“जीवन की सीख”

प्रशांत रोज़ की तरह सुबह जल्दी नहा धो कर, नाश्ता करके स्कूल के लिए निकल गया| घडी में सवा सात बज चूका था| आज वो लेट हो गया था| स्कूल था तो ८ बजे का लेकिन प्रशांत को एक घण्टा पहले निकालना पढता था| साइकिल से स्कूल पहुँचने में उसे करीब १ घंटा लग जाता था| “भाई आज तो लेट हो गया, लगता है आज दीपक सर क्लास में घुसने नहीं देंगे| एक तो वैसे भी मुश्किल से एक ही क्लास लगती है| वो भी सुबह सुबह|” प्रशांत मन ही मन बड़बड़ाता हुआ साइकिल तेज़ चला रहा था| उत्तर प्रदेश में नवम्बर के महीने में सुबह शाम की अच्छी खासी ठण्ड हो जाती है पर साइकिल तेज़ चलते हुए प्रशांत के पसीने छूट रहे थे|

प्रशांत उत्तर प्रदेश के एक जिले के सरकारी इंटर कॉलेज में ग्यारह वीं क्लास में पढता था| उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों की हालत सरकारी विभागों और सरकारी अस्पतालों जैसी ही थी| सरकारी विभागों में कर्मचारी नहीं आते थे, सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर नहीं आते थे और सरकारी स्कूलों में शिक्षक| उसके स्कूल की हालत भी वैसी ही थी| क्लास में पंखे तो थे पर बिजली कहाँ आती थी| दीवारों में खिड़कियां तो थीं पर उनमे शीशे कहाँ होते थे| बच्चों का गर्मी और सर्दी, दोनों में ही बुरा हल होता था| फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी की लैब में प्रैक्टिकल करने से पहले बच्चे इस बात से डरते थी कि कही कुछ टूट गया तो फाइन देना पड़ेगा, डांट पड़ेगी वो अलग| उन लैब्स में पता नहीं कितने साल पुराने उपकरणों से काम चलाया जा रहा था| बच्चे किसी टीचर से सवाल पूछने से डरते थे कि अगर कोई सवाल पूछ लिया, तो टीचर उससे पहले का सवाल पूछ लेगा और अगर नहीं बताया तो मुर्गा बना देगा| और बाद में जाते हुए कह के जाता था की कुछ पढ़ ले वार्ना पास नहीं होगा| इसलिए घर आ जाना| इस बात का मतलब होता था- घर ट्यूशन पढ़ने आ जाना| प्रशांत की क्लास के आधे से ज्यादा बच्चों ने मैथ्स के मास्टर साहब से ट्यूशन लगा रखा था| इसलिए नहीं कि, उन्हें मैथ्स पढ़ना था, पर इसलिए कि उन्हें मैथ्स में पास होना था| प्रशांत ये जनता था कि मास्टर साहेब से ट्यूशन पढ़के ग्यारहवीं तो पास हो जाएगी लेकिन बारहवीं के बोर्ड के एग्जाम में बिना कुछ पढ़े पास नहीं हो पायेगा| इसलिए प्रशांत ने अपने जिले के कुछ मशहूर ट्युटर्स से मैथ्स के और फिजिक्स के ट्यूशन्स लगा लिए थे| दीपक सर स्कूल में ही केमिस्ट्री अच्छी पढ़ा दिया करते थे तो उसने केमिस्ट्री का ट्यूशन लगाने की ज़रुरत नहीं समझी| घर के आर्थिक हालात ठीक न होने कि वजह से प्रशांत जहाँ तक हो सके अपना खर्चा बचने की कोशिश करता था| दीपक सर का केमिस्ट्री का पहला ही लेक्चर होता था जिसे प्रशांत कभी मिस नहीं करता था| और इसी वजह से तेज़ साइकिल चला कर वो टाइम पे क्लास में पहुंचना चाहता था|

