,
कब वो मीठी मुस्कान फिर दिखेगी मुझे
कितनी तड़प से मुझे ये इंतज़ार है,
किस पल किस घडी तेरी एक झलक मिलेगी मुझे
कितनी हसरत से मुझे ये इंतज़ार है,,

वक़्त बेवक़्त के झगडे में तू रूठ गया
कभी न चाहा मगर फिर भी तू मुझसे दूर गया,
तमन्नाओं के तिनकों से जोड़ा था जिसे
वो मेरा मासूम दिल एक पल में टूट गया,,
कब वो एक पुरानी सी मुलाक़ात फिर मिलेगी मुझे
कितनी तड़प से मुझे ये इंतज़ार है,
किस पल किस घडी तेरी एक झलक मिलेगी मुझे
कितनी हसरत से मुझे ये इंतज़ार है,,

अब आदत नहीं मुझे तुझसे अलग रहने की
अब आदत नहीं मुझे तेरे बिना जीने की,
सब के बीच रहकर भी बहुत अकेला हूँ मैं
बिन तेरे, यकीं कर, बहुत अधूरा हूँ मैं,,
कब वो निगाँहें फिर छुएंगी मुझे
कितनी तड़प से मुझे ये इंतज़ार है,
किस पल किस घडी तेरी एक झलक मिलेगी मुझे
कितनी हसरत से मुझे ये इंतज़ार है,,

“तेरे मेरे दरमियां(गीत)”

तेरे मेरे दरमियां,
कुछ न कुछ तो है,
ये तेरा प्यार है,
या मेरा प्यार है,,
तेरे मेरे दरमियां..

बातों में तेरी, कोई खनक है
आँखों में है एक नशा,,
सांसो की तेरी, महकती खुशबु
जैसे रूहानी हवा,
जैसे रूहानी हवा है या फिर कोई बहार है,,
तेरे मेरे दरमियां,
जानेजां कुछ न कुछ तो है,
ये तेरा प्यार है,
या मेरा प्यार है,,
तेरे मेरे दरमियां..

सूरज की सुबह, की किरणों के जैसी
है ये तेरी मुस्कान,,
माथे की बिंदियाँ, होठों की लाली,,
लाते हैं एक तूफ़ान,,
तूफान कि जिससे होता मेरा दिल बेक़रार है,,
तेरे मेरे दरमियां,
कुछ न कुछ तो है,
ये तेरा प्यार है,
या मेरा प्यार है,,
तेरे मेरे दरमियां..

वो सितारों से सपने सजा गया

ज़मीं पे निगाह रख चलने वाला
आसमां से टकरा गया,
मिट्टी से कभी अपने ख़्वाब रंगने वाला,
सितारों से सपने सजा गया|

कभी एक रोटी उसकी चाह थी
कभी बहुत छोटी उसकी राह थी,
छोटे छोटे कदम बढ़ाते हुए
वो एक लम्बी छलांग लगा गया,
मिट्टी से कभी अपने ख़्वाब रंगने वाला,
सितारों से सपने सजा गया|

किसी से आँख मिलाने से जो डरता था
सब से अपना रस्ता बचा के जो चलता था,
धीरे धीरे अपनी आशाओं के सागर में
अपनी एक अलग कश्ती तैरा गया,
मिट्टी से कभी अपने ख़्वाब रंगने वाला,
सितारों से सपने सजा गया|

कभी कुछ लोग उसपे हँसते थे
भले बुरे ताने कसते थे
उनके ठहाकों को दिल से लगा
संघर्ष की अग्नि से वो खुद को चमका गया,
मिट्टी से कभी अपने ख़्वाब रंगने वाला,
सितारों से सपने सजा गया|

जीवन के कई पल उसने अकेले काटे थे
कुछ ही अफ़साने किसी के साथ बांटे थे
तन्हाई में खुद से बातें करते,
अपने ख्यालों में बुनी,
एक हसीन दास्ताँ वो सबको सुना गया,
मिट्टी से कभी अपने ख़्वाब रंगने वाला,
सितारों से सपने सजा गया|
ज़मीं पे निगाह रख चलने वाला
आसमां से टकरा गया||

