ख्वाहिशों की डोर से
सपनों की पतंगें उड़ा लेता हूँ,
कभी हलके, कभी कसे
अपनी मेहनत के कन्ने बांध लेता हूँ ||
मेरे पास सपनों की
कई रंग बिरंगी पतंगें हैं
कुछ सस्ती कुछ महँगी
कुछ छोटी कुछ बड़ी पतंगें हैं
इस जहाँ में उनकी कोई दुकान नहीं
तो अपने ही मन से उन्हें खरीद लेता हूँ |
कभी हलके, कभी कसे
अपनी मेहनत के कन्ने बांध लेता हूँ ||
एक सपने की पतंग
कभी सुबह उडाता हूँ,
तो दूसरे सपने की पतंग
शाम को लहराता हूँ
रात नींद की बाँहों में
ये सारी पतंगें सहेज लेता हूँ |
कभी हलके, कभी कसे
अपनी मेहनत के कन्ने बांध लेता हूँ ||
वक़्त की ये हवा
जब धीमी सी बहती है,
मेरी कोई एक पतंग
कभी उड़ती कभी गिरती है
उम्मीद की थपकी से
उसे थोड़ा-थोड़ा बढ़ा लेता हूँ |
कभी हलके, कभी कसे
अपनी मेहनत के कन्ने बांध लेता हूँ ||
आकांक्षाओं के आकाश में
अनगिनत ऐसी पतंगें उड़ती होंगी
कुछ साथ-साथ बढ़ती
तो कुछ साथ-साथ कटती होंगीं
मेरी भी पतंग कहीं कट के गिर न जाये
कभी दाएं कभी बाएं
एक तेज़ खेंच से उसे बचा लेता हूँ |
कभी हलके, कभी कसे
अपनी मेहनत के कन्ने बांध लेता हूँ ||
ख्वाहिशों की डोर से
सपनों की पतंगें उड़ा लेता हूँ,
कभी हलके, कभी कसे
अपनी मेहनत के कन्ने बांध लेता हूँ ||
बहुत खूब बहुत ही अच्छा अभिव्यक्ति है।
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