“वो रस्ता भी अब वीरान है”

कह के मुझसे तू गया था
कि लौटेगा कभी
बाद जाने के तेरे
आया न नज़र मुझको
तेरा साया भी कभी..

कितनी आरज़ू थी मुझे
एक नज़र देखने की तुझे
कि तेरी याद में खिड़की से नज़र हटाई नहीं कभी
तू नहीं तो तेरी खबर लेके
कोई तो आएगा कभी..

न याद होगा तुझे
किस कदर शहर की गलियों में भागता था मैं
कि तेरी एक झलक मिल जाये कभी
न याद होगा तुझे
कितनी मुश्किलों से, कितनी दुआओं के बाद
तेरे दिल में अपनी एक जगह बनाई थी कभी..

पर अब सिला ये है
कि अपनी मुहब्बत के दिन तू भूला है सभी
वो रस्ता भी अब वीरान है
जिसपे मेरे “हमकदम”
मेरे साथ चला था तू कभी
कि वो रस्ता भी अब वीरान है
जिसपे मेरे “हमसफर”
मेरे साथ चला था तू कभी..

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