सबसे बड़ा आश्चर्य

काम ख़त्म होने का साइरन बजा | कांतिलाल ने अपने चेहरे का पसीना पोंछा | वो दिल्ली में जहाँ मज़दूरी करता था वहां एक बड़ा सा मॉल बनने वाला था| आज उसके चेहरे पर रोज़ाना की तरह शिकन नहीं थी बल्कि थोड़ा सुकून और राहत थी | आज शनिवार था | आज उसे पूरे हफ्ते का मेहनताना मिलने वाला था और अगले दिन छुट्टी थी| कांतिलाल को और मज़दूरों के साथ साथ दिन की 150 रूपये मज़दूरी मिलती थी तो पूरे हफ्ते के 6 दिन के हिसाब से 900 रुपये मिलने वाले थे | लाइन में खड़ा खड़ा मन ही मन वो सोचे जा रहा था “पांच किलो तो आटा ले लूंगा, दो लीटर तेल, चूल्हे के लिए कुछ किलो लकड़ियाँ भी आ जाएँगी, चाय-मसाले मुन्नों कि माँ खुदही ले लेगी, मुझे तो याद नहीं रहते, और इस सब के बाद शायद कुछ करीब करीब 500 रुपये तो बच ही जायेंगे, वो मैं मुन्नों की मम्मी को दे दूंगा, खुश हो जाएगी वो, हफ्ते का एक ही तो दिन होता है जिसकी वो आस लगाये रहती है कि कुछ रुपये मैं उसके हाथ में रखूँगा| अरे लेकिन बिट्टू ने भी तो कुछ स्कूल का सामान मंगाया है| रोज़ मुझसे कहता है, बापू आज कापी- पेन्सिल लाना मत भूलना वरना टीचर कल फिर स्कूल में मुझे सबके सामने डांटेगी | आज तो कापी पेन्सिल मैं ले ही जाऊंगा..” इन सब ख्यालों में उसे बीच में किसी की आवाज़ सुनाई दी- “क्यों भाई, आज पैसे नहीं चाहिए क्या, नहीं चाहिए तो मैं ही रख लेता हूँ”| यादराम जी सबकी मज़दूरी दे रहे थे | बड़े मज़ाकिया किस्म के भले इंसान थे | कांतिलाल ने झेंपते हुए कहा- “अरे नहीं नहीं मालिक, पैसे नहीं मिलेंगे तो पेट की आग कैसे बुझेगी, पेट की आग न बुझेगी तो कन्धों में जान कैसे आएगी और अगर कन्धों में जान न आई तो आपका ये मॉल कैसे खड़ा होगा, बताइये?” कांति ने भी यादराम से ज़रा सी चुटकी ले ली |
यादराम – “अरे कांति रे, आज कल तो तू भी बातें बनाने लगा है, चल छोड़, ये ले पूरे 920 रूपये और जल्दी घर जा | भाभी और बच्चे तेरा इंतज़ार कर रहे होंगे|”
कांतिलाल- “हाँ हाँ जाता हूँ जाता हूँ लेकिन ये बीस रुपये ज्यादा क्यों?”
यादराम- “अरे आज मॉल के चार मालिकों में से किसी एक कि बिटिया का जन्मदिन है, तो उसी ख़ुशी में सब मज़दूरों को २० रूपये ज्यादा मज़दूरी देने को कहा है|”
कांतिलाल- “चलो अच्छा है, ठीक है यादराम जी, धन्यवाद, अब सोमवार को मिलते हैं | राम राम |”