प्रशांत १० मिनट की देरी से क्लास में पहुंचा| दीपक सर को पता था कि प्रशांत एक होनहार और मेहनती स्टूडेंट है तो उन्होंने उसे क्लास में आने से मन नहीं किया| क्लास खत्म होने के बाद प्रशांत ट्यूशन के लिए जैसे ही निकलने लगा, एक छोटे से कद के लड़के ने आके उसे रोक लिया| “कहाँ जा रहा है भाई. आज तो तेरी दावत है|” प्रशांत ने आश्चर्य से उस लड़के की तरफ देखा और कहा- “मतलब”|
छोटे से कद के लड़के ने कहा- “मतलब तो तुझे अभी पता चल जायेगा| बस क्लास से अभी बहार मत जाना|” ये कहकर वो लड़का क्लास से बाहर चला गया| तभी प्रशांत ने क्लास में अखिलेश और अनुज को आते हुए देखा| वो दोनों भी थोड़े डरे हुए थे| प्रशांत ने अखिलेश से पूछा- “क्या हुआ भाई तू डरा हुआ क्यों है| तुझे पता है ये लड़का जो अभी बहार गया है, मुझसे बोला कि तेरी दावत है और क्लास से आज बहार मत जाना|” अखिलेश ने अनुज कि तरफ देखते हुए बोला- “बेटा आज तेरी रैगिंग है|”

प्रशांत के स्कूल में कुछ लड़के थे जो गुंडा गर्दी करते थे| उनके ग्रुप में आठवीं से लेके बारहवीं तक के ज्यादातर फेल हो जाने वाले लड़के थे| प्रशांत ने ये तक सुना था कि उन्होंने स्कूल के बाहर जो पुल जाता था, वहां एक टीचर पे कम्बल गिरा के उसे बहुत पीटा था| ये लड़के किसी भी लड़के को रैगिंग के लिए पकड़ लेते थे और उनमें होड़ लगती थी कि कौन आज ज्यादा ज़ोर से थप्पड़ मरेगा| प्रशांत डर गया| लेकिन उसका माथा ठनक रहा था कि अचानक आज उसे ही क्यों पकड़ लिया| प्रशांत को उसके साथ के कुछ लड़कों ने बताया था कि जो लड़के स्कूल में ज्यादा स्टाइल मारते हैं, या हीरोगिरी करते फिरते हैं, वो गुंडे लड़के जयादातर उन्हीं की रैगिंग करते हैं| प्रशांत ने सोचा कि मैं तो ऐसा कुछ नहीं करता, तो फिर क्या वजह हो सकती है? प्रशांत घबराने लगा| उसे रैगिंग के नाम से ही डर लगता था| प्रशांत मन ही मन सोच रहा था कि पता नहीं आज क्या होगा, कितनी मार खाऊंगा, स्कूल में कितनी हंसी बनेगी| प्रशांत मन ही मन ये सब सोच रहा था कि वो छोटे कद का लड़का अपने ही जैसे कद के लड़के के साथ क्लास में आया और प्रशांत से बोला- “चल जा बाहर से स्वीटी सुपारी ले के आ|” अखिलेश ने धीरे से बोला- “चल भाई, जैसा ये कहते हैं, वैसा कर|” स्कूल के बाहर ही एक पंसारी की दुकान थी| प्रशांत और अखिलेश वहां से सुपारी ले रहे थे कि प्रशांत बोला- “यार मैं भाग जाऊं क्या?” अखिलेश ने कहा-“अबे पागल हो गया है क्या, आज के बाद कभी स्कूल नहीं आना क्या, अगर नहीं तो भाग जा लेकिन अगर स्कूल अाना है तो वही करना पड़ेगा जैसा ये लोग बोल रहे हैं, आगे तेरी मर्ज़ी|” प्रशांत को अखिलेश की बातें सही लगीं| अखिलेश फिर बोला-“तू क्लास में जा, मैं एक बार जा के सुनहरी लाल से मिल के आता हूँ| जो लड़का तेरी रैगिंग लेने को आया है, वो सुनहरी लाल का मौसेरा भाई है| मैं जा के एक बार उसी से बात करता हूँ|” ये कहकर अखिलेश सुनहरी लाल को ढूंढने चला गया और प्रशांत डरते हुए क्लास में पहुंचा| उसने सुपारी देते हुए कहा- “भाई अगर मुझसे कोई गलती हुई है तो मुझे माफ़ करो|” छोटे कद के लड़के ने कहा-“बेटा आज तो तू गया| आज के बाद तू किसी की हंसी नहीं बनाएगा|”
प्रशांत आश्चर्यचकित होते हुए बोला- “लेकिन मैंने तो किसी की हंसी नहीं बनाई|” छोटे कद के लड़के ने कहा- “याद कर, आज या कल मैं तूने किसी की हंसी नहीं बनाई? खैर, अभी भैया लोग स्कूल अाये नहीं हैं, एक बार उनको आ जाने दे, फिर तेरी दावत शुरू करते हैं|”