नेपाल डिज़ास्टर

25 अप्रैल दिन शनिवार को मैं अपने घर अलीगढ कुछ काम से गया था| मैं सुबह करीब 11 बजे घर पहुंचा| मम्मी पापा से बातें कर ही रहा था कि अचानक से लगा चक्कर सा आ रहा है| सब लोगों ने एक दूसरे की तरफ देखा और अचानक से मेरा छोटा भाई बोला “अरे कहीं भूकम्प तो नहीं आ रहा”, इतना कहकर उसने टीवी का स्विच ऑन कर दिया| “आज तक” पर न्यूज़ चल रही थीं, “नेपाल में भूकम्प के झटके महसूस किये गए”, “भूकम्प की तीव्रता रिकटर पैमाने पे 7 .9 मापी गई”, “भारी जान माल का नुकसान होने का अनुमान”| थोड़ी देर हम लोग इसी के बारे में चर्चा करते रहे और मैं अपने काम से निकल गया क्यूँकि मुझे वापस उसी दिन गुडगाँव लौटना था| न मैंने, और न ही मेरे घर पे किसी ने इसको बहुत गंभीरता से लिया|

अपना काम ख़त्म करके मैं वापस गुडगाँव लौटा, शाम को करीब 7:30 बजे मैं घर पहुंचा और ईशा (मेरी वाइफ) से बोला “तुम्हें पता चला, आज भूकम्प आया था”. ईशा बोली, “हाँ स्कूल में भी सब लोग बोल रहे थे लेकिन मुझे तो महसूस नहीं हुआ”| मैंने तुरंत टीवी ऑन करके न्यूज़ चैनल लगाया| भारत में नेपाल के राजदूत से बातें चल रही थी और मीडिया वहां के जान माल के नुकसान की जानकारी उनसे ले रहा था| मैंने उन्हें कहते हुए सुना कि नेपाल में करीब 100 से ज्यादा लोगों के मरने की खबर है और ज्यादा नुकसान नेपाल की राजधानी काठमांडू में हुआ है| मुझे और मेरी वाइफ को बहुत अफ़सोस हुआ| शाम को एक बार फिर जब न्यूज़ ऑन की तो पता चला कि मरने वालो की संख्या 850 से ऊपर निकल गई है| अगले दिन रविवार को जब सुबह न्यूज़ ऑन की तो पता चला कि 2200 से ज्यादा लोग मारे गए हैं और जब मैं ये आर्टिकल लिखने बैठा तो करीबन 4300 के मरने की खबर थी| और अभी भी ये आंकड़ा बढ़ सकता है| भारत में भी करीब 60 से ज्यादा लोग मर चुके हैं और ज्यादा तर बिहार में जान माल का नुकसान हुआ है| वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे भी ज्यादा तीव्रता का और इससे भी ज्यादा नुकसान कर सकने वाला भूकम्प अभी आ सकता है, जिसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पे 9 हो सकती है और सबसे ज्यादा खतरे में दिल्ली और उसके आस पास के क्षेत्र है|

पिछले कुछ समय में कई ऐसे नेचुरल डिजास्टर हो चुके हैं जिनमें काफी लोग मारे जा चुके हैं| पिछले साल 2014 में सितम्बर में जम्मू और कश्मीर में जो बाढ़ आई थी, उसमें करीब 450 से ज्यादा लोग मारे गए थे| इसी साल कुछ ही दिन पहले बिहार में जो तूफान आया था, उसमें करीब 55 लोग मारे गए थे| ये घटनाएँ अब आम होती जा रही हैं| कुछ महीने या कुछ दिन बाद ऐसा कुछ न कुछ सुनने में आ ही जाता है|

