सुबह की खिली धूप में
खिला हुआ सा तेरा चेहरा
मुझे देख के और भी खिल गया था
जब पहली बार हम मिले थे..
पहले से एक दूसरे को जानते थे
पर पहली बार आमने सामने थे
सड़क से गुजरती भीड़ के बीच
एक बार में ही एक दूसरे को पहचान गए थे
जब पहली बार हम मिले थे..
कांपते पैरों से मैंने सड़क पार की
और कांपते हुए तूने एक कदम बढ़ाया
एक दूसरे को देख के कैसे मुस्काये थे
जब पहली बार हम मिले थे..
पहली बार तेरी गाड़ी पे पीछे बैठा था
थोड़ा डरा थोड़ा सहमा सा था
कैसे दो गहरे दोस्त एक साथ चले थे
जब पहली बार हम मिले थे..
कंधे पे पीछे बैग टांगे
तेरे साथ चर्च गया था
दोनों ने एक दूसरे की ख़ुशी की प्रार्थना की
कैसे चर्च के बाहर उन मासूम बच्चों से हँसे बोले थे
जब पहली बार हम मिले थे..
तेरे साथ का वो पहला एहसास कितना अलग था
तेरी खुशबु से महका महका ये जग था
अकेले इस जीवन में एक साथ कई मेले लगे थे
जब पहली बार हम मिले थे..
फिर धीरे धीरे बातें करते करते
उन पहाड़ियों के बीच से गुज़रे थे
कैसे वो सारे फूल हमारे स्वागत में कुछ ज्यादा ही खिले थे
जब पहली बार हम मिले थे..
कभी एक टक तू मुझे देखती थी
फिर मेरे देखने पे पलकें झुका लेती थी
शायद तेरी आँखों ने हम दोनों के लिए कुछ सपने बुने थे
जब पहली बार हम मिले थे..
जब भी तुझसे बातें करता था
एक एहसास हर बार होता था
जैसे तेरे कई सारे पल मेरे इंतज़ार में गुज़रे थे
जब पहली बार हम मिले थे..
फिर जब तुझसे विदा लेने की घडी आई
तूने कहा “लगता नहीं हम पहली बार मिले हैं”
और मुझे भी बस यही लगा
हम पहली बार नहीं मिले थे
जब इस जनम में हम पहली बार मिले थे||