प्रशांत के चेहरे पे हवाइयां उड़ रहीं थी| उसे समझ नहीं आ रहा था की क्या करे| भाग भी नहीं सकता था| बस वो अखिलेश का इंतज़ार कर रहा था कि शायद वो सुनहरी लाल को बुला के ले आये और समझौता करा दे| प्रशांत का इंतज़ार ख़त्म हुआ और अखिलेश जल्दी जल्दी चलता हुआ आया और प्रशांत के कान में धीरे से बोला- “कल तेरी सुनहरी लाल से कोई बात हुई थी क्या?”
प्रशांत (धीरे से)- “नहीं तो. बस कल नल पे पानी पीते हुए मिला था. क्यों?”
अखिलेश (प्रशांत के कान में)- “मुझे गौरव मिला था| बोल रहा था कि तूने सुनहरी लाल से कुछ ऐसा कहा कि वो नाराज़ हो गया| उसी ने अपने भाई को तुझे मरने को भेजा है|”
प्रशांत-“भाई मैंने तो कुछ भी नहीं कहा उसे| वो आज स्कूल आया है क्या?”
अखिलेश- “नहीं, अभी तक तो मुझे नहीं दिखा| तू यहीं ठहर मैं एक बार फिर से उसे देख के आता हूँ|” ये कहकर अखिलेश सुनहरी लाल को देखने चला गया|

प्रशांत ने मुड़कर उस छोटे कद के लड़के की तरफ देखा और पूछा- “तुम सुनहरी लाल के छोटे भाई हो? मैं और सुनहरी लाल विद्या मंदिर में दसवीं क्लास तक साथ साथ पढ़े हैं|” छोटे कद के लड़के ने कहा- “मुझे पता है| उसी ने मुझे तुझे सबक सिखाने को भेजा है| बस एक बार भाइयों को आ जाने दे, तू रुक जा|”

प्रशांत उस लड़के का चेहरा पढ़ सकता था| वो बस इसी फिराक़ में था की स्कूल के गेट पे उसके भाई लोग आ जाएँ और वो अपना मार पीट का कार्यक्रम शुरू कर सके| प्रशांत की निगाहें भी गेट पर ही थीं| मन ही मन वो भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि भाइयों का वो ग्रुप न आये| तभी उसने गौरव को स्कूल से बहार जाते हुए देखा| गौरव की उन गुंडे लड़कों के ग्रुप में कुछ लड़कों से दोस्ती थी और ज्यादातर उन्हीं लड़कों के साथ उठता बैठता था| प्रशांत ने क्लास में से ही उसे आवाज़ लगायी| गौरव ने सुन लिया और क्लास में आया| प्रशांत गौरव से बोला- “भाई समझा न इसे| हम सब लोग एक ही स्कूल से पढ़े लिखे हैं| अगर मुझसे कोई गलती हुई है तो मैं उसे सुधारने के लिए तैयार हूँ, पर ये रैगिंग वैगिंग तो ठीक नहीं है न|” गौरव ने प्रशांत की तरफ देखा और फिर उस छोटे कद के लड़के की तरफ| गौरव उस लड़के को एक तरफ लेके गया और कुछ बात करने लगा| कुछ मिनट बाद वो वापस प्रशांत की तरफ आया और बोला- “भाई ये रैगिंग बस तभी रुक सकती है जब तू सुनहरी लाल से माफ़ी मांग ले और वो तुझे माफ़ कर दे|” प्रशांत ने कहा- “ठीक है, माफ़ी तो मैं मांग लूंगा लेकिन मुझे पता तो चले कि बात क्या है?”
गौरव- “तू याद कर, आज या कल या पिछले कुछ दिनों में तूने सुनहरी लाल से कुछ कहा हो|”
प्रशांत- “नहीं भाई, मुझे तो कुछ याद नहीं आ रहा|” फिर प्रशांत कुछ देर रुक कर बोला- “हाँ, कल मुझे वो नल पे पानी पीते वक़्त मिला था, छुट्टी के बाद, लेकिन ऐसी तो कोई बात नहीं हुई की बात मेरी रैगिंग तक पहुँच जाये|”
गौरव उस छोटे कद के लड़के से बोला- “सुन भाई, सुनहरी लाल को आ जाने दे, अगर इन दोनों में कोम्प्रोमाईज़ हो गया तो ये राम कहानी यहीं रोक देना| बाकी लोगों से मैं बात कर लूंगा|”
लड़का- “ठीक है, मैं इंतज़ार कर लूंगा| लेकिन एक बात कह देता हूँ, अगर इसकी मुझे किसी से भी कोई और शिकायत मिली तो गौरव भाई, मैं आप की भी नहीं सुनूंगा|”
गौरव- “ठीक है, इस बात की गारंटी मैं लेता हूँ|”