मुझे लगता है कि अब सबको, न सिर्फ मुझे, या वे जो इस आर्टिकल को पढ़ रहे हैं बल्कि भारत की केंद्र सरकार को, दिल्ली सरकार को, हर राज्य सरकार को, हर शहर के नगर निगम को, हर गांव की ग्राम पंचायत को, हर भारतीय को और शायद इस विश्व के हर व्यक्ति को एक आत्म मंथन करने की ज़रुरत है| शायद कहीं न कहीं ये सब घटनाएँ नेचर की तरफ से हम लोगों को एक इंडिकेशन है कि अब हम  सबको एक नियंत्रित और अनुशासित जीवन जीने जी ज़रूरत है| सरकारों को एक इंडिकेशन है कि अब वे ऐसे उपाय निकालें कि भविष्य में इस तरह कि घटनाएँ कम हों और अगर हों तो उनमें कम से कम जान माल का नुकसान हों| उद्योगपतियों को एक इंडिकेशन है कि वे अपने उद्यमों से वातावरण को कम से कम दूषित करें|

हम मनुष्यों ने हमेशा नेचुरल रिसोर्सेज का उपभोग किया है, चाहे वो पानी हो, हवा हो या मिटटी| और विश्व के हर व्यक्ति की अब ये नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि अब वे इनका दुरूपयोग करने से बचें| आज कल मैं देखता हूँ कितने ही संस्थान वातावरण को प्रदूषित होने से रोकने के लिए काम कर रहे हैं| हमें जागृत कर रहे हैं कि हम कम से कम बिजली की खपत करें, पानी केवल ज़रूरत के हिसाब से ही इस्तेमाल करें, ऑफिस जाने कि लिए कार पूलिंग करें जिसके कि कम से कम पेट्रोल डीजल खर्च हो, पेड़ पोधे लगाएं और अगर ऐसा न कर सकें तो घरों में या घर की छतों पर गमले लगाएं, स्मोकिंग न करें, कम से कम कागज़ों का इस्तेमाल करें, कम से कम प्लास्टिक पोलिथिन का इस्तेमाल करें और उन्हें सड़कों पे न फेंके| हम सभी जानते हैं कि एक न एक दिन ये रिसोर्सेस खत्म हों जायेंगे तो इनका एक एक कतरा सोच समझ के खर्च करना चाहिए|

अब अगर हमारे यहाँ की केंद्र या राज्य सरकारों की बात करें तो वातावरण और रिसोर्सेज के लिए कई बड़ी जिम्मेदारियां उनकी भी बनती हैं, जिन्हें शायद वे निभाएं तो इस तरह की घटनाओं को न सिर्फ कम किया जा सकता है बल्कि ऐसा होने पे बहुत कुछ नुकसान होने से बचाया भी जा सकता है| मैं देखता हूँ की दिल्ली एनसीआर रीजन में न जाने कितना कंस्ट्रक्शन चल रहा है, ये जानते हुए भी कि ये सारा एरिया डेंजर जोन में है, फिर भी पता नहीं क्यों दिल्ली, यू पी और हरयाणा की सरकारें यहाँ बिल्डिंग्स पे बिल्डिंग्स खड़ी करने की इज़ाज़त दे रही हैं| उन्हें देखने और समझने की ज़रूरत हैं कि क्या उन्होंने लोगों और संपत्ति को बचाने के लिए भूकम्प जैसे नेचुरल डिजास्टर को झेलने की ज़रूरी तैयारियां कर रखी हैं? अगर नहीं तो मैं समझता हूँ कि बिना देरी किये अब ये तैयारियां शुरू कर देनी चाहिए| एक बेहतर भविष्य के लिए बेहतर वातावरण और बेहतर सुरक्षा बहुत ज़रूरी है|

फिर वही महफ़िल सजा ले

कभी अगर वक़्त मिले
तो फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

अरसा हुआ तेरे साथ यूँ बैठे
अरसा हुआ तेरे पास यूँ ठहरे
चल कुछ मेरी सुन कुछ अपनी सुना ले
फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