कांतिलाल घर की तरफ चल दिया| रास्ते से उसने सारा राशन ख़रीदा | बिट्टू के लिए कापी-पेन्सिल भी ले लीं | जैसे ही घर पहुंचा और घर के अंदर कदम रखा तो नज़ारा ही कुछ और था | आश्चर्यचकित होते हुए उसने कहा- “अरे मुन्नों की माँ, आज इतनी सजावट किसलिए भई?”
कुमकुम- “मुझे पता था कि आज आप फिर भूल जाओगे | मुन्नों कितनी गुस्सा है, पता है? आज मनाने से भी न मनेगी | मैं तो समझा समझा के थक गयी कि बेटा तेरे बापू काम के चक्कर में सभी कुछ भूल जाते हैं | गुस्सा नहीं करते पर हर बार यही कहती है कि बापू मुझे अब प्यार नहीं करते | पहले तो कभी मेरा जन्मदिन नहीं भूलते थे लेकिन पिछले दो सालों से लगातार भूले जा रहे है| ”
कांतिलाल के माथे पे बल पड़ गए और कुमकुम के पास जा के धीरे से बोला- “क्या? आज मुन्नों का जन्मदिन है और तुमने मुझे बताया भी नहीं?” ये कहकर उसने बचे हुए रूपये कुमकुम के हाथ में रख दिए | कुमकुम- “अरे तुम्हारे जाने के बाद मुझे याद आया कि तुम्हें याद दिलाना था पर आज सवेरे तुम जल्दी निकल गए, मैं क्या करती? अब जा के मना लो अपनी बिटिया को | ”

कांति किराये के मकान में रहता था | मकानमालिक ने उसे दो कमरे ८०० रुपये महीने के किराये पे दिए थे | कांति अंदर वाले कमरे में गया और पीछे से मुन्नों के कान खींचकर उसे एक नेल पोलिश देते हुए बोला – “जन्मदिन मुबारक मेरी बिटिया |” मुन्नों का चेहरा मानो गुलाब के ताज़े फूल सा खिल गया और बोली- “बापू इस बार तुम भूले नहीं, मुझे लगा अब आप मुझे प्यार नहीं करते | इसलिए आज के दिन सवेरे बिना मुझे मिले चले गए | ”
कांति- “सच बताऊँ बेटा, मुझे कल रत सोते समय याद था लेकिन सुबह पता नहीं काम के ध्यान में मैं तेरा जन्मदिन ही भूल गया | पर दिन में मुझे फिर याद आ गया तो मैं तेरे लिए ये नेल पोलिश ले आया | तू कई दिनों से अपनी माँ से कह रही थी ना | मुझे सब पता है | लेकिन अब तू मुझसे नाराज़ तो नहीं है ना?” मुन्नों ने कांति को गले से लगा के कहा- “नहीं बापू मैं अब बिलकुल भी नाराज़ नहीं हूँ | मैं अपनी ये नेल पोलिश नेहा को दिखा के आऊँ?” कांति ने मुन्नों के सर पे हाथ फेर के कहा- “जा लेकिन जल्दी आ जाना |”

