फिर वही महफ़िल सजा ले

कभी अगर वक़्त मिले
तो फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

अरसा हुआ तेरे साथ यूँ बैठे
अरसा हुआ तेरे पास यूँ ठहरे
चल कुछ मेरी सुन कुछ अपनी सुना ले
फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

किसी ज़माने में पीकर ज़ोर से हँसता था तू
किसी ज़माने नशे में गाता था मैं
चल उस ज़माने को फिर अपने पास बुला ले
फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

कभी घर से बहाने बनाकर मयख़ाने जाते थे
वहां दोस्ती और जाम की एकरंग महफ़िल सजाते थे
चल मय के घर जाने को फिर कोई बहाना बना ले
फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

कितने ही बंधनों से बंधा हूँ मैं
कितने ही झांसों में फंसा है तू
बंधन मैं ये तोड़ता हूँ, उन झांसों से तू खुद को छुड़ा ले
फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

कई खुशियां अकेले जी हैं तूने
कई ग़म हैं झेले मैंने अकेले
चल उसी ख़ुशी और ग़म का जश्न मना ले
फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

मय से जिनका नाता नहीं, वो ये न समझेंगे
तेरे मेरे जाम के दौर में क्या लुत्फ़ है, वो ये न समझेंगे
चल दौर-ए-जाम में एक शाम अपनी बिता ले
फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

कितनी ही ज़िम्मेदारियाँ हैं तेरे सर
कितनी ही ज़िम्मेदारियाँ निभाता हूँ मैं
चल एक ज़िम्मेदारी दोस्ती की निभा ले
कभी अगर वक़्त मिले
तो फिर वही महफ़िल सजा ले
मेरे दोस्त फिर एक जाम नया बना ले||

One thought on “फिर वही महफ़िल सजा ले”

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