किसी ज़माने में पीकर ज़ोर से हँसता था तू
किसी ज़माने नशे में गाता था मैं
चल उस ज़माने को फिर अपने पास बुला ले
फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

कभी घर से बहाने बनाकर मयख़ाने जाते थे
वहां दोस्ती और जाम की एकरंग महफ़िल सजाते थे
चल मय के घर जाने को फिर कोई बहाना बना ले
फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

कितने ही बंधनों से बंधा हूँ मैं
कितने ही झांसों में फंसा है तू
बंधन मैं ये तोड़ता हूँ, उन झांसों से तू खुद को छुड़ा ले
फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

कई खुशियां अकेले जी हैं तूने
कई ग़म हैं झेले मैंने अकेले
चल उसी ख़ुशी और ग़म का जश्न मना ले
फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

मय से जिनका नाता नहीं, वो ये न समझेंगे
तेरे मेरे जाम के दौर में क्या लुत्फ़ है, वो ये न समझेंगे
चल दौर-ए-जाम में एक शाम अपनी बिता ले
फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

कितनी ही ज़िम्मेदारियाँ हैं तेरे सर
कितनी ही ज़िम्मेदारियाँ निभाता हूँ मैं
चल एक ज़िम्मेदारी दोस्ती की निभा ले
कभी अगर वक़्त मिले
तो फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

जब पहली बार हम मिले थे..

सुबह की खिली धूप में
खिला हुआ सा तेरा चेहरा
मुझे देख के और भी खिल गया था
जब पहली बार हम मिले थे..

पहले से एक दूसरे को जानते थे
पर पहली बार आमने सामने थे
सड़क से गुजरती भीड़ के बीच
एक बार में ही एक दूसरे को पहचान गए थे
जब पहली बार हम मिले थे..

कांपते पैरों से मैंने सड़क पार की
और कांपते हुए तूने एक कदम बढ़ाया
एक दूसरे को देख के कैसे मुस्काये थे
जब पहली बार हम मिले थे..

पहली बार तेरी गाड़ी पे पीछे बैठा था
थोड़ा डरा थोड़ा सहमा सा था
कैसे दो गहरे दोस्त एक साथ चले थे
जब पहली बार हम मिले थे..

कंधे पे पीछे बैग टांगे
तेरे साथ चर्च गया था
दोनों ने एक दूसरे की ख़ुशी की प्रार्थना की
कैसे चर्च के बाहर उन मासूम बच्चों से हँसे बोले थे
जब पहली बार हम मिले थे..

तेरे साथ का वो पहला एहसास कितना अलग था
तेरी खुशबु से महका महका ये जग था
अकेले इस जीवन में एक साथ कई मेले लगे थे
जब पहली बार हम मिले थे..

फिर धीरे धीरे बातें करते करते
उन पहाड़ियों के बीच से गुज़रे थे
कैसे वो सारे फूल हमारे स्वागत में कुछ ज्यादा ही खिले थे
जब पहली बार हम मिले थे..

कभी एक टक तू मुझे देखती थी
फिर मेरे देखने पे पलकें झुका लेती थी
शायद तेरी आँखों ने हम दोनों के लिए कुछ सपने बुने थे
जब पहली बार हम मिले थे..

जब भी तुझसे बातें करता था
एक एहसास हर बार होता था
जैसे तेरे कई सारे पल मेरे इंतज़ार में गुज़रे थे
जब पहली बार हम मिले थे..