कांति ने हाथ मुंह धोये और चारपाई पे लेट गया | कुमकुम उसके पास आ के बैठ गई और बोली – “अब क्या सोच रहे हो ?” कांति- “कुमकुम, एक बात बता..” कुमकुम बीच में ही बोली – “यही ना कि तुमने मुन्नों कि पढाई छुड़वा कर अच्छा किया कि नहीं? रोज़ रोज़ एक ही बात क्यों सोचते रहते हो?” कांति – “हाँ लेकिन मैं क्या करता ? जब तक बिट्टू पढ़ने लायक नहीं हुआ था तब तक तो मैंने मुन्नों कि पढाई का खर्च उठा लिया लेकिन जब बिट्टू के पढ़ने लिखने की उम्र आ गई तो मैं या तो बिट्टू को पढ़ा सकता था या कि मुन्नों को | मुन्नों तो एक दिन शादी करके पराई हो जाएगी | बिट्टू तो हमारे पास ही रहेगा सो ये सोचकर मैंने मुन्नों कि पढाई रुकवा दी लेकिन मेरा यकीन कर कुमकुम, मैं जब भी मुन्नों का चेहरा देखता हूँ मुझे खुद पे गुस्सा आने लगता है | वो हर क्लास मैं फर्स्ट आई थी | अगर मैं उसे पढ़ा पता तो तो तू देखती, वो कुछ बन के दिखाती | बचपन में माँ बाबू जी कि बात मान कर पढ़ लिख लिया होता तो आज मेरे बच्चों को ये दिन ना देखने पढ़ते | तू सच बता तू भी तो इस बात पे मुझसे गुस्सा होगी?” कुमकुम- “नहीं जी, मैं देखती नहीं हूँ क्या | आप से जितना बन सकता है आप उतना करते हो हम सब के लिए | आप बिन बात ही परेशान हुए जाते हो | और फिर मुन्नों के ब्याह के लिए भी तो पैसे जोड़ने हैं | मान लो अगर उसे पढ़ा भी ले तो उसके ब्याह के लिए रकम कहाँ से जोड़ेंगे?” कांति ने भी हाँ में अपना सर हिला दिया और पूछा- “अच्छा ये बता बिट्टू दिखाई नहीं देता, अभी भी खेल के वापस नहीं आया क्या?” कुमकुम- “नहीं नहीं वो तो कब का घर आ गया था | स्कूल का सारा काम भी कर लिया | बस अभी उसे केक लेने भेजा है, आता ही होगा | ” कांति- “केक? वो तो 200 -300 से कम का नहीं आएगा| फिर तुमने फ़िज़ूल खर्ची शुरू कर दी? ” कुमकुम- “अरे सुनो तो, आपके बचाये हुए रुपयों में से नहीं लिए हैं | वो मैं रोज़ दो रूपये बच्चों के नाम के निकाल के अपने पास बचा लेती हूँ, उन्ही में से दिए हैं |” कांति बोला- “फिर ठीक है, अच्छा ये बता कभी मेरे नाम के भी कुछ रुपये बचाये हैं कि नहीं?” कुमकुम शरमा के चल दी | इतने में बिट्टू भी केक ले के आ गया | सब लोग खाना खा के और केक खा के सोने चले गए|

इसी सब में दिन गुज़रने लगे | मुन्नों भी बड़ी होने लगी | कांति ने कुछ हज़ार रूपये बचा तो लिए थे पर उसकी शादी के लिए वे काफी ना थे | रिश्ते वाले आते थे और मुन्नों सबको पसंद भी आती थी लेकिन बात पैसों पे आके रुक जाती थी | क्यूंकि मुन्नों सुन्दर और सुशील थी, घर के सभी कामों में निपुण थी तो लड़के वाले कम से कम इतनी मांग तो करते थे कि कांति उनकी पूरी दावत का खर्च उठा सके | कांति की भी अब उम्र हो चली थी | बिट्टू की पढाई होने में और नौकरी लगने में अभी चार पांच साल का समय था | कांति अब हफ्ते मैं तीन चार दिन ही काम पे जा पता था | कुमकुम ने भी घर पे सिलाई कढ़ाई का काम शुरू कर दिया था लेकिन उससे भी कुछ ज्यादा रूपये नहीं मिल पाते थे कि मुन्नों के ब्याह के लिए पूरे पढ़ पाएं |