कुछ देर इंतज़ार करने के बाद अखिलेश ने आके बताया कि सुनहरी लाल स्कूल आ गया था| सुनहरी लाल जाति से पंडित था| एक सीधा सा लड़का था| पढ़ने लिखने में एक साधारण सा लड़का था| स्कूल में ज्यादा खेलता कूदता भी नहीं था| इस वजह से जो लड़के उसको जानते थे, वे कभी उसक मज़ाक बनाते या कभी उसका नाम बिगाड़ते| गौैरव ने उस लड़के को सुनहरी लाल को बुला लाने भेजा| सुनहरी लाल के क्लास में घुसने से पहले ही प्रशांत सुनहरी लाल के पास पहुँच कर बोला- “यार ये सब क्या है? मैंने तुझसे ऐसा क्या कह दिया कि तूने अपने भाई को मुझे पिटवाने को भेज दिया|” सुनहरी लाल कुछ देर शांत रहने के बाद बोला- “तुझे याद नहीं, कल जब मैं नल चला रहा था तो तूने क्या कहा था?”
प्रशांत- “नहीं, मुझे तो कुछ याद नहीं आ रहा|”
सुनहरी लाल- “तूने नहीं कहा था कि ‘अबे चोटी, आज खाना नहीं खाया क्या, नल थोड़ा तेजी से चला|'”
ये सुनने के बाद प्रशांत का चेहरा भक्क से पीला पड़ गया| उसे विश्वास नहीं हो रहा था की इतनी छोटी सी बात का ऐसा बतंगड़ बन सकता था| सुनहरी लाल प्रशांत के साथ पांचवीं क्लास से दसवीं क्लास तक विद्या मंदिर में ही पढ़ा था| और क्लास में ज्यादातर लड़के उसे ‘चोटी’ कहकर ही बुलाते थे|

प्रशांत ने सुनहरी लाल से कहा- “भाई, सब तो तुझे इसी नाम से बुलाते थे विद्या मंदिर में, और तूने भी कभी किसी को रोका नहीं| तू अगर मुझे बता देता कि तुझे ऐसा सुनना बुरा लगता है तो मैं तेरा नाम कभी नहीं बिगाड़ता. दोस्तों में तो ये सब…”
सुनहरी लाल ने प्रशांत को बीच में ही रोकते हुए कहा- “प्रशांत! मैं तो कभी तेरा दोस्त नहीं था| सही बात तो ये है कि मेरा अब तक कोई दोस्त रहा ही नहीं| पांचवीं से लेकर अब तक जितने लड़के मुझे जानते हैं, इसी नाम से ही पुकारते हैं| अब तक मेरे पास कोई तरीका नहीं था ऐसे लड़कों को समझाने का लेकिन अब है|”

प्रशांत सुनहरी लाल से नज़रें नहीं मिला पा रहा था| उसकी आँखे थोड़ी सी नम हो गई| उसके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे पर उसने रुंधलाते हुए कहा- “भाई मुझे माफ़ कर दे| मुझे बिलकुल नहीं पता था की तुझे इतना बुरा लग जायेगा| आगे से मैं तेरा नाम कभी नहीं बिगाड़ूँगा|”
सुनहरी लाल को भी थोड़ा बुरा लगा| वो सोच रहा था कि बात आगे बढ़ने से पहले एक बार मुझे प्रशांत से ही बात कर लेनी चाहिए थी| उसने अपने भाई को वापस जाने के लिए इशारा कर दिया| उसका भाई प्रशांत को घूरते हुए क्लास से बाहर निकल गया मानो कह रहा हो- “बेटा इस बार तो तू बच गया, अगली बार नहीं बचेगा|”

प्रशांत ने सुनहरी लाल को थैंक्यू बोलते हुए कहा- “भाई आज तूने बचा लिया वर्ना आज बहुत मार पड़ने वाली थी| सुन मैं अब से तेरा तो क्या किसी का नाम नहीं बिगाड़ूँगा, लेकिन मैं तुझे तेरे नाम से भी नहीं पुकारूँगा|” सुनहरी लाल ने चौंकते हुए पूछा- “तो फिर किस नाम से पुकारेगा|” प्रशांत ने मुस्कुराते हुए कहा- “दोस्त!” और फिर दोनों मुस्कुराते हुए नयी दोस्ती का जश्न मानाने स्कूल के बाहर चाय के ठेले पे चले गए|

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