फिर जब तुझसे विदा लेने की घडी आई
तूने कहा “लगता नहीं हम पहली बार मिले हैं”
और मुझे भी बस यही लगा
हम पहली बार नहीं मिले थे
जब इस जनम में हम पहली बार मिले थे||

“नई सुबह”

है सुबह नई
ये वक़्त नया
सुबह जगने का एहसास नया
क़िस्मत से मुझे मिले इस पल में
मेरे जीने का अंदाज़ नया|

जो बीता था वो पुराना था
था अपना और न बेगाना था
अच्छा था वो या फिर था बुरा
पल जैसा भी था सुहाना था
अब गाना है फिर गीत नया
संगीत नया और सुर भी नया|
क़िस्मत से मुझे मिले इस पल में
मेरे जीने का अंदाज़ नया||

कल की अब फिक्र करूँ क्यों मैं
कल की अब चाह भरूँ क्यों मैं
कल का हर पल अनजाना है
तो क्यों न ये पल जी लूँ मैं
इस पल में मेरा विश्वास नया
एक सोच नयी, जज़्बात नया|
क़िस्मत से मुझे मिले इस पल में
मेरे जीने का अंदाज़ नया|

एक नई दास्ताँ ज़रूरी है
ख़ुद की पहचान ज़रूरी है
एक जैसा अब तक जीता था
एक नई पहचान ज़रूरी है
अब करना है कोई काम नया
एक राह नई, एक मुकाम नया|
क़िस्मत से मुझे मिले इस पल में
मेरे जीने का अंदाज़ नया|

“अनजाने से ख्वाब में मैंने देखा एक अनजान चेहरा”

अनजाने से ख्वाब मैं मैंने
देखा एक अनजान चेहरा
आँखों का रंग था काला उसका
बालों का रंग सुनेहरा
सारी रात मेरी निंदिया पे
था उसका हरदम पहरा
अनजाने से ख्वाब में मैंने
देखा एक अनजान चेहरा ||

उसके होठों का रंग था ऐसा
जैसे सुबह की लाली का रंग
मेरा उसका मिलन था ऐसा
जैसे कृष्ण राधा हों संग
उसके हर अंदाज़ ने था
क्या क्या आनंद बिखेरा
अनजाने से ख्वाब में मैंने
देखा एक अनजान चेहरा||

आँखों में थी सागर सी गहराई
बोलों में मिसरी की मिठास
सपन नगरी में सारी रात
वो बैठी मेरे पास
अनजानी सी उस खुशबु का
एहसास था कितना गहरा
अनजाने से ख्वाब में मैंने
देखा एक अनजान चेहरा||

जब जब लेती थी अंगड़ाई
एक मस्ती सी छाती थी
दूर पहाड़ों से मस्त घटायें
दौड़ी दौड़ी आती थीं
उसका चंचल रूप बना था
मेरे मन का लुटेरा
अनजाने से ख्वाब में मैंने
देखा एक अनजान चेहरा||

उसकी हंसी की धुन पे
गीत पंछी गुनगुनाते थे
रंग बिरंगे सब फूलों के
चेहरे खिलते जाते थे
देख के उसका सुन्दर मुखड़ा
मन पुलकित होता मेरा
अनजाने से ख्वाब में मैंने
देखा एक अनजान चेहरा||

इस जग की तो नहीं थी वो
फिर किस जग से आई होगी
ऐसा रंग रूप अनोखा
किस जग से लायी होगी
सपने में ही दुआ करता मैं
थोड़ा और टल जाये सवेरा
अनजाने से ख्वाब में मैंने
देखा एक अनजान चेहरा||

“संघर्ष”

जब साथ तुम्हारे ख़ुशी न हो
अधरों पे झूठी हंसी न हो
जब मार्ग तुम्हें कोई दिखे नहीं
संघर्ष विकल्प कोई बचे नहीं
तब, नस नस में बहता खून खून
रग रग में उठता ये जूनून
हर पल सहता, हर पल कहता
संघर्ष करो, संघर्ष करो||

जब रात दिन में भेद न हो
और प्रियजनों का मेल न हो
तपती गर्मी की छाया हो
न हाथ तुम्हारे माया हो
तब, सांसों का बढ़ता महावेग
आँखों में आता रक्त तेज़
हर पल सहता, हर पल कहता
संघर्ष करो, संघर्ष करो||

