करे कोशिशें कोई हज़ार
हो अड़चनें चाहे अपार
रोके न जो रुक पायेगा
बांधे न जो बंध पायेगा
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..
बादल को बरस जाना ही है
बिजली को चमक जाना ही है
हो शेर भले पिंजरे में बंद
पर उसको गरज आना ही है..
आदत में उसकी है नहीं
वो चुप तो न रह पायेगा..
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..
शब् जाती है शब् जाएगी
सहर आती है वो आएगी
हो घाम कितनी तेज़ ही
पर शाम न रुक पायेगी
बन्दे में वो ताक़त कहाँ
कुदरत को बदल जो पायेगा..
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..
बाहों में न आये गगन
रूकती कहाँ है ये पवन
बंध के जहाँ में जो रहे
ना मुदित है ना है वो मगन
जो पानी है जो रेत है
मुट्ठी से फिसल ही जायेगा..
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..
कदम ना उसको रुकने दें
जिसके मन में आशाएं हों
स्वप्न ना उसको सोने दें
यदि आतुर अभिलाषाएं हों
नदिया सा जिसको बहना है
वो ताल तो ना बन पायेगा..
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..
रोके न जो रुक पायेगा
बांधे न जो बंध पायेगा
परिंदा है उड़ जायेगा
वो दरिया है बह जायेगा..
-मंजुसुत इशांश