काश कि ये ज़िन्दगी उस सपने जैसी हो जाती

काश कि ये ज़िन्दगी उस सपने जैसी हो जाती,
हर रोज़ सुकून से मैं तेरे पास बैठ पाता,
और हर रोज़ तू मुझे जी भर देख पाती |
काश कि ये ज़िन्दगी उस सपने जैसी हो जाती ||

वो नदी किनारे एक छोटा प्यारा घर है,
चकाचौंध का शोर नहीं,
एक दिया रौशनी भर है,
दीवार पर महंगी सजावटें नहीं हैं,
पर तेरी बनाई कुछ तस्वीरें वहां टंगी हैं|
एक कोने में घड़ा रखा है,
एक कोने में है रसोई,
एक कोने मेरी कुछ किताबें हैं,
और एक कोने में बिछी है चटाई,
उस चटाई पे साथ बैठे
अपनी कुछ बातें हो पाती
काश कि ये ज़िन्दगी उस सपने जैसी हो जाती|

वहां हर सुबह तेरे खिलखिलाने की आवाज़ आती है,
मुझे हर पल तू अपने पास नज़र आती है,
मेरे सारे डर सारी चिंताएं तू छीन लेती है,
मुझे छू के बिन कहे सब कह देती है|
मेरा हाथ पकड़ फिर तू कहीं चल देती है,
कुछ दूर चल के मुझे रोक गले लगा लेती है,
और फिर मेरे कानों में वो प्यारे तीन शब्द कह देती है,
काश कि मेरी सांसें
उन पलों की गवाह हो पाती
काश कि ये ज़िन्दगी उस सपने जैसी हो जाती|

वहां पास के बाजार में एक धुन रोज़ बजती है,
अपनी हर शाम की कुछ घड़ियाँ वहीँ गुज़रती हैं,
कभी इस दुकान, कभी उस दुकान तू मुझे ले जाती है,
थोड़ा थका के फिर घर वापस ले आती है,
कभी खीर कभी सेवइयां तू मुझे खिलाती है,
चीनी से नहीं अपने प्यार से मीठा बनाती है,
फिर घर की छत पे तू ले चलती है,
और पुराना एक गीत रोज़ गुनगुनाती है,
हर रात नींद में वही गीत मैं दोहराता हूँ,
और सोचता हूँ कि
तारों की छांव में कुछ रातें मेरी ऐसे सो पाती
काश कि ये ज़िन्दगी उस सपने जैसी हो जाती|

 

 

One thought on “काश कि ये ज़िन्दगी उस सपने जैसी हो जाती”

  1. अत्यंत सुन्दर विवरण करा गया है, जीवन के आपाधापी में ये सब कहीं पीछे छूट सा गया लगता हैं।

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