जब पथ में कांटे बिछे रहें
और दुःख के बादल घिरे रहें
जब प्यास तुम्हारी बुझे नहीं
एक बूँद सफलता मिले नहीं
तब, धड़कन का हर गति परिवर्तन
हर अंग में होता ये कम्पन
हर पल सहता, हर पल कहता
संघर्ष करो, संघर्ष करो||

“सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं”

कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं
कितना कुछ है कहने को तुझे
पर सामने तेरे मेरे शब्द पता नहीं कहाँ खो जाते हैं|

सोचता हूँ कि मेरी नज़रें तुझे सब बयां कर दें
पर तुझे देखते ही मेरे होश पता नहीं कहाँ खो जाते हैं|
कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं|

जी करता है कि एकटक देखूं तुझे
पर तेरी सादगी, तेरी मासूमियत सब मेरा चैन ले जाते हैं|
कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं|

क्या अंदाज़-ए-बयां करूँ तेरी खूबसूरती को मैं
तेरा दीदार-ए-हुस्न मेरे दिलो दिमाग संभाल नहीं पाते हैं|
कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं|

क्या तारीफ करूँ तेरी मुस्कान की मैं
कि तेरी एक हँसी से मेरे सारे ग़म दूर हो जाते हैं|
कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं|

अच्छी लगती है मुझे इन ज़ुल्फ़ों की शरारत
इनके लहराने से हर तरफ मदहोशी के बादल छा जाते हैं|
कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं|

हिम्मत कर के गर होठ बयां कर भी दें
तो तेरे रूठ जाने के ख़्याल मुझे रूह तक डरा जाते हैं|
कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं|

पर ए मेरी मोहब्बत, तेरी दीवानगी का जुनून कुछ है इस क़दर
एक दिन तुझे पा ही लूंगा, मेरे ज़ज़्बात मुझे विश्वास दिला जाते हैं|
कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं|
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं||

“वो रस्ता भी अब वीरान है”

कह के मुझसे तू गया था
कि लौटेगा कभी
बाद जाने के तेरे
आया न नज़र मुझको
तेरा साया भी कभी..

कितनी आरज़ू थी मुझे
एक नज़र देखने की तुझे
कि तेरी याद में खिड़की से नज़र हटाई नहीं कभी
तू नहीं तो तेरी खबर लेके
कोई तो आएगा कभी..

न याद होगा तुझे
किस कदर शहर की गलियों में भागता था मैं
कि तेरी एक झलक मिल जाये कभी
न याद होगा तुझे
कितनी मुश्किलों से, कितनी दुआओं के बाद
तेरे दिल में अपनी एक जगह बनाई थी कभी..

पर अब सिला ये है
कि अपनी मुहब्बत के दिन तू भूला है सभी
वो रस्ता भी अब वीरान है
जिसपे मेरे “हमकदम”
मेरे साथ चला था तू कभी
कि वो रस्ता भी अब वीरान है
जिसपे मेरे “हमसफर”
मेरे साथ चला था तू कभी..

“पृकृति”

ज़रा देखो अपने आस पास
हर ज़र्रा कुछ बतलाता है
पृकृति का कण कण
कुछ न कुछ हमें सिखाता है ||

हवा सिखाती है चलना
ये नदी सिखाती बहना |
सूरज कहे जगमगाओ तुम
और चंदा शीतल रहना||
एक छोटा सा जुगनू भी अंधियारे पथ को उजलाता है ||
पृकृति का कण कण
कुछ न कुछ हमें सिखाता है ||

किसी भी सूरत में डिगें नहीं
ये पर्वत हमें बताता है |
मन को विशाल बना लें हम
सिंधु ये बोल सुनाता है ||
पर-उपकार में जियें सदा
हर वृक्ष ये गाथा गाता है ||
पृकृति का कण कण
कुछ न कुछ हमें सिखाता है ||

