पूर्णिमा का चाँद

चांदनी से आज नहा के
श्रृंगार स्वर्ग से करा के,
अम्बर में फिर निकला है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

स्वर्ग आलोक को तज कर
अब काम रति विचरे हैं,
कहें क्या आनंद मिला है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

कभी सिंधु को चमकाता
श्वेत रंग धरा पे छिडकाता,
सबका मन ललचाता है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

क्या मधुर समय आया है
हर कोई हर्षाया है,
क्या समां और निखरा है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

कभी बदली से नज़र चुराता
कभी पीछे उसके पड़ जाता,
अठखेलियां करता है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

सब सितारे जलते बुझते
ये चांदनी हमें मिल जाती,
उससे हर कोई जलता है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

चित्तशांत सी कोई कोयल
उसे देख चहक जाती है,
स्वर गीत नया निकला है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

सब सोये फूल जगे हैं
उमंगों में बिखरे है,
बग़िया का आँचल फैला है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

हर पत्ता लहराता है
हर डाली लहराती है,
चहुँ ओर उन्माद भरा है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

चंदा का हाथ पकड़कर
ये रात्रि कैसे घूमे
आज प्रेम से प्रेम मिला है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

श्वेत रात्रि आस लगाए
ओ चंदा तुम रुक जाना,
फिर मन मेरा मचला है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

वो चंदा बोले सुनो निशि
प्रेम क्षण में न तुम शोक करो,
ये तो मिलन वेला है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

मैं तो फिर से आऊंगा
फिर तुम से मिल जाऊंगा
थोड़ा विरहन अच्छा है
आज पूर्णिमा का चाँद खिला है..

मंजुसुत ईशांश

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