“कर्म-गाथा “

कर्म करता ही मैं जाऊं
कर्म की गाथा मैं गाउँ|
कर्म करते हुए सदैव
कर्म में ही मिल मैं जाऊं||

कर्म सत्य, कर्म सुन्दर, कर्म ही पुरुषार्थ है|
कर्म आदि, कर्म अंत, कर्म ही परमार्थ है||

कर्म से ही तुम हो मैं हूँ, कर्म से संसार है|
कर्म ही जीवन-रत्न, कर्म जीवन सार है||

कर्म श्रेष्ठ, कर्म ज्येष्ठ, कर्म ही बलवान है|
कर्म करने से डरे जो, वो नहीं इंसान है||

कर्म भक्ति, कर्म शक्ति, कर्म ही भगवान है|
कर्म गीता, कर्म बाइबिल, कर्म ही कुरान है||

कर्म से ही हर दिशा है, कर्म से ही हर डगर|
कर्म ही है देश मेरा, कर्म ही मेरा नगर||

हर पल कर्म करता ही जाये, मनुष्य वो महान है|
विधाता की है ये वाणी सुनो, कर्म ही प्रधान है||
विधाता की ये वाणी सुनो, कर्म ही प्रधान है||

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