किस दिशा हमें जाना है
ये तारे राह दिखाते हैं |
झुलसाती कभी जो गर्मी हो
तो बादल हमें बचाते हैं ||
न जाने कौन है वो पंछी
जो हर सुबह मुझे जगाता है
और यही एहसास दिलाता है कि
पृकृति का कण कण
कुछ न कुछ हमें सिखाता है ||

“जीवन-उद्देश्य “

उस पथ पर चलना बेमानी है, जिसकी कोई मंज़िल नहीं|
वो जीवन जीना बेमानी है, जिसका कोई हासिल नहीं||

क्यों व्यर्थ बोझ बढ़ाना है, अपनी इस धरती मैया का|
बेहतर उठकर उद्धार करें, किसी भटके राही की खिवैया का||

क्यों जिए यहाँ कुछ पता नहीं, क्यों मरे यहाँ कुछ पता नहीं|
उद्देश्य-विहीन इस जीवन को हम जिए यहाँ क्यों पता नहीं||
उठकर मिलकर कुछ करें अभी, तो आंधी चले फिर हवा नहीं|
हर किसी को हर ख़ुशी मिले, कोई आंसू नहीं, कोई गिला नहीं||

राक्षसों से मुक्त कराने को, भगवन ने भी अवतार लिया|
सब दुष्टों का संहार किया, जन-जीवन का उद्धार किया||
उन्ही भगवन को बना पत्थर, मंदिरों में हमने पूजा है|
न सीख ली उनके जीवन से, न उनके संदेशों को जाना है||

तो सुनहरे कल को कल्पित करें कैसे, जब अर्थहीन सब काज है|
कैसे होगा रोशन भविष्य, जब अँधेरे में हमारा आज है||
क्या गीत सजायेंगे हम, आने वाली पीढ़ी के अधरों पर|
जब स्वार्थी हमारे संगीतों में,
न जन सेवा की धुन है, न देशभक्ति का साज है||

आओ मिलकर सब शपथ लें, जीवन स्वार्थ रहित बनाएंगे|
देश और जन सेवा को, अपना परम उद्देश्य बनाएंगे||
न एक पल खाली बैठेंगे, न एक पल व्यर्थ गवाएंगे|
बस जिएंगे जन सेवा के लिए, जन सेवा के लिए मर जायेंगे||

“कर्म-गाथा “

कर्म करता ही मैं जाऊं
कर्म की गाथा मैं गाउँ|
कर्म करते हुए सदैव
कर्म में ही मिल मैं जाऊं||

कर्म सत्य, कर्म सुन्दर, कर्म ही पुरुषार्थ है|
कर्म आदि, कर्म अंत, कर्म ही परमार्थ है||

कर्म से ही तुम हो मैं हूँ, कर्म से संसार है|
कर्म ही जीवन-रत्न, कर्म जीवन सार है||

कर्म श्रेष्ठ, कर्म ज्येष्ठ, कर्म ही बलवान है|
कर्म करने से डरे जो, वो नहीं इंसान है||

कर्म भक्ति, कर्म शक्ति, कर्म ही भगवान है|
कर्म गीता, कर्म बाइबिल, कर्म ही कुरान है||

कर्म से ही हर दिशा है, कर्म से ही हर डगर|
कर्म ही है देश मेरा, कर्म ही मेरा नगर||

हर पल कर्म करता ही जाये, मनुष्य वो महान है|
विधाता की है ये वाणी सुनो, कर्म ही प्रधान है||
विधाता की ये वाणी सुनो, कर्म ही प्रधान है||

“मैं थका हूँ लेकिन मरा नहीं”

मैं रुका नहीं
मैं झुका नहीं
आशा का दीप अभी बुझा नहीं
जब तक है साँस लडुंगा मैं
मैं थका हूँ लेकिन मरा नहीं

तुमने मुझको अभी बांधा है
कर्ज़ों के बोझ से लादा है
सपनों के पंख लगा कर मैं
पंछी बन कर उड़ जाऊंगा
जीवन भर जो बांधे मुझको
पिंजरा कोई ऐसा बना नहीं
जब तक है साँस लडुंगा मैं
मैं थका हूँ लेकिन मरा नहीं

