अब मैं कुछ और हूँ
अब तू कुछ और है
सब कुछ है बदल गया
ये वक़्त ही कुछ और है
पर मेरे दोस्त
तेरे मेरे साथ का वो दौर ही कुछ और था|
कब घर से निकलेगा
कहाँ से बैट लाएगा
ग्यारह खिलाडी हुए कि नहीं
एक्स्ट्रा प्लेयर कहाँ से आएगा
मैच शुरू होने का
वो इंतज़ार ही कुछ और था
ऐ मेरे दोस्त
तेरे मेरे साथ का वो दौर ही कुछ और था|
आज बस कुछ करना ही है
ये मैच जीतना ही है
पिछली बार धोखे से हराया था
उस नए बॉलर का मुंह तो पीटना ही है
सिगरेट के कश लगाते लगाते
वो मैच की प्लानिंग करने का मज़ा ही कुछ और था
ऐ मेरे दोस्त
तेरे मेरे साथ का वो दौर ही कुछ और था|
कितना रुकने को बोला था
कैच दे के आ गया
कितना समझा के भेजा था
फिर वैसे ही बल्ला घुमा के आ गया
तुझे गालियों से समझाने का
मेरा वो अंदाज ही कुछ और था
ऐ मेरे दोस्त
तेरे मेरे साथ का वो दौर ही कुछ और था|
कितने सारे रन बनाने हैं
और विकेट भी बस एक ही है
उधर बोलर्स कितने हैं
और इधर बल्लेबाज़ एक ही है
फिर भी ये मैच जीतना है
तेरा मेरा वो हौसला ही कुछ और था
ऐ मेरे दोस्त
तेरे मेरे साथ का वो दौर ही कुछ और था|
सारे फील्डर्स बॉउंड्री पे लगाये हैं
बॉल बाहर कैसे जाएगी
ज़मीं से तो मुश्किल है
तो हवा में ही उछाली जाएगी
डरते हुए छक्का लगाने का
मेरा वो इरादा ही कुछ और था
ऐ मेरे दोस्त
तेरे मेरे साथ का वो दौर ही कुछ और था|
बस दो और रन बनाने हैं
क्रीज़ पे रुक जाना
जैसे ही बॉल आये
हिट करके भाग जाना
कहीं आउट न हो जाऊं मैं
तेरी उन दुआओं का वो ज़ोर ही कुछ और था
ऐ मेरे दोस्त
तेरे मेरे साथ का वो दौर ही कुछ और था|
ख़ुशी से बैट लहराया मैंने
और ख़ुशी से हाथ उठाये तूने
मैंने तुझको और
मुझे गले से लगाया तूने
अपने दम पे मैच जीता दिया मेरे भाई
तेरे उन बोलों मैं अपने-पन का एहसास ही कुछ और था
ऐ मेरे दोस्त
तेरे मेरे साथ का वो दौर ही कुछ और था|
Great Poem Manish. Keep It Up.
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