मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई
सिर्फ एक बस एक मेरी, अब रहगुज़र नहीं कोई..
घर से जब चला था, एक ही मुकाम मिला था
मंज़िलों की मेरी अब गिनती नहीं कोई..
मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई..
कुछ निवाले कुछ ज़मीन बस यही थोड़ी चाहत थी
अब बस बेफिक्री है और अब हसरत नहीं कोई..
मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई..
नए पल नए रास्ते अब यही मेरे दोस्त है
पुरानी कड़वी यादों से भी, अब दुश्मनी नहीं कोई..
मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई
कितनी ही महफ़िलों के दरवाज़ों से मैं लौट आया
कि मेरे आराम की “एक शाम” अब तक आई नहीं कोई..
मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई..
जब तक हो सका, जहाँ तक हो सका, तेरे साथ चला मैं “ए दोस्त”
तुझसे अलग होने की भी मेरी मजबूरी रही कोई..
मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई..
वो वक़्त था कसूरवार जिसने ये फासले किये “ए दोस्त ”
वरना तेरे मेरे दिलों के बीच दूरी नहीं कोई..
मुसाफिरी की मेरी अब हद नहीं कोई
सिर्फ एक बस एक मेरी, अब रहगुज़र नहीं कोई..