हैं तुमने कुछ उपकार किये
ऋण सभी के मैंने चुका दिए
फिर भी तुमने नहीं छोड़ा है
मंज़िल का रस्ता मोड़ा है
मंज़िल मैं पा ही जाऊंगा
है अब वो मुझसे दूर नहीं
जब तक है साँस लडुंगा मैं
मैं थका हूँ लेकिन मरा नहीं

जो चाहा वो मिल जायेगा
मुरझा ये पुष्प खिल जायेगा
काँटों के इस वन जीवन मैं
परमार्थ मुझे मिल जायेगा
कोशिशें की तुमने डिगाने की
कर्मपथ से मैं कभी डिगा नहीं
जब तक है साँस लडुंगा मैं
मैं थका हूँ लेकिन मरा नहीं
मैं रुका नहीं
मैं झुका नहीं
आशा का दीप अभी बुझा नहीं

“वो दौर”

अब मैं कुछ और हूँ
अब तू कुछ और है
सब कुछ है बदल गया
ये वक़्त ही कुछ और है
पर मेरे दोस्त
तेरे मेरे साथ का वो दौर ही कुछ और था|

कब घर से निकलेगा
कहाँ से बैट लाएगा
ग्यारह खिलाडी हुए कि नहीं
एक्स्ट्रा प्लेयर कहाँ से आएगा
मैच शुरू होने का
वो इंतज़ार ही कुछ और था
ऐ मेरे दोस्त
तेरे मेरे साथ का वो दौर ही कुछ और था|

आज बस कुछ करना ही है
ये मैच जीतना ही है
पिछली बार धोखे से हराया था
उस नए बॉलर का मुंह तो पीटना ही है
सिगरेट के कश लगाते लगाते
वो मैच की प्लानिंग करने का मज़ा ही कुछ और था
ऐ मेरे दोस्त
तेरे मेरे साथ का वो दौर ही कुछ और था|

कितना रुकने को बोला था
कैच दे के आ गया
कितना समझा के भेजा था
फिर वैसे ही बल्ला घुमा के आ गया
तुझे गालियों से समझाने का
मेरा वो अंदाज ही कुछ और था
ऐ मेरे दोस्त
तेरे मेरे साथ का वो दौर ही कुछ और था|

कितने सारे रन बनाने हैं
और विकेट भी बस एक ही है
उधर बोलर्स कितने हैं
और इधर बल्लेबाज़ एक ही है
फिर भी ये मैच जीतना है
तेरा मेरा वो हौसला ही कुछ और था
ऐ मेरे दोस्त
तेरे मेरे साथ का वो दौर ही कुछ और था|

सारे फील्डर्स बॉउंड्री पे लगाये हैं
बॉल बाहर कैसे जाएगी
ज़मीं से तो मुश्किल है
तो हवा में ही उछाली जाएगी
डरते हुए छक्का लगाने का
मेरा वो इरादा ही कुछ और था
ऐ मेरे दोस्त
तेरे मेरे साथ का वो दौर ही कुछ और था|

बस दो और रन बनाने हैं
क्रीज़ पे रुक जाना
जैसे ही बॉल आये
हिट करके भाग जाना
कहीं आउट न हो जाऊं मैं
तेरी उन दुआओं का वो ज़ोर ही कुछ और था
ऐ मेरे दोस्त
तेरे मेरे साथ का वो दौर ही कुछ और था|

ख़ुशी से बैट लहराया मैंने
और ख़ुशी से हाथ उठाये तूने
मैंने तुझको और
मुझे गले से लगाया तूने
अपने दम पे मैच जीता दिया मेरे भाई
तेरे उन बोलों मैं अपने-पन का एहसास ही कुछ और था
ऐ मेरे दोस्त
तेरे मेरे साथ का वो दौर ही कुछ और था|