कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं
कितना कुछ है कहने को तुझे
पर सामने तेरे मेरे शब्द पता नहीं कहाँ खो जाते हैं|
सोचता हूँ कि मेरी नज़रें तुझे सब बयां कर दें
पर तुझे देखते ही मेरे होश पता नहीं कहाँ खो जाते हैं|
कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं|
जी करता है कि एकटक देखूं तुझे
पर तेरी सादगी, तेरी मासूमियत सब मेरा चैन ले जाते हैं|
कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं|
क्या अंदाज़-ए-बयां करूँ तेरी खूबसूरती को मैं
तेरा दीदार-ए-हुस्न मेरे दिलो दिमाग संभाल नहीं पाते हैं|
कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं|
क्या तारीफ करूँ तेरी मुस्कान की मैं
कि तेरी एक हँसी से मेरे सारे ग़म दूर हो जाते हैं|
कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं|
अच्छी लगती है मुझे इन ज़ुल्फ़ों की शरारत
इनके लहराने से हर तरफ मदहोशी के बादल छा जाते हैं|
कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं|
हिम्मत कर के गर होठ बयां कर भी दें
तो तेरे रूठ जाने के ख़्याल मुझे रूह तक डरा जाते हैं|
कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं|
पर ए मेरी मोहब्बत, तेरी दीवानगी का जुनून कुछ है इस क़दर
एक दिन तुझे पा ही लूंगा, मेरे ज़ज़्बात मुझे विश्वास दिला जाते हैं|
कैसे कहूँ मैं अपने दिल की बात
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं|
सामने आते ही तेरे मेरे होठ सिल जाते हैं||