मुन्नों माँ बापू की चिंता देख के परेशान हो जाती थी | घर में बड़ी होने के कारण वो घर के लिए अपनी ज़िम्मेदारी समझती थी | उसने कई बार माँ बापू को उसकी पढ़ाई के बारे में बातें करते सुना था | बिट्टू की पढाई और उसकी शादी की चिंता कि वजह से नौवीं क्लास के बाद मुन्नों को पढाई छोड़नी पढ़ी थी | वो अच्छे से ये बात समझती थी और इस वजह से उसने कभी भी माँ बापू से अपनी पढ़ाई को लेके कोई शिकायत नहीं की | बल्कि खुद से उसने एक एन. जी. ओ. की मदद से अपनी पढ़ाई जारी रखी और कभी भी माँ बापू को ये नहीं बताया कि उसने बारहवीं पास कर ली थी और अब बैंक के एग्जाम की तैयारी कर रही थी जिससे कि माँ बापू के आत्म सम्मान को ठेस ना पहुंचे | उसने सोच रखा था कि वो अपनी पढाई के बारे में घर में तब ही बताएगी जब उसकी नौकरी लग जाएगी | उस दिन का मुन्नों को बेसब्री से इंतज़ार था जब वो अपने घर की कुछ ज़िम्मेदारियाँ अपने सर पे ले पायेगी | पिछले साल बस कुछ ही नम्बरों से वो रह गई थी लेकिन इस बार उसे पूरा विश्वास था कि वो पास हो जाएगी और जल्द ही किसी सरकारी बैंक में उसे नौकरी मिल जाएगी | एक महीने बाद रिजल्ट आने वाला था और एक एक दिन मुन्नों का मुश्किल से कट रहा था | आखिर रिजल्ट आ गया और मुन्नों का नंबर भी | वो खुश भी बहुत थी और थोड़ी परेशान भी कि घर में जब ये बताएगी तो माँ बापू कैसी प्रतिक्रिया देंगे? वे खुश तो होंगे लेकिन कहीं फिर से सोचने तो नहीं लगेंगे कि उन्होंने मेरे साथ गलत किया है ? कहीं मैं फिर से उनके आत्म सम्मान को चोट तो नहीं पहुंचा दूंगी ? दो दिन निकल गए थे और मुन्नों ने इतनी ख़ुशी की बात छुपाये रखी थी | आख़िरकार मुन्नों ने माँ बापू को बताने का फैसला किया और शाम को जब कांति घर आया तो माँ बापू को एक पास बुला के बोली- “बापू, तुमसे एक बात कहनी है, गुस्सा तो नहीं करोगे ?” कांति ने आश्चर्य से मुन्नों कि तरफ देखा और कहा- “क्यों क्या हुआ बेटा ?” मुन्नों ने कहा- “बापू मेरा बैंक में नंबर आ गया है और दो हफ्ते बाद मुझे बैंक में ट्रेनिंग के लिए जाना है | ” कांति और कुमकुम ने एक दूसरे की तरफ आश्चर्य से देखा | कुमकुम बोली- “मतलब ?” कांति ने भी पूछा – “बेटा लेकिन उसके लिए तो बारहवीं या उसके आगे की क्लास पास करनी पढ़ती है ना और तूने तो बस नौवीं पास की है?” मुन्नों ने थोड़ा सहम कर कहा- “हाँ बापू, मैंने आप दोनों को बताया नहीं | बारहवीं तो मैंने दो साल पहले ही पास कर ली थी और दो साल से मैं बैंक कि तैयारी में लगी थी पर अब मेरा नंबर आ गया है और दो हफ्ते बाद जॉइन करना है | ” कांति और कुमकुम के पास शब्द नहीं थे | मुन्नों फिर बोली – “पता है बापू, पूरे 14000 वेतन मिलेगा | ” ये सुनकर तो कांति और कुमकुम के पैरों के नीचे से ज़मीं ही निकल गई | दोनों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उनके जीवन में ऐसा भी एक पल आ सकता है | दोनों के मुंह से बस एक ही शब्द निकला – “14000 , तू सच कह रही है क्या ?” मुन्नों बोली- “हाँ माँ बापू मैं सच कह रही हूँ | ” और उसने अपना जोइनिंग लेटर भी ला के दिखाया | कांति और कुमकुम को और कुछ तो समझ नहीं आया लेकिन उस कागज़ पे 14 के आगे लगे तीन जीरो समझ आ गए | उनके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे और आँखों से आंसू नहीं रुक रहे थे | उनकी बिटिया ने उनके जीवन का सबसे बड़ा आश्चर्य जो उन्हें दिया था | कांति और कुमकुम ने मुन्नों को गले लगा लिया | कांति को अचानक से उसे वो दिन याद आ गया जब मुन्नों पैदा हुई थी | कांति के माँ बाप तो पोता चाहते थे लेकिन लड़की पैदा होने पे कांति उतना ही खुश था जितना वो लड़के के पैदा होने पे खुश होता | उसने अपने माँ बाप से कहा था- “आप लोग देखना मेरी बिटिया जीवन में कुछ बन के दिखाएगी | कुछ कर के दिखाएगी | ” उसने छत की तरफ देखा और उसे लगा जैसे उसके स्वर्गीय माता पिता कह रहे हों- “बेटा तूने सच ही कहा था | देख आज हमारी मुन्नों ने कुछ बन के दिखा दिया |”

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