आँखों से सब भरा सा दिखता है,
पर अंदर कहीं कुछ खाली सा है |
जीवन में भले कुछ कमीं नहीं,
फिर भी मन कहीं खोया सा है ||
ये रौशनी जो दिखती है,
वो कहीं अँधेरा तो नहीं,
जिस अँधेरे में जाने से डरता हूँ,
वहीँ कोई सवेरा तो नहीं,
जो कुछ मुझे साफ दिखता है,
लगता है वो कुछ धुंधलाया सा है |
जीवन में भले कुछ कमीं नहीं,
फिर भी मन कहीं खोया सा है ||
अभी तक जो मंजिलें मिली हैं,
वो बस कुछ शुरुआत तो नहीं,
अभी तक जो रास्ते मैं चला हूँ,
वो कोई भूलभुलैया तो नहीं,
जो भी मैंने अब तक हासिल किया,
लगे कि कुछ तो उसमें पराया सा है,
जीवन में भले कुछ कमीं नहीं,
फिर भी मन कहीं खोया सा है ||
सांसों की गिनतियाँ अब कम हो रही हैं,
ज़िन्दगी से चाहतें कुछ कम हो रही हैं,
अपने ही सवालों में कुछ उलझा हूँ ऐसे,
जैसे ज़िन्दगी एक भंवर हो रही है,
जो कुछ भी मैंने देखा या समझा,
लगता है जैसे सब झुठलाया सा है,
आँखों से सब भरा सा दिखता है,
पर अंदर कहीं कुछ खाली सा है |
जीवन में भले कुछ कमीं नहीं,
फिर भी मन कहीं खोया सा है ||
Superb lines manish… 🙂 … expressed feelings of many ppls… 😦
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Kya khoob likha hai Manish bhai ..
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