स्याही के नीले रंग से
काग़ज़ को रंगने को,
शब्दों के मोती की माला
फिर एक बार पिरोने को,
आशा की नज़रों से
मुझे तकती जाती है,,
मेरी कलम बुलाती है|
आवाज़ लगाती है||
कल्पना के सिंधु से
कुछ मोती चुन लाना,
फिर मेरी स्याही के रंग से
कागज़ पे सजा जाना,
उन्हें लिखते सजते देखने की
आरज़ु सुनती है,,
मेरी कलम बुलाती है|
आवाज़ लगाती है||
मैं तो शब्दों की प्यासी
वो मेरे शहज़ादे हैं,
मैं सागर में सिमटी मदिरा
और वो मेरे प्याले हैं,
इस सागर से प्याले भरकर
कोई ग्रन्थ नया लिख दो,
लेखों की वह साम्राज्ञी
निवेदिता बन जाती है,,
मेरी कलम बुलाती है|
आवाज़ लगाती है||
शब्द चाँद सितारे बनकर
कागज़ पे चमक जायेंगे,
उन्हें अनंत समय पढ़ पढ़कर
दनुज देव भी खिल जायेंगे,
हर शब्द नया हो अर्थ नया
कोई छंद नया लिख दो,
कर कमलों में अक्षर पुष्प लिए
अर्पिता बन जाती है,,
मेरी कलम बुलाती है|
आवाज़ लगाती है||
जैसे ही हाथ में लूँ
वो आनंदित हो जाये,
चिंतन के होठों से छू लूँ
तो शरमा सी वो जाये,
जो काग़ज़ पे रख दूँ
कोयल सी चहकती है,
और जो पहला शब्द लिखूं
वो पगली मदमाती है,
शब्दों के आँचल में छुप के
रोती कभी हंसाती है,,
मेरी कलम बुलाती है|
आवाज़ लगाती है||
अब रुको नहीं बस चले चलो
विश्राम बिना तुम चले चलो,
अभिलाषाएं पागल मन की
बस गढ़े चलो, तुम लिखे चलो,,
है कसम तुम्हें रुक न जाना
मुझे तृप्त किये बिन न जाना,
उड़ेल दो मेरी स्याही सब
रुक न जाना, तुम न जाना,,
मेरे नीले रक्त का हर क़तरा
जब इस कागज़ पे रंग जाये,
तभी तुम्हें आराम मिले
तभी तुम्हें कुछ चैन आये,,
कुछ लिख जाने का ऐसा उन्माद
मुझमें वो जगाती है,,
मेरी कलम बुलाती है|
आवाज़ लगाती है||
आशा की नज़रों से
मुझे तकती जाती है,,
मेरी कलम बुलाती है|
आवाज़ लगाती है||
-ईशांश